एबीएन हेल्थ डेस्क। आज के समय में व्यस्त जीवन और खराब लाइफ स्टाइल की वजह से कई सारी समस्याएं उत्पन्न हो रही है। लोगों को खुद के स्वास्थ्य पर ध्यान देने का समय नहीं मिल पा रहा है। खासकर महिलाएं जो घर और बाहर के कामों को तो अच्छे से संभाल लेती हैं लेकिन खुद की छोटी-छोटी समस्याओं को नजरअंदाज कर देती है। वह छोटी-छोटी समस्याएं आगे जाकर गंभीर बीमारी के रूप में उभरती हैं।
इन्हीं में से एक है पीसीओडी, योगाचार्य महेश पाल बताते हैं कि जब पीसीओडी होता है तो हमारे सामने कई लक्षण नजर आते हैं जिनमें चेहरे पर कील मुहासे होना, वजन बढ़ना, अनियमित पीरियड्स या पीरियड्स का पूरी तरह बंद हो जाना, ज्यादा रक्तस्राव होना, त्वचा का काला पड़ना, चेहरे पर बाल उगना, सर दर्द होना नींद में कमी आदि, पीसीओडी यानी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज, पीसीओडी की समस्या महिलाओं और लड़कियों में बहुत ही कॉमन हो गयी है।
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ एंड रिसर्च के अनुसार हमारे देश में करीब 10% से भी अधिक महिला आबादी पीसीओडी की समस्या से ग्रसित हो गयी है और यह आंकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। पीसीओडी का मतलब है पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज जो महिलाओं में सबसे तेजी से बढ़ रहा है। यह महिला में होने वाला एक हार्मोनल विकार है, जहां हार्मोन संतुलन बिगड़ने के कारण ओवरी में छोटे-छोटे सिस्ट का निर्माण होता है जो गांठ की तरह दिखाई देते हैं।
पीसीओडी के कारण महिलाओं में बांझपन, अनियमित पीरियड्स, इत्यादि जैसी कई समस्याएं सामने आती है। पीसीओडी की समस्या अधिकतर 14 वर्ष से 45 वर्ष की लड़कियों व महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती हैं। पीसीओडी होने के पीछे कई कारण है जिसमें अनहेल्दी लाइफस्टाइल, आनुवांशिक कारण, मोटापा इन्सुलिन रेजिस्टेंस, हाइड्रोजन लेवल का हाई होना, फास्ट फूड जंक फूड का सेवन, अव्यवस्थित भोजनाचार्य, सिगरेट शराब या नशीली पदार्थों का सेवन, पीरियड्स असंतुलन होना, योग प्राणायाम मेडिटेशन व व्यायाम न करना, तनाव में रहना आदि कारणों की वजह से महिलाएं पीसीओडी की समस्या से ग्रसित हो जाती हैं।
ओव्यूलेशन की कमी गर्भाशय के स्तर को हर एक मेंस्ट्रुअल के समय बहने से रोकती है। पीसीओडी से ग्रस्त महिलाओं को साल में नौ पीरियड्स कम आते हैं, जिससे कि गर्भाशय की मोटी परत काफी बढ़ जाती है। इस वजह से एंडोमेट्रियल हाइपरप्लासिया और एंडोमेट्रियल कैंसर अंतगर्भाशय मैं होने का खतरा बढ़ जाता है।
पीसीओडी की समस्या से बचाव के लिए सहयोगी चिकित्सा के रूप में हमें हमारे दैनिक दिनचर्या में योग प्राणायाम को महत्व देना चाहिए जिसमें, भुजंगासन, शसकासन, बद्धकोणासन, उष्ट्रासन, सेतुबंध आसन, तितली आसान, सूर्य नमस्कार भुजंगासन-पेल्विक एरिया पर हल्का दबाव डालता है। अंडाशय को उत्तेजित करता है और पीसीओडी के लक्षणों को दूर करने में मदद करती है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। वर्तमान समय में बदलती दैनिक दिनचर्या व आहार चर्या के कारण हम कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से घिरते जा रहे हैं जिनमें एक है कार्डियक अरेस्ट रोग। इसे एससीए के नाम से भी जाना जाता है, तब होता है जब दिल अचानक और अप्रत्याशित रूप से धड़कना बंद देता है। जब दिल धड़कना बंद हो जाता है, तो रक्त शरीर में ठीक से प्रसारित नहीं हो पाता है और मस्तिष्क और अन्य अंगों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है।
