टीम एबीएन, रांची। राज्य सरकार ने झा प्र से के कई अधिकारियों पर कार्रवाई की हैं। इस संबंध में कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग ने संकल्प जारी किया है।
राज्य सरकार ने अनिल कुमार सिंह, झा0प्र0से0 (को.क्र.-179/20),अवर सचिव, कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग, झारखण्ड, राँची को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया है।
अरविन्द कुमार, झा0प्र0से0 (कोटि क्रमांक- 78/20), तत्कालीन जिला आपूर्त्ति पदाधिकारी, हजारीबाग के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही संचालित किया जाता है।
विपिन उराँव, झा0प्र0से0 (कोटि क्रमांक- 803/03), तत्कालीन जिला आपूर्त्ति पदाधिकारी, बोकारो के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही संचालित किया जाता है।
सदानन्द महतो, झा0प्र0से0 (को0 क्र0-185/20), तत्कालीन प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, बरहरवा, साहेबगंज के विरूद्ध निन्दन का दण्ड अधिरोपित किया जाता है।
इस संबंध में कार्मिक प्रशासनिक सेवा तथा राजभाषा विभाग ने संकल्प जारी किया है।
टीम एबीएन, रांची। राज्य सरकार ने झा प्र से के कई अधिकारियों पर कार्रवाई की हैं। इस संबंध में कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग ने संकल्प जारी किया है।
राज्य सरकार ने अनिल कुमार सिंह, झा0प्र0से0 (को.क्र.-179/20),अवर सचिव, कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग, झारखण्ड, राँची को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया है।
अरविन्द कुमार, झा0प्र0से0 (कोटि क्रमांक- 78/20), तत्कालीन जिला आपूर्त्ति पदाधिकारी, हजारीबाग के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही संचालित किया जाता है।
विपिन उराँव, झा0प्र0से0 (कोटि क्रमांक- 803/03), तत्कालीन जिला आपूर्त्ति पदाधिकारी, बोकारो के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही संचालित किया जाता है।
सदानन्द महतो, झा0प्र0से0 (को0 क्र0-185/20), तत्कालीन प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, बरहरवा, साहेबगंज के विरूद्ध निन्दन का दण्ड अधिरोपित किया जाता है।
इस संबंध में कार्मिक प्रशासनिक सेवा तथा राजभाषा विभाग ने संकल्प जारी किया है।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। खाद्य सुरक्षा नियामक एफएसएसएआई ने बृहस्पतिवार को ई-कॉमर्स सहित खाद्य कंपनियों को पैकेट से ए-वन और ए-टू प्रकार के दूध और दूध उत्पादों के दावों को हटाने का निर्देश दिया। नियामक ने इस तरह के लेबल को भ्रामक बताया है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कहा कि ये दावे खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अनुरूप नहीं हैं।
अपने ताजा आदेश में, एफएसएसएआई ने कहा कि उसने इस मुद्दे की जांच की है और पाया है कि ए-वन और ए-टू का अंतर दूध में बीटा-केसीन प्रोटीन की संरचना से जुड़ा हुआ है। हालांकि, मौजूदा एफएसएसएआई नियम इस अंतर को मान्यता नहीं देते हैं। खाद्य व्यवसाय परिचालकों का जिक्र करते हुए नियामक ने कहा, एफबीओ को अपने उत्पादों से ऐसे दावों को हटाने का निर्देश दिया गया है।
ई-कॉमर्स मंच को भी उत्पादों और वेबसाइट से इन दावों को तुरंत हटाने के लिए कहा गया। कंपनियों को पहले से मुद्रित लेबल समाप्त करने के लिए छह महीने का समय दिया गया है, इसके अलावा कोई और विस्तार नहीं दिया जायेगा।
ए-1 और ए-2 दूध में बीटा-कैसीन प्रोटीन की संरचना अलग-अलग होती है, जो गाय की नस्ल के आधार पर अलग-अलग होती है। नियामक ने इस निर्देश का सख्ती से पालन करने पर जोर दिया। आदेश का स्वागत करते हुए पराग मिल्क फूड्स के चेयरमैन देवेंद्र शाह ने कहा कि एफएसएसएआई का आदेश सही दिशा में उठाया गया कदम है।
