चुनावी राज्यों में जोरों पर चल रहा दलबदल का कारोबार

 

एबीएन डेस्क। जहां-जहां इन दिनों चुनाव हैं, वहां-वहां दलबदल का कारोबार पूरे जोर-शोर से चल रहा है। जहां चुनाव नहीं हैं, वहां भी लोगों को राष्ट्रहित बहुत तेजी से याद आ रहा है। कई नेताओं को यह याद आ रहा है कि जिस पार्टी में वे हैं, उस पार्टी में रहकर देशसेवा और देश की तरक्की नहीं की जा सकती। इसका मतलब यह है कि हमारे देश के बहुत सारे नेता गलत पार्टियों में हैं, इसीलिए देश की तरक्की नहीं हो सकती। दलबदल करने वाले नेताओं की मानें, तो देश की सबसे बड़ी समस्या यही है कि जिसे भाजपा में होना चाहिए, वह कांग्रेस में है, और जिसे समाजवादी पार्टी में होना चाहिए, वह भाजपा में है। जिसे बसपा में होना चाहिए, वह किसी और पार्टी में है और जिसे किसी और पार्टी में होना चाहिए वह किसी अन्य पार्टी में है। इसका मतलब यह है कि जिसे जिस पार्टी में होना चाहिए, वह उसमें पहुंच जाए, तो अपने देश का कल्याण हो जाए। सवाल यह है कि ऐसे लोग हमारे नेता क्यों हैं, जिन्हें बरसों तक यही समझ में नहीं आता कि उन्हें किस सियासी पार्टी में होना चाहिए? जिन लोगों को 30-30 बरस तक यही पता नहीं चलता कि वे गलत पार्टी में हैं, वे अगर हमारा नेतृत्व करेंगे, तो यह कैसे मान लें कि वे हमें सही रास्ते पर ले जाएंगे? अगर कोई ड्राइवर दस घंटे बाद ही हमसे कहे कि मैं तो गलत रास्ते पर था, तो क्या हम उसे बर्दाश्त करेंगे? कई नेताओं में तो सही पार्टी चुनने की ऐसी लगन होती है कि वे जिंदगी भर खोजी नेता बने रहते हैं। वे पूरी जिंदगी एक पार्टी से दूसरी पार्टी में यह सूंघते हुए घूमते रहते हैं कि सही पार्टी कौन सी है और शायद जिंदगी के बाद भी वे स्वर्ग और नरक के बीच आवाजाही जारी रखते होंगे। उनकी वफादार जनता भी फुटबॉल की तरह उनके साथ-साथ यहां-वहां टकराती रहती है। गलत पार्टियों में रहने वाले नेता पाने के लिए हम इसीलिए अभिशप्त हैं कि हम सही नेता नहीं चुन सकते, गलती तो अपनी ही है।

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