एबीएन सेंट्रल डेस्क। आज पूरी दुनिया कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से परेशान है। ऐसे में रूस ने एक ऐसा दावा किया है जो पूरी दुनिया के लिए राहत की खबर है। रूस ने कहा कि उसने एक कैंसर वैक्सीन बना ली है जो सभी नागरिकों के लिए नि:शुल्क उपलब्ध होगी।
सोमवार (16 दिसंबर) को रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की कि उसने कैंसर के खिलाफ एक टीका विकसित किया है जिसे 2025 की शुरुआत से रूस के कैंसर रोगियों को मुफ्त में लगाया जायेगा। रूसी राज्य के स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी के अनुसार, रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय के रेडियोलॉजी मेडिकल रिसर्च सेंटर के जनरल डायरेक्टर एंड्री काप्रिन ने रूसी रेडियो चैनल पर इस वैक्सीन को लेकर जानकारी दी।
मॉस्को में गामालेया नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के निदेशक, अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने पहले टीएएसएस को बताया था कि टीका ट्यूमर के विकास को रोक सकता है और कैंसर को फैलने से रोक सकता है। यह टीका स्पष्ट रूप से आम जनता को कैंसर से बचाव के लिए दिए जाने के बजाय कैंसर रोगियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जायेगा। ये टीका हर तरह के कैंसर रोगी को दिया जा सकता है।
रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय समेत रूसी राष्ट्रीय चिकित्सा अनुसंधान रेडियोलॉजिकल केंद्र और गामालेया राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र ने घोषणा की पुष्टि की और स्पष्ट किया कि टीका कैसे काम करता है। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि टीका किस कैंसर का इलाज करेगा, यह कितना प्रभावी है या यहां तक कि टीके को क्या कहा जायेगा। यह वैज्ञानिक रूप से संभव है कि कैंसर को लक्षित करने के लिए किसी प्रकार का टीका विकसित किया गया हो। अन्य देश भी फिलहाल कुछ इसी तरह का विकास करने पर काम कर रहे हैं।
साल 2023 में यूके सरकार ने व्यक्तिगत कैंसर उपचार विकसित करने के लिए एक जर्मन जैव प्रौद्योगिकी कंपनी के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किया। इसके अलावा फार्मास्युटिकल कंपनियां मॉडर्ना और मर्क एंड कंपनी वर्तमान में त्वचा कैंसर के टीके पर काम कर रही हैं। बाजार में पहले से ही ऐसे टीके मौजूद हैं, जिनका लक्ष्य कैंसर को रोकना है, जैसे कि ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) के खिलाफ टीके, जो सर्वाइकल कैंसर को रोकने में मदद करते हैं।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। यह बात मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद को मानवाधिकार कार्यकर्ता और इतिहासकार बताने वाले क्रेग मरे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ग्रेटर इजरायल को लेकर एक बड़ा दावा किया है, जिससे अरब देशों में सनसनी मच गयीहै।
क्या आपको पता है कि 19वीं सदी में यहूदीवाद (जायोनिज्म) आंदोलन की आधारशिला रखने वाले थियोडोर हर्जेल ने एक ऐसे यहूदी देश की अवधारणा रखी थी, जो अरब के एक बड़े इलाके में फैला हुआ होगा।
यदि नहीं तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि यहूदीवाद, यहूदियों का तथा यहूदी संस्कृति का राष्ट्रवादी राजनैतिक आन्दोलन है जो इसराइल के ऐतिहासिक भूभाग में यहूदी देश की पुनर्स्थापना का समर्थन करता है। दरअसल, जायोनिज्म का आरंभ मध्य एवं पूर्वी यूरोप में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। यह यूरोप के सिमेटिक विरोधी राष्ट्रवादी आंदोलनों के प्रतिक्रियास्वरूप एक राष्ट्रीय पुनरुज्जीवन आन्दोलन के रूप में शुरू हुआ।