उन्होंने एक बयान में कहा, ए-1 और ए-2 विपणन मकसद से विकसित की गई श्रेणी है। ...यह जरूरी है कि हम भ्रामक दावों को खत्म करें जो उपभोक्ताओं को गलत जानकारी दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि ए-1 या ए-2 दूध उत्पाद श्रेणी कभी अस्तित्व में नहीं थी और वैश्विक स्तर पर भी यह प्रवृत्ति खत्म हो रही है और उन्होंने कहा कि एफएसएसएआई का स्पष्टीकरण इस व्यापक समझ का समर्थन करता है।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। कोलकाता में हाल ही में हुए रेप और मर्डर केस के संदर्भ में सीबीआई को मुख्य आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफी टेस्ट कराने की अनुमति मिल गयी है। इससे पहले सीबीआई ने आरोपी का मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी किया था। अब पॉलीग्राफी टेस्ट के माध्यम से यह जानने की कोशिश की जायेगी कि आरोपी ने कितनी सच्चाई बताई है और कितनी बातें झूठी हैं। इसके अलावा, सीबीआई अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष का भी पॉलीग्राफी टेस्ट कराने की योजना बना रही है।
सूत्रों के अनुसार, संदीप घोष के बयान में कई इनकनसिस्टेंसिज पायी गयी हैं। कहा जा रहा है कि पूर्व प्रिंसिपल ने मामले को छिपाने की कोशिश की थी। सीबीआई को अस्पताल की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है, यही कारण है कि पूर्व प्रिंसिपल को लगातार चौथे दिन पूछताछ के लिए बुलाया गया है। रविवार की रात को भी देर तक उनसे पूछताछ की गयी, जो कि 1 बजे तक चली। सीबीआई ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष से पिछले चार दिनों में कौन-कौन से सवाल पूछे...
इस पूछताछ का मुख्य उद्देश्य यह है कि सीबीआई को मामले की तह तक पहुंचने में मदद मिले और दोषियों को उचित सजा दिलाई जा सके। सीबीआई की जांच के दौरान लगातार नये खुलासे हो रहे हैं, जो इस जटिल मामले की सच्चाई को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। मोबाइल फोन में बच्चों की अश्लील फिल्में और वीडियो डाउनलोड करने या देखने को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम या सूचना तकनीक अधिनियम के तहत आपराधिक कृत्य नहीं मानने के केरल हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला व न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने सुनवाई के दौरान मद्रास हाई कोर्ट के भी इसी तरह के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि सिर्फ बच्चों की अश्लील फिल्में देखने भर को अपने आप में आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मद्रास हाई कोर्ट के फैसले पर निर्णय सुरक्षित है और इसका केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर भी असर पड़ेगा। लिहाजा याची को फैसले का इंतजार करना चाहिए।
केरल हाई कोर्ट ने जून 2024 में 27 साल के सेबिन थामस को आरोपमुक्त कर दिया था जिसके मोबाइल फोन में बच्चों की अश्लील फिल्में पाई गई थीं। हाई कोर्ट ने कहा कि मोबाइल फोन में अपने आप ही या दुर्घटनावश ऐसे वीडियो डाउनलोड हो जाने पर जिसमें बच्चे यौन कृत्यों में लिप्त हैं, पॉक्सो या सूचना कानून तकनीक के तहत अपराध नहीं है। इस मामले में याची जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस देशभर में बच्चों के यौन शोषण, बाल दुव्यार्पार (चाइल्ड ट्रैफिकिंग) और बाल विवाह के खिलाफ काम कर रहे 120 से ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है।
याचिका में एलायंस ने कहा कि दोनों उच्च न्यायालयों के फैसलों की देशभर में खासी चर्चा हुई और इससे इस तरह का संदेश गया कि बच्चों के अश्लील वीडियो डाउनलोड करने या देखने पर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। इससे बच्चों की अश्लील फिल्में देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा जो बच्चों और उनके भले के हित में नहीं होगा।
