एबीएन एडिटोरियल डेस्क। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार में पहले चरण की 121 सीटों पर मतदान से एक दिन पहले दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग और भाजपा पर गंभीर आरोप लगाये। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक हैंडल से ट्वीट कर हरियाणा में डुप्लिकेट वोटर्स से लेकर बल्क वोटर्स तक, कैटेगरी वाइज आंकड़े भी बताये। इससे पहले भी राहुल गांधी वोट चोरी का मुद्दा उठा चुके हैं। लेकिन वो चुनाव आयोग में शपथ पत्र देकर शिकायत और अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाते हैं। बस प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से बेबुनियाद आरोप और दावे करते रहते हैं। असल में पटना से करीब 1100 किलोमीटर दूर जब राहुल गांधी हरियाणा विधानसभा चुनाव में फर्जी वोटिंग के किस्से सुना रहे थे तब ऐसा लग रहा था मानो वो बिहार में महागठबंधन की संभावित हार के लिए पेशबंदी कर रहे हैं।
राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों पर भाजपा ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। चुनाव आयोग ने भी कहा है कि कांग्रेस को डुप्लीकेट मतदाताओं को हटाने के लिए शिकायत दर्ज करवानी चाहिए थी। मीडिया रिपोर्ट के अुनसार हरियाणा राज्य की मतदाता सूची के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की गयी थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मतदाता सूची के खिलाफ कोई अपील नहीं दायर की गयीं।
राहुल गांधी के इस दावे को लेकर काफी विवाद हो रहा है। इनमें भी सबसे बड़ा विवाद तो ये है कि राहुल गांधी को ये कैसे पता चला कि जिन 22 वोटर कार्ड पर एक ही मॉडल की तस्वीर है, उन वोटर कार्ड से चुनावों में वोट डाले गये हैं। ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि राहुल गांधी जिस वोटर लिस्ट को दिखा कर ये पूरा दावा कर रहे हैं, वो वोटर लिस्ट मतदान के बाद की नहीं बल्कि मतदान से पहले की है। सोचिये मतदान से पहले की वोटर लिस्ट से राहुल गांधी को ये कैसे पता चला कि इन वोटर कार्ड से चुनाव में वोटिंग भी हुई। मीडिया की पड़ताल में राहुल गांधी के दावे झूठे साबित हुए।
सवाल यह भी है कि अगर कोई गड़बड़ी थी तो कांग्रेस के बूथ लेवल एजेंट्स ने संशोधन के दौरान एक ही नाम की एक से अधिक प्रविष्टियों को रोकने के लिए कोई दावा या आपत्ति क्यों नहीं दर्ज की? वहीं अगर कई नामों के दोहराव से बचना था तो संशोधन के दौरान कांग्रेस के बूथ-स्तरीय एजेंटों (बीएलए) ने कोई दावा या आपत्ति क्यों नहीं उठायी?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बिहार और हरियाणा दोनों में कांग्रेस के बूथ एजेंटों ने संशोधन के दौरान दोहराये गये नामों को लेकर कोई दावा या आपत्ति नहीं दर्ज की। सवाल यह भी है कि वोटर लिस्ट चुनाव से पहले उपलब्ध होती है। अगर कोई नाम छूट गया है तो उसे जुड़वाने की व्यवस्था होती है। वास्तव में, कांग्रेस और कई विपक्षी दल सत्ता हासिल करने के लिए किसी ने किसी बहाने देश की जनता को संवैधानिक संस्थाओं के प्रति उकसाते रहते हैं। चुनाव आयोग, ईडी, सीबीआई से लेकर तमाम दूसरी संवैधानिक संस्थाओं को कटघरे में खड़ा करते रहते हैं। राहुल गांधी तो चुनाव आयोग के अधिकारियों को खुली धमकी दे चुके हैं कि उनकी सरकार आयेगी तो वो जांच करवायेगी। वैसे अब तक चुनाव आयोग और चुनाव प्रणाली को लेकर विपक्ष के आरोप फर्जी और बेबुनियाद ही साबित हुए हैं।