यहूदीवाद आंदोलन का मुख्य उद्देश्य है कि फिलिस्तीन में यहूदीकरण तथा यहूदीबाद का विस्तार करना, जिसके लिए इसकी विश्व में बहुत आलोचना हो चुकी है। हालांकि इसके शीघ्र बाद इस आन्दोलन के अधिकांश नेताओं ने फिलिस्तीन के अन्दर अपना देश बनाने का लक्ष्य स्वीकार किया। फिलिस्तीन उस समय उसमानी साम्राज्य के अधीन था। यही वजह है कि समय-समय पर इजरायल में इसे लेकर चर्चाएं होती रही हैं।
बहरहाल सारिया में रूस समर्थित बशर अल-असद की क्रूर सत्ता के पतन के बाद अब एक बार फिर से इसकी चर्चा तेज हो गयी है। क्योंकि तुर्की के साठगांठ और अमेरिका-इजरायल के परोक्ष सहमति से सीरिया में बशर अल-असद के पतन की पृष्ठभूमि तैयार की गई और इस दु:स्वप्न के साकार होने के बाद ही एक बार फिर से ग्रेटर इजरायल की चर्चा तेज हो गयी। क्योंकि बिना कोई समय गंवाये इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के आदेश के बाद इजरायली सेना ने अल्फा लाइन को पार कर लिया और सीरिया के एक बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया।
इसके अलावा, इजरायल और अमेरिका की संयुक्त बमबारी करके सीरिया में सफल हुए विद्रोहियों की सेना को कमजोर कर दिया गया। उसकी थल, जल और वायु मारक क्षमता वाले हथियारों को लगातार नेस्तनाबूद किया गया। समझा जाता है कि ग्रेटर इजरायल में कई अरब देशों के हिस्से इजरायल के नेतृत्व वाले यहूदी देश में शामिल होंगे। क्योंकि ग्रेटर इजरायल प्लान में अरब का एक बड़ा इलाका शामिल है, जिसे साकार करने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
कारण कि सीरिया में बशर अल असद की सत्ता मिटने से ईरान ज्यादा कमजोर हुआ है। वहीं, रूस के पांव ही अरब मुल्क से उखड़ चुके हैं, जिससे अफ्रीका तक में रूसी रणनीति अब प्रभावित होगी। इससे एक ओर जहां अमेरिका-इजरायल की बल्ले-बल्ले हैं, वहीं तुर्की के एरदोगन भी अरब के मुस्लिम खलीफा बनने को ततपर नजर आ रहे हैं।
बता दें कि सीरिया में बशर अल-असद के शासन के लगभग ढाई दशक के शासन के खत्म होते ही इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इजरायली सेना को गोलान हाइट्स पर इजरायली कब्जे के पार सीरियाई क्षेत्र में जाने का आदेश दिया और इजरायली सेना ने टैंकों के साथ सीमा को बांटने वाली अल्फा लाइन को पार कर लिया। लिहाजा, इजरायली सेना के इस कदम के बाद से ही ग्रेटर इजरायल की परिकल्पना को साकार करने को लेकर चर्चाएं पुन: तेज हो गयी हैं।
यह बात मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद को मानवाधिकार कार्यकर्ता और इतिहासकार बताने वाले क्रेग मरे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ग्रेटर इजरायल को लेकर एक बड़ा दावा किया है, जिससे अरब देशों में सनसनी मच गई है। दरअसल, उन्होंने कहा कि सीरिया में एक नई सरकार आकार ले रही है, जिसकी फंडिंग और तैयारी तुर्की, अमेरिका, इजरायल और खाड़ी देश कर रहे हैं।