बच्चों की अश्लील फिल्मों के मामलों पर उच्च न्यायालयों के हालिया फैसलों पर जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के संयोजक रवि कांत ने कहा, ह्लयह चिंता की बात है कि बच्चों की अश्लील फिल्मों और वीडियो जैसे गंभीर अपराधों में विभिन्न राज्यों के हाई कोर्ट भ्रामक फैसले दे रहे हैं जबकि इस तरह के कृत्यों में लिप्त लोगों को बेहद सख्त और स्पष्ट संदेश देने की जरूरत है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बच्चों की अश्लील फिल्मों के मामलों में बेहद चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है।
वर्ष 2018 में बच्चों की अश्लील फिल्मों के जहां सिर्फ 44 मामले थे जो 2022 में बढ़कर 1171 तक पहुंच गए। हमें भ्रम फैलाने वाले फैसलों के बजाय इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने और कार्रवाई करने की जरूरत है। याची की तरफ से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ वकील एच.एस. फूलका ने खंडपीठ को बताया कि केरल पुलिस ने पाया है कि 8 से 10 और 15 से 16 आयु वर्ग के कई बच्चों का इस्तेमाल आपत्तिजनक और अश्लील फिल्में बनाने में किया जा रहा है।
आरोपी को केरल पुलिस की बाल यौन शोषण निरोधक (सीसीएसई) टीम के विशेष अभियान पी-हंट के दौरान गिरफ्तार किया गया जो बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए गठित साइबरडोम के तहत कार्य करती है। सुनवाई के दौरान याची ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से बच्चों की अश्लील फिल्मों और वीडियो के मामलों में साल दर साल बढ़ोतरी के ब्योरेवार आंकड़े पेश किए जो इसमें तकरीबन 2516 प्रतिशत की बढ़ोतरी दिखाता है।
टीम एबीएन, रांची। रांची जमीन घोटाले मामले में ईडी ने जमीन माफिया शेखर कुशवाहा सहित तीन पर शनिवार को पीएमएलए की विशेष अदालत में चार्जशीट दायर कर दिया है। शनिवार की दोपहर जमीन घोटाला मामले के अनुसंधानकर्ता ईडी के डिप्टी डायरेक्टर देवव्रत झा ने चार्जशीट दायर किया।
आपको बता दें कि जिन तीन लोगों पर चार्जशीट दायर किया गया है उनमें से मात्र शेखर कुशवाहा को एजेंसी के द्वारा गिरफ्तार किया गया है।
जानकारी के अनुसार जिन अन्य दो आरोपियों को एजेंसी ने चार्जशीट किया है उनकी गिरफ्तारी अब तक नहीं हो पाई है। आरोप पत्र दायर होने के बाद जल्द ही अदालत तीनों चार्जशीटेड आरोपियों को ऊपर संज्ञान लेगा।
ईडी की जांच में यह बात सामने आया था कि शेखर कुशवाहा ने अपने सहयोगी प्रियरंजन सहाय, विपिन सिंह, इरशाद अंसारी, अफसर अली समेत अन्य के साथ मिलकर सरकारी कर्मी भानु प्रताप प्रसाद की मिलीभगत से 1971 का फर्जी डीड बनाया था। ईडी के चार्जशीट में सभी बातों का जिक्र किया गया है साथ ही मौजूद साक्ष्य भी उपलब्ध करवाये गये हैं।
ईडी जांच के अनुसार बड़गाईं अंचल के तत्कालीन अंचल राजस्व उपनिरीक्षक भानु प्रताप के साथ मिलकर शेखर ने बरियातू की 4.83 एकड़ की जमीन के रैयत जितुआ भोक्ता का नाम बदल कर समरेंद्र चंद्र घोषाल के नाम की एंट्री कर गैरमजरूआ जमीन को सामान्य खाते की जमीन में बदल दिया था। इसके बाद 22.61 करोड़ की जमीन को 100 करोड़ से अधिक कीमत में बेचने की तैयारी थी। ईडी गिरोह के सभी सदस्यों को पूर्व में ही जेल भेज चुकी है।
ईडी ने अफसर अली समेत सात आरोपियों के यहां 13 अप्रैल 2023 को छापा मारा था। तब सभी को गिरफ्तार किया गया था। वहीं चेशायर होम रोड में जमीन के कागजात तैयार करने को लेकर विपिन सिंह, प्रिय रंजन सहाय और शेखर कुशवाहा, बजरा जमीन को लेकर जमशेदपुर निवासी रवि सिंह भाटिया और श्याम सिंह के यहां 26 अप्रैल को छापेमारी हुई थी।
