टीम एबीएन, रांची। राष्ट्रीय सनातन एकता मंच एवं विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि रुक्मणी अष्टमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे पूरे देश में श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी देवी के साथ जुड़ा हुआ है और विशेष रूप से रुक्मणी जी की पूजा का दिन माना जाता है।
प्रत्येक वर्ष पौष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से व्रत रखा जाता है और पूजा का आयोजन किया जाता है। रुक्मिणी अष्टमी पर देवी रुक्मिणी और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन द्वापर युग में देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था, जो विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं।
देवी रुक्मिणी को मां लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। यह मान्यता है कि रुक्मिणी अष्टमी के दिन व्रत करके देवी रुक्मिणी की पूजा करने से मां लक्ष्मी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं और उनकी सभी इच्छाएं पूरी करती है। इस वर्ष पौष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 दिसंबर रविवार को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट से प्रारंभ हो रही है, जो कि 23 दिसंबर, सोमवार को शाम 05 बजकर 07 मिनट पर समाप्त होगी।
इस प्रकार, उदयातिथि के अनुसार, रुक्मिणी अष्टमी का व्रत 23 दिसंबर सोमवार को मनाया जाएगा। रुक्मणी जी भगवान श्री कृष्ण की अर्धांगिनी और उनके साथ उनकी दिव्य लीलाओं में सहभागी रही हैं। रुक्मणी जी का जन्म महाकाव्य भगवद गीता के अनुसार रुक्मणीपुर में हुआ था। रुक्मणी जी को भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त और उनका प्रिय माना जाता है।
उनके विवाह की कथा बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें रुक्मणी जी ने अपने स्वप्न में भगवान श्री कृष्ण को देखा और उन्हें अपना जीवन साथी चुना। रुक्मणी जी के विवाह में भगवान कृष्ण द्वारा किए गए साहसिक कार्य और उनकी भक्ति की महानता का बखान किया जाता है। यही कारण है कि रुक्मणी अष्टमी को एक श्रद्धांजलि और भक्ति का पर्व मानते हुए पूजा का आयोजन किया जाता है।
रुक्मणी अष्टमी के दिन भक्तगण विशेष रूप से व्रत रखते हैं और पूरे दिन भगवान कृष्ण एवं रुक्मणी देवी की पूजा करते हैं। इस दिन व्रति विशेष रूप से रुक्मणी जी की मूर्ति को रंग-बिरंगे फूलों से सजाते हैं और उन्हें विशेष प्रसाद अर्पित करते हैं। मंदिरों में भव्य पूजा आयोजन होता है, जहां भगवान कृष्ण और रुक्मणी के विवाह की कथा सुनाई जाती है।
इस दिन व्रति उपवास रहते हुए भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी जी का ध्यान करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं। रुक्मणी अष्टमी का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है,बल्कि यह सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी समृद्ध है। यह पर्व प्रेम, भक्ति और त्याग का प्रतीक है। रुक्मणी और श्री कृष्ण के संबंधों को प्रेम और समर्पण का आदर्श माना जाता है।