प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने मीडिया का परिचय बिहार के कुछ ऐसे लोगों से भी कराया है, जिनके नाम वोटर लिस्ट से काट दिये गये हैं और इन लोगों का कहना है कि चुनाव आयोग की तरफ से उनके पास कभी कोई आया ही नहीं और बिना बताये उनका नाम वोटर लिस्ट से डिलीट कर दिया गया। अब यहां समस्या ये है कि राहुल गांधी देश को ये बता रहे हैं कि वोटर लिस्ट में क्या त्रुटियां हैं लेकिन चुनाव आयोग जब इन त्रुटियों को सुधारने के लिए वोटर लिस्ट का रिवीजन करना चाहता है तो वे इसका भी विरोध करते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी एसआईआर का समर्थन कर रहे हैं या इसका विरोध? जिन लाखों वोटरों का वोट कटा है, वो चुपचाप घरों में बैठकर राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस का इंतजार क्यों कर रहे थे, उन्हें तो सड़कों पर उतर आना चाहिए था।
वास्तव में, राहुल गांधी एक अगंभीर राजनीतिज्ञ हैं। उनकी राजनीति का मकसद सेवा की बजाय मेवा खाना और कमाना है। देश की जनता से जुड़ाव दिखाने के लिए वो किसान, ड्राइवर, कारपेंटर, हलवाई, कुली या पुताई वाले का अभिनय करते दिखते जरूर हैं लेकिन राजनीति और देश को लेकर उनकी समझ अल्प है। वहीं, उनकी एक समस्या यह भी है कि मोदी सरकार के खिलाफ वो जो आरोप लगाते हैं, उनका कोई ठोस आधार या प्रमाण उनके पास नहीं है। इस संबंध में उनके तमाम आरोप और दावे अतीत में गलत साबित हुए हैं। मोदी सरकार के खिलाफ वे पिछले एक दशक में कई आरोप लगा चुके हैं लेकिन चंद दिनों के शोरशराबे के बाद वे कोई नया आरोप लगाने लगते हैं।
देश की जनता मोदी और राहुल गांधी के बीच का फर्क सही से समझ रही है इसलिए कांग्रेस सत्ता से दूर है। राहुल गांधी के पास पक्के सुबूत हों तो उन्हें छाती ठोक कर चुनाव आयोग में शपथ पत्र दाखिल कर शिकायत दर्ज करनी चाहिए, अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए। लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि उनके आरोप केवल जनता को उकसाने के लिए हैं, संवैधानिक संस्थाओं और व्यवस्थाओं के प्रति नाराजगी का माहौल बनाने का है। कांग्रेस और विपक्ष के कई दलों का इको सिस्टम देश में अस्थिरता, अशांति और अराजकता का माहौल बनाने की फिराक में है।
देशी राजनीतिक दलों के इन षड्यंत्रों में विदेशी ताकतें खाद-पानी मुहैया करा रही हैं। आजकल राहुल गांधी जेन जी को बहला फुसलाकर सड़कों पर उतारना चाहते हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरूआत में राहुल गांधी ने कहा कि वोट चोरी रोकने के लिए भारत के जेन-जी को आगे आना होगा। राहुल गांधी बार-बार जेन-जी युवाओं का जिक्र कर रहे हैं, जिससे सवाल खड़ा होता है कि क्या वो भारत के युवाओं को सरकार के खिलाफ आंदोलन करने के उकसा रहे हैं? ये आरोप भाजपा लगा रही है। पिछले कुछ महीनों में जेन-जी युवाओं ने सिर्फ नेपाल में सरकार के खिलाफ हिंसक आंदोलन नहीं किया है, बल्कि मोरक्कों, मेडामास्कर, पेरू, फिलीपींस, केन्या और यहां तक कि इंडोनेशिया में भी चुनी हुई सरकारों के खिलाफ जेन-जी युवा हिंसक आंदोलन कर चुके हैं।
इनमें कुछ देशों में उन्होंने तख्तापलट भी कर दिया है। पिछले साल बांग्लादेश में भी जो तख्तापलट हुआ था, उसके पीछे भी जेन-जी छात्रों का हिंसक आंदोलन था, जिससे अब भाजपा राहुल गांधी की मंशा पर सवाल उठा रही है। जिस तरह विदेशी ताकतें भारत के बढ़ते कदमों को रोकना चाहती हैं। ऐसे में विपक्ष खासकर कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी और व्यवहार इस ओर इशारा करता है कि वो सत्ता हासिल करने के लिए वोट की बजाय तख्तापलट पर ज्यादा यकीन करते हैं। कुल मिलाकर जमीन और जनता से कटे नेता और राजनीतिक दल बिहार चुनाव में अपनी हार देखकर वोट चोरी का पुराना राग अभी से गाने लगे हैं। राहुल गांधी वोट चोरी का राग सबसे ऊंची आवाज में गा रहे हैं। (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैंं।)
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