रवि सिंह भाटिया और श्याम सिंह के नाम पर मार्च 2021 में चार रजिस्ट्री डीड के जरिए खाता नंबर 140 की रजिस्ट्री फर्जी डीड पर हुई थी। इस जमीन का 82 सालों का लगान रसीद एक ही दिन में तत्कालीन डीसी छवि रंजन के आदेश पर काटा गया था।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में सभी राज्य सरकारों/ केंद्रशासित क्षेत्रों को यौन शोषण के पीड़ित बच्चों की मदद के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के दिशानिदेर्शों के अनुसार अनिवार्य रूप सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति करने को कहा है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने सभी राज्य सरकारों/ केंद्रशासित क्षेत्रों को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत लंबित मामलों में पीड़ित बच्चों की सहायता के लिए एनसीपीसीआर के दिशानिदेर्शों के मुताबिक सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति, उनकी योग्यता और जिम्मेदारियां तय करने के आदेश पर अमल के बाबत चार हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट सौंपने को कहा है। शीर्ष अदालत के इस आदेश से देश भर की पॉक्सो अदालतों में लंबित ढाई लाख मामलों में पीड़ित बच्चों को राहत मिलेगी।
बताते चलें कि सपोर्ट पर्सन वह व्यक्ति होता है जो यौन शोषण व उत्पीड़न के शिकार बच्चों की भावनात्मक व कानूनी रूप से मदद करते हुए उन्हें पीड़ा से उबरने व समाज की मुख्य धारा में वापस लाने में सहयोग करता है। बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) की ओर से दायर याचिका में उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में 2022 में एक दलित नाबालिग बच्ची के साथ पांच महीने तक सामूहिक बलात्कार और शिकायत करने के लिए थाने जाने पर वहां एक पुलिस अधिकारी द्वारा उससे बलात्कार का मामला उठाते हुए बच्चों के प्रति मित्रवत नीतियों और बच्चों की सुरक्षा से जुड़े दिशानिदेर्शों पर अमल का आदेश देने की मांग उठायी गयी थी।
यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों के कानूनी संघर्षों को आसान बनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का स्वागत करते हुए एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा- यह एक उल्लेखनीय कदम है क्योंकि सपोर्ट पर्संस पर एनसीपीसीआर के दिशानिदेर्शों को शीर्ष अदालत ने मंजूरी दे दी है। अब, एनसीपीसीआर के दिशानिदेर्शों के कार्यान्वयन के संबंध में राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों की प्रतिक्रिया अहम है।
प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु ने 2022 में एक अर्जी में यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों के लिए अनिवार्य रूप से सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति का सुझाव दिया था। बच्चों के हक में इस आदेश को बदलाव का वाहक बताते हुए भुवन ऋभु ने कहा कि यह ऐतिहासिक आदेश है क्योंकि अब गरीब और अपने अधिकारों से अंजान बच्चे अब अकेले व असुरक्षित नहीं रहेंगे। अब उनके पास कोई है जो उन्हें जटिल कानूनी प्रक्रिया से गुजरने में मदद करेगा, उन्हें आवश्यक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करेगा, गवाहों और पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा और उनके पुनर्वास और मुआवजे के लिए लड़ेगा। यह उनके लिए बहुत बड़ी जीत है जो पीड़ित से समाज की मुख्य धारा में शामिल होने की रूपांतरकारी यात्रा पर हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों व केंद्रशासित क्षेत्रों को एनसीपीसीआर के दिशा-निर्देशों पर अमल का निर्देश दिया है जो योग्यता का एक समान मानक स्थापित करते हैं, जहां नियुक्ति के इच्छुक अभ्यर्थियों के लिए सामाजिक कार्य, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान या बाल विकास में स्नातकोत्तर डिग्री अनिवार्य है। वैकल्पिक रूप से, स्नातक डिग्री और बाल शिक्षा, बाल विकास या बाल सुरक्षा के क्षेत्र में न्यूनतम तीन साल का अनुभव वाले उम्मीदवार भी पात्र हैं।