योगाचार्य महेश पाल बताते हैं कि जब मस्तिष्क को पर्याप्त रक्त नहीं मिलता है, तो इससे व्यक्ति बेहोश हो सकता है और मस्तिष्क की कोशिकाएं आक्सीजन की कमी के कारण मरना शुरू कर देती हैं। शरीर में अन्य प्रणालियों के विपरीत, हृदय में साइनस नोड नामक अपना स्वयं का विद्युत उत्तेजक होता है। जिसमें हृदय के ऊपरी दायें कक्ष में विशेष कोशिकाओं का एक समूह होता है।
साइनस नोड द्वारा उत्पन्न विद्युत आवेग हृदय के माध्यम से एक व्यवस्थित तरीके से प्रवाहित होते हैं ताकि हृदय की धड़कन की दर और लय को नियंत्रित किया जा सके और हृदय से शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त की पंपिंग की जा सके। बहुत से लोग कार्डियक अरेस्ट को हार्ट अटैक समझ लेते हैं। हार्ट अटैक में दिल की धड़कन रुकती नहीं है, जबकि कार्डियक अरेस्ट होता है।
यह तब होता है जब रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनी में यांत्रिक रुकावट के कारण हृदय की मांसपेशियों का एक विशेष हिस्सा रक्त की आपूर्ति से वंचित हो जाता है। बड़े पैमाने पर दिल का दौरा पड़ने से कार्डियक अरेस्ट हो सकता है। कार्डियक अरेस्ट ज्यादातर 60 वर्ष की आयु के लोगों में होता है, लेकिन वर्तमान समय में यह बच्चों और युवा वयस्कों में भी देखा जाने लगा है।
कार्डियक अरेस्ट रोग होने से पहले हमारे शरीर में कुछ लक्षण हमारे सामने आते हैं जिसमें, स्पर्शनीय नाड़ी का अभाव (ऐसी स्थिति जिसमें नाड़ी को महसूस नहीं किया जा सकता), असामान्य या अनुपस्थित श्वास, थकान और कमजोरी, चक्कर आना और बेहोशी, सीने में दर्द, घबराहट और सांस लेने में तकलीफ, उल्टीकरना आदि यह लक्षण जब हमें हमारे शरीर में नजर आते हैं तो तुरंत हमें डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और सहयोगी चिकित्सा के रूप में योग प्राणायाम प्रारंभ कर देना चाहिए।
अतालता तब होती है जब विद्युत आवेगों का यह प्रवाह प्रभावित होता है अतालता (एरेथमिया) के कारण दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है। दिल धीरे-धीरे या तेज या अनियमित रूप से धड़कने लगता है। सभी अनियमितताएं जरूरी नहीं कि चिंता का कारण हों, लेकिन उनमें से कुछ गंभीर हो सकती हैं जिससे दिल की धड़कन अचानक बंद हो सकती है, जिससे दिल का काम करना बंद हो सकता है। जिन लोगों को हृदय संबंधी कोई अंतर्निहित समस्या है या जो जन्मजात हृदय दोष के साथ पैदा हुए हैं, उनमें हृदयाघात होने की संभावना अधिक होती है।
सामान्य स्वस्थ हृदय वाले व्यक्ति में हृदयाघात होने के लिए कोई बाहरी ट्रिगर होना चाहिए जो सबसे पहले अनियमित हृदय गति का कारण बनता है। अचानक हृदयाघात से मस्तिष्क में आॅक्सीजन युक्त रक्त की कमी के कारण बेहोशी आ जाती है और इसके परिणामस्वरूप यदि यह स्थिति 8 मिनट से अधिक समय तक चलती है तो जीवित बचे लोगों में मस्तिष्क क्षति हो सकती है यदि रिकवरी में 10 मिनट से अधिक समय लगे तो मृत्यु होने की संभावना बढ़ जाती है।
कार्डियक अरेस्ट रोग होने के कई कारण देखे गये हैं जिनमें, उच्चरक्तचाप, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल, जीवनशैली से जुड़े कारक जैसे मोटापा, गतिहीन जीवनशैली, धूम्रपान और शराब पीना। हृदयाघात या अन्य हृदय विकारों जैसे हृदय ताल विकार, जन्मजात हृदय दोष, हृदय विफलता और कार्डियोमायोपैथी का पारिवारिक इतिहास। पृौढ अबस्था, विद्युतीय झटका, अवैध दवाओं (कोकीन या एम्फेटामिन) का उपयोग।
पोटेशियम मैग्नीशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों का असंतुलन, कार्डियक अरेस्ट रोग से बचाव के लिए योग प्राणायाम हमारे लिए काफी लाभदायक है जिसमें ताड़ासन, वृक्षासन सेतुबंध आसन, पश्चिमोत्तानासन सूर्य नमस्कार, वज्रासन, पर्वतासन, भुजंगासन, सवासन नाड़ीशोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, आज्ञा चक्र पर ध्यान।