यही नहीं, उन्होंने आगे कहा कि यह लोकतंत्र का सांठगांठ मानवाधिकारों के बारे में नहीं है। बल्कि यह ग्रेटर इजरायल और फिलिस्तीनियों के नरसंहार के बारे में है। इसलिए अब सवाल उठता है कि आखिर ग्रेटर इजरायल का अभिप्राय क्या है ? तो एक बार फिर यहां स्पष्ट कर दें कि ग्रेटर इजरायल का मतलब उस बड़े अरब भूभाग से है, जहां तक कभी प्राचीन यहूदी राज्य है।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। दमिश्क में पूर्व राष्ट्रपति हफीज अल असद के बुत उठाये जा रहे हैं। तानाशाहों के ताज उछाले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री बेंजामिन का दावा है कि इस्राइल द्वारा ईरान और हिजबुल्लाह पर किये गये प्रहार का सीरियाई क्रांति पर सीधा प्रभाव पड़ा है। लेकिन इस्राइल को चिंता बफर जोन की है। सीरियाई विद्रोही कब्जा न करें, इस वास्ते इस्राइली बलों को आदेश दिया है वो सतर्क रहें।
ईरान का आरोप है कि यह सारा खेल अमेरिका, इस्राइल और तुर्किये का रचा हुआ है। लेकिन, यदि यह त्रिगुट आइसिस और अल कायदा की विचारधारा पर चलने वाले हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) को प्रोमोट करता रहा है, तो मानकर चलिए कि मिडल ईस्ट में एक खतरनाक खेल हुआ है। इस खेल का नाम था आपरेशन डिटरेंस आफ एग्रेशन।
एचटीएस को यहां तक पहुंचने में बारह साल लगे। पहले इसे अल-नुसरा फ्रंट के नाम से जाना जाता था। जबात अल-नुसरा का गठन 2012 में आइसिस द्वारा किया गया था। एक साल बाद यह गुट अलग हो गया, और फिर जबाहत फतेह अल-शाम नाम रखकर अल-कायदा के प्रति निष्ठा की घोषणा कर दी। कालांतर में इसने अल-कायदा से भी संबंध तोड़ लिए, और 2017 में हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) नाम से अपनी ब्रांडिंग शुरू कर दी। एचटीएस इदलिब को नियंत्रित करता है। उत्तर-पश्चिम सीरियाई शहर इदलिब विद्रोहियों का एपिसेंटर रहा है, जहां दूसरे आतंकी समूह, लिवा अल-हक, जबात अंसार अल-दीन और जैश अल-सुन्ना इससे जुड़ गये।
सीरिया की सीमा उत्तर में तुर्की, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में लेबनान और इस्राइल, पूर्व में इराक, और दक्षिण में जॉर्डन से लगती है। मानकर चलें कि जब तक सीरिया में चुनाव होकर एक निर्वाचित सरकार नहीं आ जाती, यह पूरा इलाका डिस्टर्ब रहेगा। सीरिया की राजधानी में इराकी दूतावास की इमारत को खाली करा लिया गया है, और कर्मचारियों को लेबनान भेज दिया गया है।
यह इराक द्वारा सीरिया के साथ अपनी सीमा को बंद करने, और दमिश्क में ईरानी दूतावास पर हयात तहरीर अल-शाम विद्रोही समूह के सदस्यों द्वारा हमला किए जाने के बाद हुआ है। रूस, ईरान, तुर्की, इराक, मिस्र, जॉर्डन, सऊदी अरब और कतर ने दोहा में सीरिया का राजनीतिक समाधान निकालने आह्वान करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया है। दूसरी ओर, सीरिया के प्रधानमंत्री मोहम्मद गाजी अलजलाली ने स्वतंत्र चुनाव कराये जाने की मांग की है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल है, रूस मिडल-ईस्ट से अपना मिलिटरी बेस हटाता है, कि नहीं? सीरिया के लताकिया प्रांत में रूस के खमीमिम एयरबेस और तटीय नगर पर टार्टस में इसकी नौसैनिक सुविधा है। टार्टस मिडल ईस्ट में रूस की एकमात्र भूमध्यसागरीय मरम्मत और पुन:पूर्ति केंद्र है। मास्को के लिए यह वैसा बेस है, जहां से उसके मिलिटरी कॉन्ट्रैक्टर अफ्रीका में स्थित ठिकानों पर उड़ानें भरते हैं।
बशर अल असद की वजह से रूस को टार्टस में एक नौसैनिक अड्डा और खमीमिम में एक सैन्य हवाई अड्डा हासिल हुआ था। बदले में मॉस्को की सेना 2015 में सीरियाई संघर्ष में सैन्य रूप से शामिल हो गई, जिसने खूनी गृहयुद्ध में विपक्ष को कुचलने के लिए असद की सेना को सहायता प्रदान की। हमीमिम एयरबेस और टार्टस हटाने के लिए, क्या एक और युद्ध होगा? इस सवाल को हम यहीं छोड़े जाते हैं।