इस दिन को मनाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और परिवार में आपसी प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है। रुक्मणी अष्टमी,भगवान कृष्ण और रुक्मणी जी के साथ हमारी आत्मीयता और भक्ति को और मजबूत करती है। यह दिन हमें अपने जीवन में सत्य, प्रेम और समर्पण के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करता है।
एबीएन सोशल डेस्क। सत्यानंद योग मिशन ने न्यायिक एकेडमी, डीएवी कपिलदेव, सत्यानंद योग मिशन सरोवर नगर में ध्यान दिवस के अवसर पर सामूहिक ध्यान का अभ्यास किया। इस अवसर पर स्वामी मुक्तरथ ने कहा कि योग सही तरह से जीने का विज्ञान है और इसलिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक आदि सभी पहलुओं पर काम करता है।
योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना। आध्यात्मिक स्तर पर इस जुड़ने का अर्थ है सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है। यह योग या एकता आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध, षट्कर्म और ध्यान के अभ्यास के माध्यम से प्राप्त होती है। तो योग जीने का एक तरीका भी है और अपने आप में परम उद्देश्य भी।
योग सबसे पहले लाभ पहुंचाता है बाहरी शरीर (फिजिकल बॉडी) को, जो ज्यादातर लोगों के लिए एक व्यावहारिक और परिचित शुरुआती जगह है। जब इस स्तर पर असंतुलन का अनुभव होता है, तो अंग, मांसपेशियां और नसें सद्भाव में काम नहीं करते हैं, बल्कि वे एक-दूसरे के विरोध में कार्य करते हैं।
बाहरी शरीर (फिजिकल बॉडी) के बाद योग मानसिक और भावनात्मक स्तरों पर काम करता है। रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव और बातचीत के परिणामस्वरूप बहुत से लोग अनेक मानसिक परेशानियों से पीड़ित रहते हैं। योग इनका इलाज शायद तुरंत नहीं प्रदान करता लेकिन इनसे मुकाबला करने के लिए यह सिद्ध विधि है।
पिछली सदी में, हठ योग (जो कि योग का सिर्फ एक प्रकार है) बहुत प्रसिद्ध और प्रचलित हो गया था। लेकिन योग के सही मतलब और संपूर्ण ज्ञान के बारे में जागरूकता अब लगातार बढ़ रही है।
शारीरिक और मानसिक उपचार योग के सबसे अधिक ज्ञात लाभों में से एक है। यह इतना शक्तिशाली और प्रभावी इसलिए है; क्योंकि यह सद्भाव और एकीकरण के सिद्धांतों पर काम करता है। योग अस्थमा, मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, पाचन विकार और अन्य बीमारियों में चिकित्सा के एक सफल विकल्प है, खासतौर से वहां जहां आधुनिक विज्ञान आजतक उपचार देने में सफल नहीं हुआ है।
एचआईवी पर योग के प्रभावों पर अनुसंधान वर्तमान में आशाजनक परिणामों के साथ चल रहा है। चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार, योग चिकित्सा तंत्रिका और अंत:स्रावी तंत्र में बनाये गये संतुलन के कारण सफल होती है जो शरीर के अन्य सभी प्रणालियों और अंगों को सीधे प्रभावित करती है।