एबीएन हेल्थ डेस्क। भारत सरकार के आयुष विभाग के अंतर्गत कार्य करने वाली योग के क्षेत्र में संस्था अखिल भारतीय योग शिक्षक महासंघ द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर महर्षि पतंजलि योग रत्न सम्मान समारोह का आयोजन भारत की राजधानी नई दिल्ली के संविधान सभागार भवन मै 24 नवंबर को आयोजित किया गया।
जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे राज्य सभा सांसद दिनेश शर्मा, राजऋषि वेदमूर्ति आचार्य, स्वामी अमित देव डॉ ईश्वरन आचार्य, डॉ एसपी मिश्रा, डॉ मंगेश योगगुरु, नितिन पाठक, योगाचार्य दीपनारायण पाल अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
भारत के अलग-अलग राज्यों में विशेष योग्यता प्राप्त योगाचार्य व योगगुरु जिन्होंने योग के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि हासिल की और योग के प्रचार प्रसार को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जो कार्य किया उन सभी कार्य को देखते हुए महर्षि पतंजलि योग रत्न अवार्ड के लिए चयनित किया गया।
योगाचार्य महेश पाल का चयन योग के क्षेत्र में 21000 सूर्य नमस्कार पूर्ण करने, योग के क्षेत्र में रिसर्च कार्य करने, योगासना खेल मै राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल जज के रूप में कार्य करने, योग व स्वास्थ विषय पर आर्टिकल लेखन से समाज को जागरूक करने, बच्चों व युवाओं को योग से प्रेरित कर संस्कार विकसित करने, योग शिविरों के द्वारा लोगों मैं योग के महत्व को समझाने आदि कार्यो के लिए महर्षि पतंजलि योगरत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया।
योगाचार्य ने उद्बोधन देते हुए कहा कि योग से हमारी सोयी हुई इक्षा शक्ति जागृत होती हैं जिससे हम बड़े बड़े लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं, योगाचार्य महेश पाल मध्य प्रदेश के प्रथम योगाचार्य हैं जिन्हें महर्षि पतंजलि योग रत्न अवॉर्ड दिया गया है।
योगाचार्य महेश पाल ने अपनी योग की पढ़ाई उत्तराखंड से की है एवं योग की सेवाएं मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में दे चुके हैं जिसमें गुजरात, असम, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली आदि इस अवसर पर पतंजलि परिवार व मित्र जनों द्वारा बधाई शुभकामनाएं दी।
एबीएन हेल्थ डेस्क। वर्तमान समय में युवाओं की बदलती दैनिक दिनचर्या व अव्यवस्थित भोजनचर्या के कारण युवाओं में घटता स्पर्म काउंट नपुंसकता को जन्म दे रहा है जिसके कारण नव वैवाहिक जोड़े माता पिता बनने में असमर्थ होते जा रहे हैं योगाचार्य महेश पाल बताते है कि यह समस्या 40 से अधिक के उम्र के लोगों में देखने को मिलती है। वर्तमान समय में यह समस्या बहुत तेजी से युवा वर्ग में देखने में आ रही है।
एक शोध में यह आशंका व्यक्त की गयी है कि 2025 तक सर्वाधिक नपुंसकता की संख्या बाला देश भारत बन सकता है इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी), जिसे नपुंसकता के रूप में भी जाना जाता है, इरेक्शन पाने और उसे बनाए रखने में असमर्थता है। इरेक्टाइल डिसफंक्शन एक बहुत ही आम स्थिति है, खासकर यह वृद्ध पुरुषों में पायी जाती है।
यह अनुमान लगाया गया है कि 40 से 70 वर्ष की आयु के बीच के आधे पुरुषों में यह किसी न किसी हद तक होती है, लेकिन वर्तमान समय में यह समस्या युवा वर्ग में भी देखने में आ रही है, कम शुक्राणु संख्या को आलिगोस्पर्मिया भी कहा जाता है। शुक्राणुओं की पूरी तरह कमी को एजोस्पर्मिया कहा जाता है। यदि आपके वीर्य में प्रति मिलीलीटर 15 मिलियन से कम शुक्राणु हैं, तो आपके शुक्राणुओं की संख्या सामान्य से कम मानी जाती है।
