झारखंड की सरकार में राजनीतिक बेचैनी...

 

त्रिवेणी दास 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। बिहार के चुनाव में इं.डि.या. गठबंधन में सीट शेयरिंग की कांग्रेस और राजद के बीच बिगड़ी स्थिति में गठबंधन के अंग झारखंड के झारखंड मुक्ति मोर्चा को सीट नहीं दिया गया। हेमंत सोरेन की पार्टी की बिहार में चुनाव लड़ने की इच्छा धरी की धरी रह गई और उसने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा के साथ ही साथ गठबंधन से अलग होने की घोषणा कर दी।

11 नवंबर को घाटशिला का उपचुनाव है भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच आमने-सामने की लड़ाई है। 14 नवंबर को परिणाम के बाद हेमंत सोरेन को अपनी रणनीति स्पष्ट करनी ही पड़ेगी; क्योंकि जब वह महा गठबंधन का अंग नहीं है तो कांग्रेस और राजद के साथ झारखंड में सरकार चलाने का औचित्य बच ही नहीं जाता है। झामुमो को कांग्रेस और राजद के द्वारा एक प्रकार से बिहार के चुनाव में धोखा दिया गया है इसलिए झारखंड में भी  गठबंधन तोड़ने का एकमात्र विकल्प बचता है।

कांग्रेस और राजद के विधायक क्या पाला बदलते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा में सम्मिलित हो जाएंगे? झारखंड मुक्ति मोर्चा क्या भाजपा के साथ गठबंधन बनाकर सरकार चलाएगी? हेमंत सोरेन के सामने मोटा-मोटी यही दो विकल्प है, उस स्थिति में जब उसने स्वयं को महा गठबंधन से अलग कर लिया है।

 सूत्रों के अनुसार भाजपा के रणनीतिकार झारखंड मुक्ति मोर्चा से गठबंधन स्थापित करने के प्रयास में लगे हुए हैं। अगर ऐसा होता है तो डबल इंजन की सरकार से झारखंड को भी फायदा होगा तथा झारखंड मुक्ति मोर्चा भी निश्चिंत होकर सरकार चलाएगी। 14 नवंबर के बाद झारखंड की राजनीति किस करवट बैठती है यह देखना दिलचस्प होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणी कर हैं और यह उनके निजी विचार हैं।)

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