अधिकांश लोगों के लिए हालांकि, योग केवल तनावपूर्ण समाज में स्वास्थ्य बनाये रखने का मुख्य साधन हैं। योग बुरी आदतों के प्रभावों को उलट देता है, जैसे कि सारे दिन कुर्सी पर बैठे रहना, मोबाइल फोन को ज्यादा इस्तेमाल करना, व्यायाम न करना, गलत खानपान रखना इत्यादि। इनके अलावा योग के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं।
इनका विवरण करना आसान नहीं है, क्योंकि यह आपको स्वयं योग अभ्यास करके हासिल और फिर महसूस करने पड़ेंगे। हर व्यक्ति को योग अलग रूप से लाभ पहुंचाता है। तो योग को अवश्य अपनायें और अपनी मानसिक, भौतिक, आत्मिक और अध्यात्मिक सेहत में सुधार लायें। (लेखक सत्यानंद योग मिशन, रांची के प्रभारी हैं।)
एबीएन सोशल डेस्क। गायत्री शक्तिपीठ सेक्टर टू से दिव्य ज्योति कलशरथ यात्रा चलकर ओरमांझी प्रखंड के गावों मुहल्लों व दुर्गा मंदिर पास, गायत्री चेतना केंद्र होकर बीआईटी मेसरा पंचौली में निवासी परिजनों, भक्तों ने बैंड बाजा गाजा के साथ गायत्री दिव्य ज्योति कलश का रथ-दर्शन, स्वागत-सत्कार अभिनंदन कर विधिवत त्रिदेव युग शक्ति का खूब उल्लास व उत्साहपूर्वक पूजन-अर्चन किये और जयघोष कर युग शक्ति गायत्री की आरती वंदन व पुष्पांजलि अर्पित की। आज ओरमांझी प्रखंड में कई महिला मंडल के करीब 9/10 क्षेत्रीय कार्यक्रम आयोजन हुए।
सायंकालीन समय में बीआईटीटी कॉलेज सुन्दर नगर के देवी दर्शन मंदिर पास गायत्री परिवार आवासीय परिसर में दीपयज्ञ विधान हुआ। आज के कार्यक्रम में सैकड़ों नये भक्तों व परिजनों ने देव स्थापना कराये। इस दौरान शांतिकुञ्ज तत्वावधान में मुख्य प्रतिनिधि त्रिलोचन साहू ने गायत्री महामंत्र जप, यज्ञीय अनुष्ठान, संस्कार प्रकरण पर प्रकाश डालकर गायत्री युग साहित्य का स्वाध्याय करने का संदेश दिये।
साथ साथ दीपयज्ञ विधान दौरान मानव शरीर व स्वास्थ्य के प्रति सावधानी रखने और प्राणघातक शत्रु व्यसन प्रयोग पर प्रकाश डाल कहा कि व्यसन मनुष्य के लिए वास्तविक प्राणघातक शत्रु हैं। व्यसन मित्र के रूप में हमारे शरीर में घुसते हैं और शत्रु बनकर दिन-दिन क्षीण कर मारते हैं।
अत: नशा नाश का सोपान है। उन्होंने कहा कि शांतिकुञ्ज ने गुरुसत्ताश्री द्वय के विचार, सपना और योजना के अनुसार योगयुक्त जीवन और व्यसन मुक्त भारत का अभियान चलाना है।
कांके और ओरमांझी प्रखंड के बाद कल से अनगड़ा और सिल्ली प्रखंड, पंचायत व ग्रामीण क्षेत्र में दिव्य ज्योति कलश रथ-दर्शन कराया जायेगा। उक्त जानकारी गायत्री परिवार के वरिष्ठ साधक सह प्रदेश प्रचार-प्रसार प्रमुख जय नारायण प्रसाद ने दी।
टीम एबीएन, रांची। परम पूज्य आचार्य गुरुवर 108 श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री 108 सुयश सागर जी महाराज का रांची की पावन धरा पर मंगल प्रवेश दिनांक 21-12-2024, शनिवार को प्रात: 8:30 बजे दिगंबर जैन मंदिर, अपर बाजार में होगा।
मुनि श्री आज दिनांक 20-12-2024 को दोपहर 2 बजे ओरमांझी पटाखा दुकान (ट्रेड फ्रेंड्स) से विहार करके सायं 4:30 बजे तक भगवान महावीर आई हॉस्पिटल बरियातू पहुंचेंगे। यहीं पर उनका रात्रि विश्राम होगा।
दिनांक 21-12-2024, शनिवार को प्रात: 6:45 बजे आई हॉस्पिटल से विहार करके करम टोली चौक पहुंचेंगे जहां से बाजे-गाजे के साथ जुलूस के रूप में कचहरी रोड होते हुए जैन मंदिर में प्रात 8.30 मंगल प्रवेश होगा।