कम शुक्राणुओं की संख्या का मुख्य लक्षण गर्भधारण न कर पाना, अंडकोष क्षेत्र में दर्द, सूजन या गांठ, चेहरे या शरीर पर कम बाल या गुणसूत्र या हार्मोन संबंधी स्थिति, किसी पुरुष में शुक्राणु कम होने के कई कारण हो सकते हैं। हार्मोन में अनुवाँशिक असंतुलन टेस्टोस्टेरोन की कमी, अधिक धूम्रपान व अधिक शराब का सेवन, नशा, अव्यवस्थित जीवन शैली, मानसिक तनाव व चिंता, मोटापा, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, फास्ट फूड जंक फूड, मानव शरीर में अंतर स्त्रावी तंत्र प्रजनन अंगों को विनियमित करने और भावनात्मक संतुलन बनाये रखने के लिए हार्मोन की श्रृंखला जारी करने का काम करता है।
जब हमारी जीवन शैली व आहार शैली असंतुलित होती है व इन सभी कारणों से शरीर तंत्रिकाओं के माध्यम से प्रजनन प्रणाली को नियंत्रित करने की क्षमता को देता है जिससे हार्मोन असंतुलित हो जाते है और स्पर्म काउंट कम होने लगता है प्रजनन अंग काम करना बंद कर देते हैं और नपुंसकता धीरे-धीरे जन्म ले लेती है। नपुंसकता से बचाव के लिए अपनी जीवन शैली व आहार शैली को व्यवस्थित करते हुए योग को अपने दिनचर्या में स्थान देना होगा।
यह योग अभ्यास प्रजनन तंत्र को स्वस्थ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं जिसमें पश्चिमोत्तानासन, उत्तांन आसान, जानुसिरासन, कंदरासन, भद्रासन, तितली आसन, धनुरासन, सूर्य नमस्कार, नाड़ीशोधन प्राणायाम, अनुलोम विलोम, कपालभाती, भ्रामरी चंद्रभेदी प्राणायाम, वज्रासन- यह आसन श्रोणि क्षेत्र में रक्त परिसंचरण को बेहतर बनाने में मदद करता है, तथा यौन क्रिया से जुड़ी मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को मजबूत बनाता है सर्वांगासन- यह आसन जीवन शक्ति को बढ़ाता है और स्तंभन दोष को दूर कर सकता है।
भुजंगासन- प्रजनन अंगों को उत्तेजित करने की अपनी क्षमता के लिए जाना जाने जाता हैं, पश्चिमोत्तानासन- आसन पैल्विक मांसपेशियों को खींचता है और विश्राम देता है, तनाव और चिंता को कम करता है, धनुरासन- पेट और पैल्विक मांसपेशियों को मजबूत करके, धनुरासन प्रजनन प्रणाली को सशक्त बनाता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रास :- गुर्दे, यकृत और पेट के अंगों को उत्तेजित करता है तथा प्रजनन प्रणाली को पुनर्जीवित करने में मदद करता है जानु शीर्षासन :- श्रोणि क्षेत्र में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है, जिससे स्तंभन स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है। सेतुबंधासन-जननांगों में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है, तथा तनाव और थकान को कम करता है। व्यवस्थित दैनिक दिनचर्या का आहार से हम विभिन्न प्रकार के रोगों के साथ-साथ आने वाले गंभीर रोगों से बच सकते हैं अपने जीवन को स्वस्थ पूर्वक बना सकते हैं इसलिए हमें हमारे जीवन में योग को स्थान देने की आवश्यकता है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। वर्तमान समय में डेंगू ज्वर का प्रकोप बहुत तेजी से फैल रहा है, 2024 के बीच तक, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को 7.6 मिलियन से अधिक डेंगू के मामले रिपोर्ट किये गये हैं। इनमें से 3.4 मिलियन मामलों की पुष्टि की गयी हैं, योगाचार्य महेश पाल बताते हैं कि डेंगू बुखार एक कष्टदायक शरीर को दुर्बल करने वाला मच्छर जनित रोग है और जो लोग दूसरी बार डेंगू वायरस से संक्रमित हो जाते हैं उनमें गंभीर बीमारी विकसित होने का काफी अधिक जोखिम होता है।
