एबीएन डेस्क। एक साल में झारखंड का गिरिडीह पूर्ण सौर ऊर्जा से संचालित शहर होगा। जलवायु परिवर्तन की लगातार गंभीर होती समस्या पर विचार करने के लिए स्काटलैंड के शहर ग्लासगो में कोप-26 शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया जो 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक चला। जलवायु परिवर्तन को लेकर काम करने वाली संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का लक्ष्य उत्सर्जन के स्तर को जीरो करने का है यानी ऐसी स्थिति जहां कोई भी देश ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन की मात्रा में बढ़ोतरी नहीं होने देगा। 2050 तक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं जाने दिया जाएगा। 130 से अधिक देशों ने इस लक्ष्य को स्वीकार किया है लेकिन भारत इस में शामिल नहीं है। 2 सप्ताह तक चले 26 में वैश्विक सम्मेलन में भारत ने अंतिम समय पर अपने कड़े प्रतिरोध के कारण कोयला ऊर्जा संबंधी घोषणा से फेजआउट (उत्पादन खत्म करना)को हटवा कर फेज डाउन (धीरे-धीरे कम करना) जुड़वा दिया। इस बात के लिए दुनिया भर की आलोचना झेलने के बाद भारत की तरफ से यह स्पष्ट किया है कि मसौदे में बदलाव में अकेले भारत की नहीं है? यह भी गौरतलब है कि संपन्न देशों को अपनी नैतिक जिम्मेदारी का पूर्ण एहसास इन 2 सप्ताह के दौरान नहीं कराया जा सका। परिणाम स्वरूप विकासशील देशों की मांग कि धनी देश ऊर्जा स्थानांतरण (प्रदूषण करने वाले उर्जा स्रोतों की जगह स्वच्छ ऊर्जा की ओर जाने) में विकास शील देशों की ज्यादा मदद करें, लगभग अनसुनी रही। 2009 और 2015 में विकसित देशों ने वादा किया था कि 2020 से वे हर साल इस मद में 100अरब डालर देंगे। तापमान वृद्धि रोकने का लक्ष्य 2 डिग्री से घटाकर 1.5 डिग्री किया गया है, इसलिए ऊर्जा ट्रांसफर करने में अधिक पैसों की जरूरत होगी। सम्मेलन में अपेक्षा की गई कि 2025 तक 100 अरब डॉलर प्रतिवर्ष देने के बाद यह देश इस राशि को और बढ़ाएंगे ताकि सन 2030 तक कोयला आधारित बिजली को काफी हद तक कम किया जा सके। भारत और चीन धीरे-धीरे कोयले पर निर्भरता कम करना चाहते हैं, क्योंकि दोनों देशों में कोयला प्रचूर मात्रा में है और अचानक दूसरे ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन या परमाणु ऊर्जा) पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता क्योंकि इन स्रोतों से उत्पादन प्रति मेगावाट कई गुना ज्यादा खर्च आता है । फिर कोयला, पेट्रोलियम, गैस एलपीजी आदि में लगे लाखों कर्मचारियों के रोजगार का भी प्रश्न है। भारत 1342 ट्रिलियन यूनिट बिजली उत्पादन करता है जिसमें 948 ट्रिलियन यूनिट कोयले से बनती है ।भारत में कोयला खदानों से लेकर अंतिम खपत तक 40 लाख लोग नौकरी करते हैं? इसलिए भारत अभी इसका इस्तेमाल बंद नहीं कर सकता। कोयला सबसे सस्ता इंधन है जो अर्थव्यवस्था रोशन कर लाखों लोगों को गरीबी के अंधेरे से निकालने के लिए घरेलू रूप से उपलब्ध है। चीन 4876 ट्रिलियन यूनिट बिजली कोयले से बनाता है ।भारत ने 2019 में 999 ट्रिलियन यूनिट उत्पादन किया और 2020 में इससे कम कर 948 ट्रिलियन पर ले आया। चीन, भारत और अमेरिका मिलकर उतना कोयला इस्तेमाल करते हैं जितना पूरी दुनिया कुल मिलाकर करती है। 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में आस्ट्रेलिया में प्रति व्यक्ति कोयला उत्सर्जन सबसे अधिक है इसके बाद दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और चीन है। जीवाश्म ईंधन - कोयला, तेल और गैस में कोयला पर्यावरण का सबसे बड़ा शत्रु है जो 20% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करता है। कोयला जलने से वायु प्रदूषण, स्मोग एसीड रेन जैसे पर्यावरणीय दुष्परिणामों और स्वास्थ संबंधी बीमारियों का खतरा है, इसलिए दुनिया कोयले के विकल्प ध्यान दे रही है। 6 साल पहले पेरिस में दुनिया भर के देश जलवायु परिवर्तन को लेकर कार्यक्रमो पर सहमत हुए थे तब ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस करने की कोशिश पर रजामंदी बनी थी। पेरिस समझौते में विकसित देशों ने शपथ ली थी कि वे हर साल जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सौ बिलियन डॉलर देंगे मगर ऐसा हुआ नहीं। सी ओ पी 26 मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए और उन्होंने साहसी घोषणा करते हुए कहा कि भारत वर्ष 2070 में कुल 0 उत्सर्जन /नेटजीरो का लक्ष्य प्राप्त करेगा। इसके साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत एक मात्र देश है जो पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उसकी भावना के तहत अक्षरश: कार्य कर रहा है। गैर जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को 450 गीगावॉट से बढ़ाकर 500 गीगावॉट करने की घोषणा की उनके अनुसार भारत 500 गीगावॉट के जीवाश्म ईंधन क्षमता 2030 तक हासिल करेगा। भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50% नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करेगा। भारत आज से 2030 के बीच अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में कटौती करेगा। पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को बनाया जाए। मोदी ने याद कि विकसित देशों को जलवायु पित्त पोषण के लिए 100 अरब डॉलर देने के अपने वादे को पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसकी निगरानी इसी तरह की जानी चाहिए जैसे जलवायु की होती है। भारत का दुनिया की आबादी में 17% हिस्सेदारी है लेकिन उत्सर्जन महज 5% है। 2070 तक नेट जीरो की लक्ष्य को प्राप्त करना भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है। कोयले के चलन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की राह में खड़ी बाजार की शक्तियां, दुरुह वित्तीय स्थितियां और अन्य कई बाधाएं हैं।भारत के विकास में बने चुनौतियों को और जलवायु से जुड़े रणनीतियों को सिर्फ कोयले तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता मगर कोयला निश्चित रूप से चर्चा का प्रमुख केन्द्र है। अक्षय ऊर्जा कोयले से बनने वाली बिजली के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी और किफायती हैं। यह बहुत महत्वकांक्षी लक्ष्य है। वर्ष 2030 तक हमारी कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 57% गैर जीवाश्म इंधन स्रोतों से होगा। कोयले का आयात पर किए जाने वाला खर्च एक लाख करोड़ प्रतिवर्ष से कुछ नीचे है जो 2030 में 13 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। विकसित देशों की तरफ से क्लाइमेट फाइनेंस की जो प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है वह जरूरत के हिसाब से बहुत थोड़ी है। 100 बिलियन डॉलर ना तो वैश्विक तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए काफी है और न नेटजीरो सिनेरियो के लिए पर्याप्त है। एक अनुमान के मुताबिक विकासशील देशों को वर्ष 2030 तक 5.9 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत होगी। अकेले भारत को ही अपनी 500 गीगा वाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने और अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए 1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा क्लाइमेट फाइनेंस की आवश्यकता होगी।
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