आप सभी पुरुषों, महिलाओं युवाओं एवं सभी संस्था के पदाधिकारियों एवं सदस्यों से अनुरोध है कि अधिक से अधिक संख्या में विहार एवं मंगल प्रवेश में शामिल होकर धर्म लाभ प्राप्त करें। उक्त जानकारी अध्यक्ष नरेंद्र गंगवाल, संयोजक संजय छाबड़ा और मंत्री पंकज पांड्या ने दी।
एबीएन सोशल डेस्क। गायत्री परिवार युगतीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार उतराखंड से जो दिव्य ज्योति कलश चलकर झारखंड की गायत्री शक्तिपीठ सेक्टर टू धूर्वा तीर्थ में आया, वह शांतिकुञ्ज हरिद्वार संबंधित मुख्य मुख्य प्रकोष्ठ प्रभारी और झारखंड के 24 जिलों के प्रतिनिधिमंडल नायकों और परिजनों के सान्निध्य में उनका विधिवत स्वागत अभिनन्दन, पूजा-पाठ करके रांची शहर में 4 दिसम्बर से पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण की प्रथम चरण में अनेकानेक मुहल्लों में दर्शन, पूजन-अर्चन व देव स्थापन कर धन्य हुए।
आज रांची जिला के प्रखंडों में आज प्रथम कांके प्रखंड क्षेत्र में प्रवेश किया। शांतिकुञ्ज और गुरुवर श्रीआचार्य वेदमूर्ति-तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम आचार्य एवं सजल श्रद्धा व शक्ति स्वरूपा गुरुमाता भगवती देवी का भारत भूमि पर अवतरण कथा, उनकी 21 वी सदी के नवयुगनिर्माण,उत्कृष्ट विचार का व्यापक संदेश अभियान के अंतर्गत यहां ब्रह्मचारी नगर महावीर मंदिर परिसर में, महिला मंडल प्रतिनिधित्व में कांके ब्लॉक चौक में,पतरा टोली हनुमान मंदिर परिसर में फिर संध्याकाल में शिव मंदिर में गायत्री-दीपयज्ञ हुआ। यहां क्षेत्र के करीब 250 भक्तों ने भागीदारी की और दर्जनों ने गायत्री महामंत्र की दीक्षा संस्कार, देव स्थापना, पूजन पद्धति के 5 सूत्र पर प्रकाश डाल यज्ञीय वातावरण में जन्मदिवस संस्कार कराए।
इस दौरान प्रतिनिधि नायक त्रिलोचन साहू ने अपने संबोधन में ईश्वर-विश्वास विषय पर संक्षिप्त आध्यात्मिक प्रकाश डालकर बताया कि ईश्वर-विश्वास मनुष्य जीवन की सार्थकता और सुव्यवस्था के लिए बहुत आवश्यक है। यों तो सामान्य नैतिक सिद्धांतों पर आस्था रखते हुए भी मनुष्य नेक जीवन जी सकता है, अपने व्यक्तिगत उत्कर्ष और सामाजिक उन्नति में सफल योगदान दे सकता है, लेकिन ईश्वर-विश्वास के अभाव में वह कभी भी भटक सकता है।
एक सर्वव्यापी सर्वसमर्थ न्यायकारी सत्ता के रूप में ईश्वर की मान्यता मनुष्य को अदर्शनिष्ठ, समाजनिष्ठ तथा विकासोन्मुख रखने में उपयोगी सिद्ध हो सकती है। कहा कि आस्तिकता आज उपेक्षणीय नहीं अपेक्षित है। यज्ञीय अनुष्ठान, संस्कारवान जीवन, सन्मार्ग, सत्कर्म, सद्विचार संवर्धन, अवांछनीयता उन्मूलन पर कई उदाहरण दृष्टांत प्रस्तुत कर प्रकाश डाले। कहा कि अनगढ़ता से सुगढ़ता में प्रवर्तन का नाम संस्कार है।
परिष्कृत जीवन जीना ही संस्कारित जीवन है। बताया कि जन्मना जायते शूद्र, संस्कराद् द्विज उच्यते। बोओ और काटो का सिद्धांत सूत्र बताया। प्रथम बेला में इस अवसर पर नये परिजन भक्तों ने एक कुंडीय यज्ञ कार्यक्रम भी कराया और यज्ञीय पूर्णाहूति की साक्षी में श्रद्धालु भक्तों ने एक बुराई त्याग, एक अच्छाई ग्रहण करने के साथ यज्ञमय व निर्मल जीवन जीने संकल्प लिया। मौके पर प्रज्ञागीत के स्वर, जयघोष के जयकारा व नारों पूरा क्षेत्र गुंजायमान हुआ। उक्त जानकारी गायत्री परिवार के वरिष्ठ साधक सह प्रदेश प्रचार-प्रसार प्रमुख जय नारायण प्रसाद ने दी।