डेंगू, जिसे ट्रॉपिकल फ्लू के नाम से भी जाना जाता है,यह वायरस एडीज प्रजाति के मच्छरों द्वारा फैलता डेंगू बुखार मुख्य रूप से संक्रमित एडीज मच्छरों के काटने से फैलता है , जिसमें ए.एजिप्टी और ए. एल्बोपिक्टस मच्छर शामिल हैं। मच्छर तब संक्रमित होता है जब वह किसी ऐसे व्यक्ति को काटता है जिसके खून में डेंगू है। लगभग एक सप्ताह के बाद, मच्छर काटने पर बीमारी को दूसरे व्यक्ति में फैलाने में सक्षम होता है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में डेंगू का सीधा प्रसार नहीं होता डेंगू बुखार में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है क्योंकि रक्त कोशिकाएं वायरस से प्रभावित होती हैं जो प्लेटलेट्स को नुकसान पहुँचती है इस चरण के दौरान उत्पादित एंटीबॉडी डेंगू बुखार के दौरान बड़ी संख्या में प्लेटलेट्स को नष्ट कर देती प्लेटलेट्स अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में ब्लड सेल्स हैं।
स्वस्थ व्यक्ति में 1.5 लाख से 4 लाख तक ब्लड प्लेटलेट्स होते हैं, लेकिन डेंगू होने पर इनकी संख्या तेजी से गिर जाती है. जिसके चलते मरीज की इम्युनिटी काफी कमजोर हो जाती है. डेंगू में प्लेटलेट्स गिरकर 60 हजार तक पहुंच जाते हैं, WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया को बीमारी की गंभीरता का आकलन करने के लिए एक मानदंड माना जाता है।
थ्रोम्बोसाइटोपेनिया को प्लेटलेट काउंट में तेजी से गिरावट या 150,000/mm3 (<150 G/L) से कम प्लेटलेट काउंट के रूप में परिभाषित किया जाता थ्रोम्बोसाइटोपेनिक पर्पुरा एक प्रतिरक्षा संबंधी बीमारी है। एंटी-प्लेटलेट एंटीबॉडी के कारण प्लीहा में प्लेटलेट्स नष्ट हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या में कमी आती है, शरीर में हल्का सा प्रभाव होने पर आसानी से खून बहने लगता है। डेंगू बुखार के लक्षण आमतौर पर संक्रमित होने के पहले हफ़्ते में ही दिखने लगते हैं जिसमें ,अचानक बहुत तेज़ बुखार, जी मिचलाना, त्वचा पर लाल चकत्ते,भयंकर सरदर्द, पेट में तेज दर्द, लगातार उल्टी,आँखों के पीछे दर्द, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, या ऐंठन, नाक या मसूड़ों से खून आना,तेजी से सांस चलना आदि लक्षण नजर आने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह ले चिकित्सा प्रारंभ कर दे उसके पश्चात सहयोगी चिकित्सा के रूप में आसन प्राणायाम का धीरे-धीरे अभ्यास कर सकते हैं जिसमें, सर्वांगासन, मत्स्यासन, पश्चिमोतानासन, नाड़ीशोधन प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम, के साथ साथ तुलसी+गिलोय का अर्क एवं पपीते के पत्तों का जूस काफी लाभदायक सिद्ध होता है, डेंगू बुखार तेज होने पर एवं अत्यधिक प्लेटलेट्स की संख्या गिरने पर आसन का अभ्यास नही करना चाहिए केवल नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास धीरे धीरे कर सकते हैं, नाड़ी शोधन प्राणायाम प्रतिरक्षा प्रणाली को स्ट्रांग बनता है एवं रक्त कोशिकाओं को डेंगू वायरस से प्रभावित होने से बचाने मैं सहयोग करता है, नाड़ी शोधन प्राणायाम के अभ्यास 1:4:2 के अनुपात के साथ किया जाता है, अभ्यास के लिए सुखासन में बैठ जाए दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें फिर बांयी नासिक से सांस 12 काउंटिंग के साथ ले फिर 48 काउंटिंग तक होल्ड करें फिर 24 काउंट के द्वारा दांयी से छोड़ दें फिर दांयी नासिका से सांस ले बांयी से छोड़ दें इस तरह 5 मिनिट तक कर सकते हैं।
डेंगू ज्वर एवं अन्य बीमारियों से बचाव के लिए योग एक अत्यंत लाभकारी उपाय है। नियमित योगाभ्यास से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है और शरीर के अंगों की कार्यक्षमता में सुधार होता है। योग आसनों से रक्त संचार बेहतर होता है, तनाव कम होता है, और मानसिक संतुलन बना रहता है। योग जीवनशैली को स्वस्थ बनाता है और आत्म-संयम को बढ़ाता है, जिससे समग्र स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। साथ ही हमारी इम्युनिटी भी बूस्ट होती है जिससे हम डेंगू जैसी कई बीमारियों से बच सकते हैं।