एनसीपीसीआर ने एक समग्र दिशा-निर्देश प्रस्तावित किया था जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है। दिशानिदेर्शों में इस बात पर जोर दिया गया है कि एक समान नीति तैयार की जानी चाहिए, जिससे आगे उचित समय पर बच्चों की सहायता में दक्ष व्यक्तियों का एक पैनल तैयार किया जा सके। साथ ही, सपोर्ट पर्सन को उनके कार्य और दायित्वों के अनुरूप उचित पारिश्रमिक का भुगतान किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, एक अखिल भारतीय पोर्टल भी बनाया जाए और यह आम लोगों और बाल संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) और बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) के लिए भी सुलभ हो। यह पोर्टल प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित क्षेत्र में उपलब्ध सभी सहायक व्यक्तियों की एक विस्तृत सूची प्रदान करेगा। प्रत्येक राज्य गैरसरकारी संगठनों का एक पैनल भी बनाए रखेगा और ऐसे व्यक्तियों का सहयोग करेगा जिनकी सेवाएं सीडब्ल्यूसी और जेजेबी के लिए उपयोगी हो सकती हैं।
इस पहल का उद्देश्य सहायक सेवाओं तक पहुंच को सुव्यवस्थित करना और बाल संरक्षण एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाना है। शीर्ष अदालत ने देश के प्रत्येक थाने में अर्धन्यायिक स्वयंसेवियों की नियुक्ति के आदेश पर अमल के बाबत राष्ट्रीय विधिक सेवाएं प्राधिकरण (नालसा) को चार हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश भी दिया। इस खबर से संबंधित और भी जानकारी पाने के लिए जितेंद्र परमार (8595950825) से संपर्क करें।
टीम एबीएन, रांची। झारखंड के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के अटेंडेंस और निर्धारित ड्यूटी आवर के दौरान उनकी मौजूदगी पर सरकार की हमेशा निगाह होगी। इसके लिए स्पेशल अटेंडेंस पोर्टल बनाया गया है। इसके जरिए डॉक्टरों और कर्मियों का बायोमीट्रिक अटेंडेंस हर रोज क्रॉस चेक होगा। सीएम हेमंत सोरेन ने सोमवार को इसका उद्घाटन किया। मौके पर स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता, मुख्य सचिव एल।
खियांग्ते सहित कई अफसर मौजूद रहे। सीएम ने कहा कि इस व्यवस्था का उद्देश्य यह है कि प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र से लेकर जिला अस्पताल में जो मानव संसाधन उपलब्ध हैं, उसकी शत-प्रतिशत उपयोगिता सुनिश्चित हो। अक्सर शिकायतें मिलती है कि स्वास्थ्य केंद्र और अस्पतालों में चिकित्सक ड्यूटी के दौरान भी उपलब्ध नहीं होते हैं। ऐसे में मरीज को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
ऐसे में अटेंडेंस पर निगरानी के लिए यह कदम उठाया गया है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य उपकेंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, कम्युनिटी हेल्थ सेंटर, अनुमंडलीय अस्पताल, जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों के रखरखाव, मरम्मत, चिकित्सा संसाधन, जांच सुविधाओं और दवाइयां की उपलब्धता की मॉनिटरिंग का भी सिस्टम डेवलप किया जायेगा। निजी अस्पतालों की तरह सरकारी अस्पतालों में हॉस्पिटल मैनेजमेंट सिस्टम, सीसीटीवी और वाई-फाई की व्यवस्था करायी जायेगी।
उन्होंने अफसरों से कहा कि राज्य के जिला अस्पतालों को 24 घंटे आपरेशनल बनाने के लिए समुचित कदम उठाए जायें। इन अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ सभी तरह की सर्जरी की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि मरीजों को किसी दूसरे अस्पताल के लिए रेफर करने की नौबत नहीं आये। प्राथमिक स्वास्थ्य उप केंद्रों और स्वास्थ्य केंद्रों का जिला अस्पतालों से 24 घंटे संपर्क स्थापित करने की व्यवस्था बनायें। राज्य के अगर किसी एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में चिकित्सा और चिकित्सा कर्मियों की सेवा लेने की जरूरत हो तो उस दिशा में भी उचित कदम उठाए जाने चाहिए।
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