लेकिन, सबसे डरावना है अरब विद्रोह, या अरब स्प्रिंग, जो मिडल ईस्ट के शाही परिवारों और डायनेस्टी पॉलिटिक्स करने वालों की नींद उड़ाये हुए है। अरब स्प्रिंग के बीज 17 दिसंबर, 2010 को बोये गये थे, जब ट्यूनीशियाई सड़क पर खोमचे लगाने वाला मोहम्मद बौआजीजी ने पुलिस दुर्व्यवहार के विरोध में आत्मदाह कर लिया था। आत्मदाह देखकर क्रांति भड़क उठी।
14 जनवरी, 2011 को ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति जीन एल अबिदीन बेन अली देश छोड़कर भाग गए। ट्यूनीशिया के बाद, अरब स्प्रिंग की गति बढ़ती रही। 25 जनवरी, 2011 को मिस्र में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जिसके परिणामस्वरूप 11 फरवरी को राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने इस्तीफा दे दिया।
यह अशांति और फैल गयी, 15 फरवरी, 2011 को लीबिया में मुअम्मर गद्दाफी के शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये। कर्नल मुअम्मर गद्दाफी ने लीबिया पर कुल 42 साल तक राज किया, कर्नल गद्दाफी सबसे अधिक समय तक राज करने वाले तानाशाह के रूप में जाने जाते थे। 20 अक्तूबर, 2011 को गद्दाफी मारे गये, लेकिन उससे पहले उनकी बड़ी दुर्गति हुई।
इन सारी घटनाओं से प्रेरित विद्रोह की लहर 2011 में सीरिया पहुंची, उसे कुचलने के लिए असद शासन ने क्रूर बल का इस्तेमाल किया। दूसरी ओर मार्च 2013 अमेरिका ने सीरियाई विपक्ष को सहायता प्रदान करना शुरू किया। उसी साल 21 अगस्त को घोउटा में विद्रोहियों पर रासायनिक हथियारों से हमला हुआ। अमेरिका ने सैन्य कार्रवाई की धमकी दी। सितम्बर में सीरिया अंतर्राष्ट्रीय निगरानी में अपने रासायनिक हथियारों को नष्ट करने के लिए सहमत हुआ।
14 अप्रैल, 2018 को रूसी बलों द्वारा समर्थित सीरियाई सरकार ने लंबे समय तक घेराबंदी और भारी बमबारी के बाद पूर्वी घोउटा पर फिर से कब्जा कर लिया। 31 दिसंबर, 2020 को असद सरकार ने अलेप्पो पर भी नियंत्रण हासिल कर लिया, जो युद्ध में एक बड़ा मोड़ था। 26 मई, 2021 को बशर अल-असद को सीरिया के राष्ट्रपति के रूप में चौथी बार फिर से चुना गया, चुनाव की निष्पक्षता की अंतर्राष्ट्रीय आलोचना के बावजूद उन्हें 95.1 प्रतिशत वोट मिले।
सीरिया 14 वर्षों से गृहयुद्ध की चपेट में है। सीरिया में जो कुछ हुआ है, वह सभी एशियाई और अरब तानाशाहों के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए। विस्थापित सीरियाई नागरिकों का रिएक्शन अमेरिका-यूरोप में जिस स्केल पर दिखा उससे ही समझ में आ जाता है, गृहयुद्ध में उलझा मिडल ईस्ट कितना तबाह हुआ है। विपक्ष समर्थक सीरियन आब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार, मार्च 2011 और मार्च, 2024 के बीच 164223 नागरिक मारे गये। इस संख्या में सरकारी जेलों में मारे गये अनुमानित 55,000 नागरिक शामिल नहीं हैं।
भारत ने हाल ही में सीरिया के साथ द्विपक्षीय संबंधों को नवीनीकृत करने के प्रयास शुरू किये थे। फरवरी 2023 में विनाशकारी भूकंप के बाद आॅपरेशन दोस्त के नाम से भारत ने सीरिया को मानवीय सहायता भेजी थी, जबकि पश्चिमी देश ऐसा करने के लिए अनिच्छुक थे। भारत ने असद शासन को हटाने के लिए विदेशी हस्तक्षेप का विरोध किया था। भारत और सीरिया ने 29 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली में विदेश कार्यालय परामर्श का छठा दौर आयोजित किया था। सीरिया में करीब 90 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें से 14 संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संगठनों में काम कर रहे हैं। इस समय उनकी सुरक्षा भी हमारे लिए जरूरी है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