एबीएन हेल्थ डेस्क। कंप्यूटर के सामने घंटों एक पोजिशन में बैठकर काम करना और मोबाइल पर चैट-गेम खेलने की आदत युवाओं को स्पाइन की बीमारी का रोगी बना रही है। फरीदाबाद के सरकारी और निजी अस्पतालों में रोजाना 20-30 मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। ऐसे में न्यूरो सर्जन ने लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी है।
फरीदाबाद में बीके, ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल सहित करीब 15 बड़े अस्पताल हैं। इन अस्पतालों की न्यूरोलॉजी ओपीडी में रोजाना चार से पांच मरीज पीठ दर्द और स्पाइन की समस्या से पीड़ित होते है। ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ। राहुल ने बताया कि युवाओं में यह बीमारी काफी तेजी से बढ़ी है। पिछले दो साल में ओपीडी में इस बीमारी के मरीजों में युवाओं के केस 30 प्रतिशत तक बढ़े हैं।
ग्रेटर फरीदाबाद स्थित एक निजी अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ विक्रम दुआ ने बताया कि भागदौड़ भरी जीवनशैली में 70 से 80 प्रतिशत लोगों को पीठ दर्द की समस्या हो रही है। इसके अलावा सोते समय हाथ में दर्द, जलन और झुनझुनी भी लोगों को परेशान करती है। इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
साथ ही रहन-सहन में बदलाव व तकनीकी निर्भरता के कारण युवा इस बीमारी की गिरफ्त में आ रहे हैं, जो कि आमतौर पर बुजुर्गों की बीमारी कही जाती है। उनके पास पहले जहां इस बीमारी के केस में 90 फीसदी बुजुर्ग तो 10 फीसदी युवा आते थे। वहीं आज यह रेश्यो 70 और 30 पर पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि युवा आजकल घंटों कंप्यूटर पर समय बिताते हैं। उनकी फिजिकल एक्टिविटी जीरो हो गई है, ऐसे में स्पाइन डिसआॅर्डर लगातार बढ़ रहा है।
शुरुआती दौर में भले ही युवा इसे गंभीरता से न लें, लेकिन लंबे समय में यह परेशानी का कारण बन सकती है। रीढ़ की हड्डी में दर्द और विकलांगता कैंसर, स्ट्रोक, हृदय रोग, मधुमेह और अल्जाइमर रोग की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रहा है। मूव योर स्पाइन अभियान का उद्देश्य घर, कार्यस्थलों, स्कूलों और समुदायों के भीतर की स्थितियों सहित रीढ़ की हड्डी में दर्द और विकलांगता के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है।
डॉ रवि शंकर ने कहा कि पीठ दर्द का एक कारण घंटों कंप्यूटर पर बैठने के अलावा अधिक ड्राइविंग करना भी है। जब हम एक ही पोजिशन में ज्यादा देर तक बैठते हैं तो सिर से कमर तक की हड्डियों में खिंचाव पैदा होता है जो लम्बर स्पोंडिलोसिसबीमारी का संकेत है। ओपीडी में इस बीमारी के रोजाना चार से पांच मरीज आ रहे हैं।
कंप्यूटर के सामने घंटों बैठकर काम करना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है। इसके अलावा कमर टेढ़ी करके बैठना, गलत तरीके से चलना, कमर दर्द को नजरअंदाज करना, कमजोरी आना, शरीर का कोई भाग सुन्न पड़ जाना, पैरों में झनझनाहट होना, चलने में दिक्कत होना, पेशाब रुक जाना। अगर कमर दर्द ठीक नहीं होती है और साथ में बुखार या टांगों में दर्द है तो तुरंत स्पाइनल सर्जन को दिखायें।
एबीएन हेल्थ डेस्क। वर्तमान समय के भाग दौड़ भरी जीवन में हम अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं जिसके कारण हम विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाते हैं, उन्हीं में से एक गंभीर बीमारी है किडनी रोग। योगाचार्य महेश पाल विस्तार पूर्वक बताते हैं कि वर्तमान समय में भारत ही नहीं पूरे विश्व में बच्चे युवा वर्ग महिलाएं वयस्क वरिष्ठजन किडनी रोग से ग्रस्त होते जा रहे हैं, एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) से पीड़ित है, बही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये संख्याएं चौंका देने वाली हैं।
