टीम एबीएन, रांची। बिरसा मुंडा की जन्मभूमि खूंटी में विकास योजनाओं की रफ्तार इन दिनों काफी सुस्त पड़ गयी है। हालात यह है कि जिला विकास की दौड़ में पीछे छूटता दिख रहा है। बुनियादी ढांचे में हो रही देरी और लंबे समय से जारी पिछड़ेपन की तस्वीर लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रही है।
इसका ताजा उदाहरण खूंटी-सिमडेगा मुख्य मार्ग पर पोलो मैदान के पास बना वह पुल है, जो छह महीने पहले लगातार हुई बारिश में टूट गया था। हैरानी की बात यह है कि पुल टूटने के बाद बनाये जा रहे वैकल्पिक डायवर्जन का निर्माण कार्य भी अब तक अधूरा पड़ा है। इसके कारण स्थानीय लोगों को रोजमर्रा की आवाजाही में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
स्थानीय राम मनोहर महतो और काशीनाथ महतो ने बताया कि यह पुल ग्रामीणों के लिए जीवन रेखा है। पुल नहीं होने के कारण उन्हें कई किलोमीटर लंबा चक्कर लगाना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर एक छोटे से डायवर्जन को बनाने में छह महीने लग जाते हैं, तो पूरा पुल बनने में कितने साल लगेंगे?
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर उदासीनता का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि उनकी समस्याओं पर न तो ध्यान दिया जा रहा है और न ही अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की कोई गंभीरता दिख रही है। ग्रामीणों ने विडंबना का जिक्र करते हुए कहा कि जब किसी बड़े नेता का दौरा होता है तो रातों-रात सड़कें बन जाती हैं, पुल तैयार हो जाते हैं और पूरा इलाका चमका दिया जाता है।
लेकिन जब गांववालों के लिए पुल बनाने की बात आती है, तो सिस्टम सुस्त पड़ जाता है। ग्रामीणों का सवाल है कि आखिर क्यों बिरसा मुंडा जैसी महान विभूति की जन्मभूमि को विकास कार्यों में लगातार उपेक्षित किया जा रहा है। जिस जिले का नाम राज्य की राजनीति में हमेशा आगे रहता है, वहां विकास की यह स्थिति प्रशासनिक लापरवाही और जनप्रतिनिधियों की संवेदनहीनता को उजागर करती है।
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