एबीएन एडिटोरियल डेस्क। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने इसी सप्ताह यूक्रेन को ऐसे हमलों के लिए मध्यम दूरी की अमेरिकी मिसाइलों का उपयोग करने की मंजूरी दे दी है, जिसे मॉस्को ने एक वृद्धि के रूप में वर्णित किया है जो वाशिंगटन को युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से लड़ने वाला बना देगा और तुरंत जवाबी कार्रवाई करेगा। यह युद्ध के 1,000 दिनों को चिह्नित करने के लिए चौकसी की योजना के बीच आया, जिसमें मोर्चे पर थके हुए सैनिक थे, कीव हवाई हमलों से घिरा हुआ था और डोनाल्ड ट्रम्प के व्हाइट हाउस में वापस आने पर पश्चिमी समर्थन के भविष्य के बारे में संदेह था।
मॉस्को ने कहा कि यूक्रेन ने पहली बार रूसी क्षेत्र पर हमला करने के लिए अमेरिकी एटीएसीएमएस मिसाइलों का इस्तेमाल किया, जो युद्ध के 1,000वें दिन एक बड़ी वृद्धि है। रूस ने कहा कि उसकी सेना ने ब्रांस्क क्षेत्र में एक सैन्य सुविधा पर दागी गयी छह मिसाइलों में से पांच को मार गिराया, जबकि एक का मलबा सुविधा पर गिरा, जिससे कोई हताहत या क्षति नहीं हुई। यूक्रेन ने कहा कि उसने रूस के लगभग 110 किमी अंदर एक रूसी हथियार डिपो पर हमला किया और द्वितीयक विस्फोट किये। इसमें यह नहीं बताया गया कि उसने किन हथियारों का इस्तेमाल किया था।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने इसी सप्ताह यूक्रेन को ऐसे हमलों के लिए मध्यम दूरी की अमेरिकी मिसाइलों का उपयोग करने की मंजूरी दे दी है, जिसे मॉस्को ने एक वृद्धि के रूप में वर्णित किया है जो वाशिंगटन को युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से लड़ने वाला बना देगा और तुरंत जवाबी कार्रवाई करेगा। यह युद्ध के 1,000 दिनों को चिह्नित करने के लिए चौकसी की योजना के बीच आया, जिसमें मोर्चे पर थके हुए सैनिक थे, कीव हवाई हमलों से घिरा हुआ था, और डोनाल्ड ट्रम्प के व्हाइट हाउस में वापस आने पर पश्चिमी समर्थन के भविष्य के बारे में संदेह था।
सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी मिसाइलें यूक्रेन को उस क्षेत्र की रक्षा करने में मदद कर सकती हैं, जिस पर उसने रूस के अंदर सौदेबाजी के साधन के रूप में कब्जा कर लिया है, लेकिन इससे 33 महीने पुराने युद्ध का रुख बदलने की संभावना नहीं है। जब ट्रम्प दो महीने में सत्ता में लौटेंगे, तो अमेरिका की स्थिति में संभावित रूप से अधिक परिणामी बदलाव की उम्मीद है, उन्होंने बिना बताए युद्ध को जल्द खत्म करने का वादा किया है।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। पाकिस्तान जानता है कि अमरीका के साथ उसके संबंध अच्छे नहीं हैं और नयी सरकार में ये और ये और भी खराब हो सकते हैं, क्योंकि ट्रंप अमरीका फर्स्ट नीति के प्रबल समर्थक हैं। ट्रंप ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह आयात पर उच्च शुल्क लगायेंगे। अमरीका, पाकिस्तानी वस्तुओं, विशेष रूप से कपड़े का सबसे बड़ा आयातक है।
अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रम्प की जीत के बाद पाकिस्तान की चिंता बढ़ गयी है। उसे डर है कि नयी अमरीकी सरकार उसकी गतिविधियों पर अब तीखी नजर रखेगी और पहले की तरह उदारता नहीं बरतेगी। उसकी चिंता स्वाभाविक है और इसके खास कारण भी हैं। ट्रंप के पहले कार्यकाल के अंत के बाद पिछले चार साल में भू-राजनीतिक स्थिति नाटकीय रूप से बदल चुकी है।
अगस्त 2021 में पाकिस्तान के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया था। अमरीकी सेना की अफगान भूमि से शीघ्र वापसी में पाकिस्तान ने तालिबान की मदद की थी। उस समय के प्रधानमंत्री इमरान खान ने दावा किया था कि अफगान जनता ने जंजीरों से मुक्ति पा ली है। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि अगस्त 2021 में बाइडन प्रशासन की निगरानी के अधीन जो हुआ, वह डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में हुए दोहा समझौते की परिणति थी।
दोहा समझौते के रूप में प्रसिद्ध अमरीका और तालिबान के बीच हस्ताक्षरित यह शांति समझौता 29 फरवरी 2020 को कतर के दोहा में हुआ था, जिसका उद्देश्य 2001-2021 के अफगान युद्ध का अंत करना था। इमरान खान ने इस उम्मीद के साथ तालिबान को शांति समझौते में शामिल होने के लिए राजी करने में अमरीका और डॉनल्ड ट्रंप की मदद की थी कि अफगानिस्तान में दोस्ताना तालिबानी निजाम स्थापित होने से पाकिस्तान को भू-रणनीतिक बढ़त मिलेगी। साथ ही वाशिंगटन के साथ संबंधों में सुधार होगा।
यह पाकिस्तान के लिए एक सपने जैसा था, जो जल्दी ही कड़वा साबित हुआ। अमरीका ने पाकिस्तान का हाथ थामने से इनकार कर दिया और अफगानिस्तान में तालिबान शासन की वापसी इस्लामाबाद के लिए आपदा साबित हुई, क्योंकि तालिबान समर्थित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में सुरक्षा बलों और नागरिकों पर दुस्साहसी आतंकी हमले शुरू कर दिए। यह स्थिति पाकिस्तान के लिए एक दु:स्वप्न बन गई है, क्योंकि उसे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता पैदा करने वाले इस संकट से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है।
स्थिति इतनी गंभीर हो गयी है कि पाकिस्तान के सदाबहार दोस्त चीन ने अपने नागरिकों को टीटीपी और अन्य समूहों द्वारा निशाना बनाये जाने पर पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर अपनी नाराजगी जतायी है। उसने पाकिस्तान सरकार और सैन्य बलों पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर काम कर रहे चीनी नागरिकों के लिए सुरक्षित माहौल मुहैया करवाने में विफल रहने का आरोप लगाया है।
बताया जा रहा है कि बीजिंग ने यह भी सुझाव दिया है कि वह पाकिस्तान में कार्यरत अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपनी सेना तैनात कर सकता है, जो इस बात का संकेत है कि पाकिस्तान सुरक्षा के मोर्चे पर पूरी तरह विफल रहा है। 20 जनवरी, 2025 को डॉनल्ड ट्रंप के 47वें अमरीकी राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण करने के साथ ही पाकिस्तान की चिंता कई गुना बढ़ जायेगी। पाकिस्तान जानता है कि अमरीका के साथ उसके संबंध अच्छे नहीं हैं और नई सरकार में ये और खराब हो सकते हैं, क्योंकि ट्रम्प अमरीका फर्स्ट नीति के प्रबल समर्थक हैं।