अनुमान है कि दुनिया भर में 2 मिलियन से भी अधिक लोग किडनी फेलियर से पीड़ित हैं, और इस बीमारी से पीड़ित रोगियों की संख्या में हर साल 5-7% की दर से वृद्धि होती जा रही है। किडनी रोग होने के कई कारण देखे गए हैं जो इस प्रकार है, किडनी में पर्याप्त रक्त प्रवाह न होना,किडनी को प्रत्यक्ष क्षति,किडनी में मूत्र का जमा हो जाना, प्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि, गुर्दे में पथरी, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, सिगरेट व धूम्रपान का अत्यधिक सेवन, गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होना, जैसे एक्लेम्पसिया व प्रीक्लेम्पसिया, अत्यधिक शराब का सेवन एवं बिन्ज ड्रिंकिंग (जिसे महिलाओं के लिए 2 घंटे में लगभग चार ड्रिंक्स और पुरुषों के लिए 2 घंटे में पांच ड्रिंक्स के रूप में परिभाषित किया जाता है) बिन्ज ड्रिंकिंग एक जोखिम तीव्र किडनी फेलियर है जो किडनी के कार्य में अचानक गिरावट लाता है और किडनी फेलियर का कारण बनता है।
किडनी की बीमारियाँ तब होती हैं जब आपकी किडनी क्षतिग्रस्त हो जाती है और आपके रक्त को फिल्टर नहीं कर पाती। क्रोनिक किडनी रोग में, क्षति कई वर्षों के दौरान होती है ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस,इस प्रकार की किडनी की बीमारी में ग्लोमेरुली को नुकसान पहुंचता है, जो आपके गुर्दे के अंदर फिल्टरिंग इकाइयां हैं। आपके गुर्दे के कई काम हैं, लेकिन उनका मुख्य काम आपके रक्त को साफ करना, विषाक्त पदार्थों, अपशिष्ट और अतिरिक्त पानी को मूत्र (पेशाब) के रूप में बाहर निकालना है।
आपके गुर्दे आपके शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स (जैसे नमक और पोटेशियम) और खनिजों की मात्रा को भी संतुलित करते हैं, रक्तचाप को नियंत्रित करने वाले हार्मोन बनाते हैं, लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करते हैं और आपकी हड्डियों को मजबूत रखते हैं। यदि आपके गुर्दे क्षतिग्रस्त हैं और ठीक से काम नहीं करते हैं, तो अपशिष्ट आपके रक्त में जमा हो जाते हैं और किडनी को क्षति पहुँचाते है और किडनी के रोगों से हम ग्रस्त होने लगते हैं, जब हम किडनी रोग से ग्रस्त होते हैं तो हमारे सामने कई लक्षण नजर आते हैं, थकान, कमजोरी, कम ऊर्जा स्तर,भूख में कमी हाथ, पैर और टखनों में सूजन सांस लेने में कठिनाई झागदार या बुलबुलादार पेशाब।
मोटी आंखें, सूखी और खुजली वाली त्वचा, ध्यान केन्द्रित करने में परेशानी, नींद न आना, सुन्न होना। मतली या उलटी,मांसपेशियों में ऐंठन, उच्च रक्तचाप, त्वचा का काला पड़ना, यह सारे लक्षण हमारी बॉडी में नजर आते हैं तो हमें तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए उसके पश्चात अन्य उपचार करने चाहिए, योग रक्तचाप को कम करने, गुर्दे की कार्यप्रणाली में सुधार करने, डायलिसिस की आवश्यकता को कम करने और सीकेडी के रोगियों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए पारंपरिक उपचार विधियों के सहायक उपचार के रूप में सुरक्षित और प्रभावी उपाय है, योग अभ्यास से हमारे दैनिक दिनचर्या और हमारी आहारचार्य में बदलाव आने से किडनी के रोगों के साथ साथ अन्य रोगों से भी बच सकते हैं।
किडनी रोग से बचाव के लिए हमें यह योग अभ्यास हमारी दैनिक दिनचर्या में शामिल करना चाहिए जिसमें कपालभाति सटकर्म, नाड़ी शोधन, अनुलोम विलोम प्राणायाम, आसन मैं धनुरासन, पश्चिमोत्तासन, चक्रासन वृक्षासन, उष्ट्रासन, सूर्य नमस्कार कटिचक्रासन आदि, कपालभाति के अभ्यास से किडनी फंक्शन को बेहतर करने में मदद मिलती है। प्राणायाम ग्लोमेरुली फिल्टरिंग इकाई को क्षति होने से बचाने में सहयोग करता है, आसन का अभ्यास लिवर, किडनी, ओवरी और यूट्रस के फंक्शन को स्टिम्युलेट करता है।