एबीएन सोशल डेस्क। अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुञ्ज हरिद्वार मार्गदर्शन में संचालित दिव्य ज्योति कलश रथ-दर्शन यात्रा आयोजन रांची शहर में संपन्न हुआ। इस दौरान शांतिकुञ्ज प्रतिनिधि त्रिलोचन साहूजी ने बताया कि ऋषियों की महान परंपरा, ईश्वर और धर्म के प्रति आस्था एक महान विभूति है। यह आस्था व्यक्ति को सद्गुणी, संस्कारवान बनाती है, व्यक्ति की अंतर्निहित उन विशेषताओं को उभारती है, जिनके कारण मनुष्य को सृष्टि का मुकुटमणि, ईश्वर का राजकुमार बनने का अवसर मिला है।
मानवीय आस्था ही भारतीय देव संस्कृति की जननी है एक अनमोल धरोहर है। मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण करने वाली दिव्य संपदा है। संबोधन में गायत्री परिवार शांतिकुञ्ज हरिद्वार के प्रतिनिधि नायक त्रिलोचन साहू ने दिव्य ज्योति कलश रथ-दर्शन यात्रा दौरान रथ यात्रा के उद्देश्य, योजना, अभियान पर कार्यक्रम में उपस्थित गायत्री परिवार कार्यकर्ताओं, नये सदस्यगणों और दर्शकों को बताया।
रांची शहर में 4 से 18 दिसंबर तक संचालित अनेक क्षेत्रों के बाद आज हटिया व डोरंडा में कई कार्यक्रम आयोजन के साथ शहरी कार्यक्रम प्रथम चरण में संपन्न हुए। इसके साथ ही अखंड दीपक की ज्योति प्रज्ज्वलन दिवस और गुरुमाता भगवती देवी के जन्म अवतरण दिवस का एक साथ होने के महत्व, महिमा, प्रभाव, जीवन वृतांत और भविष्य के क्रिया-कलाप पर प्रकाश डालकर बताया।
गुरुदेव वेदमूर्ति-तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य के जीवन-क्रम, पिछले तीन जन्मों के विवरण के साथ चौथा इस जीवन के क्रिया-कलाप, जपतपव्रत अनुष्ठान, पुरश्चक्रण अनुष्ठान, ऋषि परंपरा का निर्वाह, कीलित गायत्री महामंत्र का अभिशाप उत्कीलन, गायत्री मंत्र दीक्षा, सबके लिए सर्वसुलभ करना, भारतीय संस्कृति के निमार्ता, यज्ञ पिता गायत्री माता, नव युग सृजन योजना, विचार क्रांति अभियान, 21 वी सदी उज्जवल भविष्य एवं नारी सदी, हमारी वसीयत और विरासत, महाशक्ति की लोक यात्रा, आप हमारा काम करो, हम तुम्हारा काम करेंगे। अध्यात्म एक नगद धर्म है आदि अनेक गुह्य विवरण पर प्रकाश डालकर दीपयज्ञ विधान के साथ कार्यक्रम संपन्न हुए।
ज्योति कलश रथ-दर्शन भ्रमण यात्रा कार्यक्रम दौरान सैकड़ों श्रद्धालु व नये भक्तों ने इसका उद्देश्य महिमा उपयोगिता लाभ समझकर अपने परिवार के लिए देव स्थापना कराये। प्रांतीय जोन समन्वयक ने बताया कि यह कलश रथ-दर्शन यात्रा कार्यक्रम रांची जिला के प्रखंडों के साथ साथ पूरे झारखंड में भ्रमण कर जन-जन को एक वर्ष तक शांतिकुञ्ज का कार्यक्रम व संदेश पहुंचाया जायेगा। यह रथ-दर्शन भ्रमण यात्रा झारखंड सहित पूरे भारत में एक वर्ष तक संचालित होगा। उक्त जानकारी गायत्री परिवार के वरिष्ठ साधक सह प्रदेश प्रचार-प्रसार प्रमुख जय नारायण प्रसाद ने दी।