ट्रंप ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह आयात पर उच्च शुल्क लगाएंगे। अमरीका, पाकिस्तानी वस्तुओं, विशेष रूप से कपड़े, का सबसे बड़ा आयातक है। ऐसे में पाकिस्तान को अमरीका के भू-राजनीतिक समीकरणों में अपनी जगह खोने का डर है। साथ ही निर्यात राजस्व व आर्थिक मदद में कटौती का डर सता रहा है। डॉनल्ड ट्रंप भारत के जांचे-परखे मित्र हैं। अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने 5 नवंबर को अपनी जीत के पहले ही दिन फोन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई संदेश लिया। वस्तुत: मोदी उन विश्व नेताओं में शामिल थे, जिनकी कॉल ट्रंप ने पहले-पहल सुनी। यह दोनों नेताओं और उनके देशों के संबंधों में गर्मजोशी को रेखांकित करता है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सभी क्षेत्रों में भारत का वैश्विक प्रभाव बढ़ा है। अमरीका में चाहे ओबामा, ट्रंप, बाइडन या अब फिर से ट्रंप का प्रशासन हो, रणनीतिक रूप से भारत की ओर झुकाव रखता है। अमरीका और भारत क्वाड, हिंद-प्रशांत क्षेत्र, जी-20 और कई अन्य वैश्विक मंचों पर रणनीतिक साझेदारी रखते हैं। यह विश्व मंच पर उभरते नए संबंध हैं, जहां अमरीका और भारत गुटीय राजनीति और कूटनीति का हिस्सा न होते हुए भी साथ आ रहे हैं।
भारत ने रूस पर एक स्वतंत्र और वाशिंगटन से विपरीत रुख अपनाया, इसके बावजूद दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध कायम हैं। अमरीका ने पाकिस्तान के मित्र चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने की धमकी दी है। इसलिए पाकिस्तान में यह समझा जा रहा है कि अमरीका उसे चीन के चश्मे से देखेगा जो उसके लिए अच्छा नहीं है और भारत के नजरिए से भी देखेगा, यह भी उसके लिए हानिकारक है। पाकिस्तान विश्व मंच पर और भी अलग-थलग पड़ सकता है, विशेष रूप से दक्षिण एशियाई क्षेत्र में उसे अधिक अलगाव का सामना करना पड़ सकता है।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को अमेरिका को चेतावनी जारी करते हुए हस्ताक्षरित नयी परमाणु नीति में स्पष्ट कर दिया है कि यूक्रेन द्वारा पश्चिमी रॉकेट्स के उपयोग पर रूस परमाणु प्रतिक्रिया दे सकता है। यह बयान क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान दिया।
पेस्कोव का यह बयान अमेरिका द्वारा यूक्रेन को लंबी दूरी की एमजीएम-140 आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम (एटीएसीएमएस) का उपयोग रूस के कुर्स्क क्षेत्र में करने की मंजूरी के बाद आया। पुतिन द्वारा हस्ताक्षरित इस नई नीति में कहा गया है कि यदि कोई परमाणु शक्ति किसी गैर-परमाणु देश को रूस के खिलाफ समर्थन देती है, तो यह रूस के लिए परमाणु प्रतिक्रिया का कारण बन सकती है।
यूक्रेन पर हमले के दौरान रूस कई बार यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगियों के खिलाफ परमाणु हथियार उपयोग की धमकी दे चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन सहित पश्चिमी नेताओं ने यह स्पष्ट किया है कि रूस और नाटो के बीच सीधा संघर्ष टालना उनकी प्राथमिकता है, क्योंकि इससे परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ सकता है।
रूस की इस नयी नीति और पेस्कोव के बयान ने पश्चिमी देशों और यूक्रेन के साथ पहले से चल रहे तनाव को और बढ़ा दिया है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पश्चिमी देश इस पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और यह स्थिति वैश्विक शांति को किस हद तक प्रभावित करती है। बता दें कि पुतिन ने देश की परमाणु नीति में बड़े बदलाव की घोषणा की है।
उन्होंने कहा है कि रूस पर पारंपरिक मिसाइलों से हमला होने की स्थिति में, खासकर जब उसे किसी परमाणु शक्ति का समर्थन प्राप्त हो, तो रूस परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर विचार कर सकता है। रूस की इस नई नीति ने विश्व में परमाणु खतरे की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। पुतिन ने स्पष्ट कर दिया है कि रूस अपनी सुरक्षा पर किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा।
यह नीति न केवल अमेरिका, बल्कि उन सभी देशों के लिए चेतावनी है, जो यूक्रेन को सैन्य सहायता दे रहे हैं। रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते तनाव से विश्व शांति को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। अब यह देखना होगा कि यह स्थिति वैश्विक राजनीति को किस दिशा में ले जाती है।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। अमेरिकी चुनाव में जीत के बाद 47वें राष्ट्रपति बनने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप ने बयान जारी करते हुए अमेरिकावासियों का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि आज से पहले ऐसा नजारा नहीं देखा। हम अपने बॉर्डर को मजबूत करेंगे। देश की सभी समस्याएं दूर करेंगे और उनका हर पल अमेरिका के लिए है।
ट्रंप ने कहा, 47वें राष्ट्रपति के रूप में मैं हर दिन आपके लिए लड़ूंगा। यह अमेरिका के लिए एक शानदार जीत है, जो अमेरिका को फिर से महान बनायेगी। उन्होंने आगे कहा, मैं आपके परिवार और भविष्य के लिए लड़ूंगा। हमें स्विंग स्टेट के मतदाताओं का भी साथ मिला। अगले चार साल अमेरिका के लिए स्वर्णिम होने वाले हैं। जनता ने हमें बहुत मजबूत जनादेश दिया है।
डोनाल्ड ट्रंप के बाद, अमेरिका के उप राष्ट्रपति उम्मीदवार जेडी वेंस ने भी रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों को संबोधित किया। जेडी वेंस ने अपने भाषण में कहा, मैं सभी को बधाई देना चाहता हूं। अमेरिका के इतिहास में यह एक महान राजनीतिक वापसी है। यह अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक वापसी भी है। गौरतलब है कि जेडी वेंस ने अपने क्षेत्र में भी जीत हासिल की है, और उनकी यह जीत रिपब्लिकन पार्टी के लिए एक और अहम उपलब्धि मानी जा रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हो गयी है, ऐसा फॉक्स न्यूज ने ऐलान किया है। ट्रंप की जीत के साथ अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिकी लोग रिपब्लिकन पार्टी की इस जीत को कैसे स्वीकार करते हैं। यहां पर कुल 538 इलेक्टोरल वोट होते हैं, और राष्ट्रपति बनने के लिए 270 वोटों का बहुमत चाहिए।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मंगलवार 5 नवंबर को वोटिंग हुई। इस चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी कमला हैरिस के बीच मुख्य मुकाबला था। कुछ जगहों पर मतगणना जारी है, लेकिन अमेरिकी कानून के मुताबिक ट्रंप को विजेता घोषित कर दिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अभी भी कुछ राज्यों में मतगणना जारी है। अलास्का और विस्कॉन्सिन के अनुमानों के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप को 279 इलेक्टोरल वोट मिल सकते हैं, जबकि कमला हैरिस के खाते में 223 वोट होंगे।
बता दें कि कुल 538 वोटों में जीत के लिए कम से कम 270 वोटों की जरूरत होती है। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक कमला हैरिस न्यू हैंपशायर में जीत हासिल कर सकती हैं।
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