इस तरह रेगुलर योग अभ्यास करने से किडनी रोग ही नहीं अन्य रोगों से हम अपने आप को बचा सकते हैं हमें अपनी लाइफ स्टाइल में 1 घंटे का योग अभ्यास जरूर शामिल करना चाहिए और हमारी दैनिक दिनचर्या और आहारचार्य को हमारे स्वास्थ्य के अनुसार रखना चाहिए, जिससे कि हम हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार के रोगों का व समस्याओं से बचे रहें। किडनी रोगियों के लिए भोजन मैं सोडियम प्रोटीन पोटेशियम और फास्फेट की कम मात्रा बाला भोजन लेना चाहिए।
एबीएन हेल्थ डेस्क। बच्चों में बढ़ती आंखों की समस्या एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है, जिसमें वर्तमान समय देखने में आ रहा है कि प्रत्येक बच्चे को जन्म से ही आंखों की समस्या से गुजरना पड़ रहा है। और आंखों पर चश्मा लगता जा रहा है। यह कारण माता-पिता की बदलती लाइफस्टाइल दैनिक दिनचर्या आहार शैली भी एक कारण है।
वहीं बच्चों की दिनचर्या एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का ज्यादा उपयोग और फास्ट फूड का अत्यधिक सेवन करने से बच्चे दिन प्रतिदिन आंखों की समस्याओं से ग्रसित होते जा रहे हैं। योगाचार्य महेश पाल विस्तार पूर्वक बताते हैं कि बच्चों में आँखों की समस्याएँ ऐसी किसी भी समस्या या स्थिति को संदर्भित करती हैं जो आँखों, ऑप्टिक तंत्रिका और मस्तिष्क सहित दृश्य प्रणाली को प्रभावित करती हैं।
ये समस्याएँ गंभीरता में भिन्न हो सकती हैं, हल्के अपवर्तक त्रुटियों से लेकर अधिक गंभीर स्थितियों तक जो बिना इलाज के दृष्टि हानि का कारण बन सकती हैं। बच्चों में होने वाली आम आँखों की समस्याओं में अपवर्तक त्रुटियाँ शामिल हैं, जैसे कि मायोपिया (नज़दीकी दृष्टि) और हाइपरोपिया (दूरदृष्टि), साथ ही एम्ब्लियोपिया (आलसी आँख), स्ट्रैबिस्मस (भरी आँखें) और कंजंक्टिवाइटिस (गुलाबी आँख) जैसी स्थितियाँ।
इन स्थितियों और उनके संकेतों और लक्षणों के बारे में जागरूक होना ज़रूरी है ताकि समय रहते इनका पता लगाया जा सके और उचित उपचार के साथ साथ योग अभ्यास कर समय रहते आंखों की समस्या का निदान कर सकें, बच्चों में आँखों की समस्याओं के कुछ सामान्य लक्षणों में बार-बार आँखों को रगड़ना, अत्यधिक आँसू आना, लाल या सूजी हुई आँखें, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता, आँखें सिकोड़ना , ध्यान केंद्रित न कर पाना, पढ़ने या नज़दीक से काम करने में कठिनाई और आँखों का असामान्य संरेखण शामिल हैं।
वहीं आंखों की योगिक सूक्ष्म क्रिया से स्ट्रैबिस्मस, आँशु नलिकाओं का अवरुद्ध होने की समस्या, निस्टागमस आदि समस्याओं से बचा जा सकता है वहीं आसान और प्राणायाम ध्यान के द्वारा मायोपिया (निकट दृष्टि दोष), हाइपरोपिया (दूरदृष्टि दोष) एम्ब्लियोपिया (आलसी आँख) कंजंक्टिवाइटिस (गुलाबी आँख) आदि आँखों की समस्याओं से बचा जा सकता है, जिसमे रेगुलर योग अभ्यास मैं आँखों की योगिक सूक्ष्म क्रियाएं, सुखासन, स्वास्तिक आसान पद्मासन, सर्वांगासन शीर्षासन विपरीत करनी मुद्रा , प्राणायाम में अनुलोमविलोम, भ्रामरी, चंद्रभेदी आज्ञाचक्र पर ध्यान, नदी शोधन प्राणायाम आदि के अभ्यास से आंखों की समस्याओं से बचा जा सकता है।
5 वर्ष से अधिक के बच्चे योगाभ्यास अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं, आंखों में लालिमा होने की समस्या होने पर शीर्षासन का अभ्यास न करें। बच्चों की दैनिक दिनचर्या में पौष्टिक आहार शैली और दैनिक दिनचर्या में योगाभ्यास को स्थान देकर आंखों की समस्या के साथ-साथ हम बच्चों को भविष्य में आने वाले विभिन्न प्रकार मानसिक व शारीरिक रोगों से बचा सकते हैं।
Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.
टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।
© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse