संवैधानिक स्तंभों को खोखला करता भ्रष्टाचार

 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क (पवन)। भारत के गणतंत्र का, सारे जग में मान है, दशकों से खिल रही, उसकी अदभुत शान हैं। 26 जनवरी 1950 को, हमारा देश भारत संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, और लोकतांत्रिक, गणराज्य के रुप में घोषित हुआ। गणतंत्र दिवस मनाने का मुख्य कारण यह है कि इस दिन हमारे देश का संविधान प्रभाव में आया था।26 जनवरी 1950 के दिन भारत सरकार अधिनियम को हटाकर भारत के नवनिर्मित संविधान को लागू किया गया। इसलिए उस दिन से 26 जनवरी के इस दिन को भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। यह भारत के तीन राष्ट्रीय पर्वों में से एक है। इस दिन पहली बार 26 जनवरी 1930 में पूर्ण स्वराज का कार्यक्रम मनाया गया। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत से पूर्ण आजादी के प्राप्ति का प्रण लिया गया था। इस दिन का सबसे विशेष कार्यक्रम परेड का होता है, जिसे देखने के लिए लोगों में काफी उत्साह होता है। यह वह कार्यक्रम होता है, जिसके द्वारा भारत अपने सामरिक तथा कूटनीतिक शक्ति का भी प्रदर्शन करता है और विश्व को यह संदेश देता है कि हम अपने रक्षा में सक्षम है। आज हमारा संविधान विभन्न बीमारियों से ग्रसित हो गया है। भ्रष्टाचार, बलात्कार, प्रदूषण, जनसंख्या नियंत्रण जैसे अनेक समस्याओं ने भारत मां को लहूलुहान कर दिया है। आज भी हमारा गणतंत्र कितनी ही कंटीली झाड़ियों में फंसा हुआ प्रतीत होता है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र की स्थापना से लेकर क्या पाया, क्या खोया के लेखे-जोखे की तरफ खींचने लगता है। इस ऐतिहासिक अवसर को हमने मात्र आयोजनात्मक स्वरूप दिया है, अब इसे प्रयोजनात्मक स्वरूप दिये जाने की जरूरत है। इस दिन हर भारतीय को अपने देश में शांति, सौहार्द और विकास के लिये संकल्पित होना चाहिए। बीआर अंबेडकर ने भी समस्याओ के समाधान हेतु कानून लाने के बारे में कहा था- कानून व व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़ने लगे तो दवा जरुर देनी चाहिए। अपनी ममता से देश का बचपन संवारने वाली महिलाओ के साथ हो रहे अनेक प्रकार की हिंसा से उन्हें घायल कर दिया जाता है। एक तरफ लड़किया भारत का नाम विश्व मंच पर रौशन कर रही है वहीं दूसरी ओर महिलाओं का बलात्कार किया जाता है, तेजाब फेंक उन्हें झुलसाया जाता है और दहेज के लिए मार दिया जाता है। क्या सच में संविधान में जो अधिकार महिलाओं को मिले है उनको अब तक मिल पाया है? सात दशक बाद भी सवालों का परचम लहराती हुई नारी पूरे भारत के सामने जबाब के लिए खड़ी है। प्रश्न यह है कि नारी के उदर से जन्म लेकर उसकी गोद मे मचल कर, माता की ममता, बहन की स्नेह, प्रेयसी का प्यार तथा पत्नी का समर्पण पा कर भी पुरूष नारी के प्रति पाषाण कैसे बन गया? आखिर विवशता की आग में कब तक जलती रहेगी महिलाएं! तमाम चीजें सवाल बनकर संविधान के समक्ष खड़ा है। कब तक महिलाओ को वो सामाजिक अधिकार मिलेगा जो संविधान ने दिए हैं? राजनीतिक व्यवस्था से समाज में चुस्त, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, अनुशासित कानून बनाया जाए और प्रत्येक नागरिक चाहे जो कोई हो बेरोजगार या अमीर, सेवादार या किसान सब अपनी प्रत्यक्ष संपत्ति जायदाद का खुलासा करें कि जो भी चल-अचल धन है वही है और अप्रत्यक्ष कहीं भी देश या विदेश में मिलने पर जब्त होगा तो सजा मिलेगी। हमारी ज्यादातर प्रतिबद्धताएं व्यापक न होकर संकीर्ण होती जा रही हैं जो कि राष्ट्रहित के खिलाफ हैं। राजनैतिक मतभेद भी नीतिगत न रह व्यक्तिगत होते जा रहे हैं।

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