टीम एबीएन, रांची। रांची जिला मारवाड़ी सम्मेलन के द्वारा संचालित पहाड़ी मंदिर रोड स्थित श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर अन्नपूर्णा सेवा 230 लोगों ने भोजन प्राप्त किया। आज की इस अन्नपूर्णा सेवा स्व राजकिशोर मोदी एवं स्व चंदा देवी मोदी देवी की पुण्य स्मृति में उनके पुत्रों ने किया। रांची जिला मारवाड़ी सम्मेलन के द्वारा संचालित पुरुलिया रोड स्थित स्वर्णभूमि अन्नपूर्णा सेवा केंद्र में 210 लाभुकों ने भोजन प्राप्त किया।
दोनों अन्नपूर्णा सेवा में 440 लोगों ने भोजन किया। मौके पर अन्नपूर्णा सेवा के संयोजक सुरेश चंद्र अग्रवाल ने कहा कि माता अन्नपूर्णा लोगों को इसी प्रकार सेवा करने की प्रेरणा प्रदान करें और प्रभु की कृपा सदैव सबों के परिवार पर बनी रहे। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए अन्नपूर्णा सेवा निरंतर चलती रहेगी। दोनों अन्नपूर्णा सेवा विगत 33 माह से प्रतिदिन निरंतर सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है।
इस अवसर पर मारवाड़ी सम्मेलन के जिला अध्यक्ष ललित कुमार पोद्दार, महामंत्री विनोद कुमार जैन, प्रमोद अग्रवाल, पुरुषोत्तम विजयवर्गीय, प्रदीप नारसरिया, मनोज रुइया, द्वारका प्रसाद अग्रवाल, निर्भय शंकर हरित, सांवरमल बुधिया, राजेंद्र अग्रवाल, रमेश बंका, संजय सर्राफ, सहित कई सदस्य उपस्थित थे। रांची जिला मारवाड़ी सम्मेलन के संयुक्त महामंत्री सह प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा कि दोनों अन्नपूर्णा सेवा स्व सत्यनारायण नारसरिया एवं स्व शारदा देवी नारसरिया की स्मृति में एवं रांची जिला मारवाड़ी सम्मेलन के द्वारा संचालित है।
एबीएन सोशल डेस्क। मशहूर तबला वादक और पद्म विभूषण से सम्मानित उस्ताद ज़ाकिर हुसैन लगभग 2 हफ़्ते से बीमार चल रहे थे। रविवार को इलाज के दौरान निधन हो जाने से संगीत जगत में शोक की लहर है।ज़ाकिर हुसैन महज़ 12 साल की उम्र में संगीत की दुनिया में क़दम रख लिया था।छोटी उम्र से ही उन्होंने तबले की आवाज़ से जादू बिखेरना शुरू कर दिया था। उन्होने 1973 में अपना पहला अलबम लिविंग इन द मटेरीयल वर्ल्ड आया था।
उन्होंने अपने जीवन में कई अंतरराष्ट्रीय समारोहों और अलबमों में अपने तबले का दम दिखाया। ज़ाकिर हुसैन को केवल 37 साल की उम्र में 1988 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उसके बाद 2002 में संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण का पुरस्कार दिया गया था।
12 मार्च 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।ज़ाकिर हुसैन को 1992 और 2009 में संगीत का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया गया था। ज़ाकिर हुसैन दुनिया से अलविदा कह गये, लेकिन संगीत की दुनिया में वह अमर है। शहर के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक सौरभ दुबे को भी तबला नवाज़ का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है । उस्ताद जी को विनम्र श्रद्धांजलि...।
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