एबीएन सोशल डेस्क। श्री कृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट एवं विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि हिंदू धर्म में विवाह पंचमी बहुत ही खास त्योहार मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान राम ने मां सीता से विवाह किया था।
इस तिथि को श्रीराम विवाहोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इसकी विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह भगवान राम और माता सीता की शक्ति का प्रतीक माना जाता है. ये दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान राम और मां सीता का विवाह करवाना शुभ होता है।
इस वर्ष विवाह पंचमी का पर्व 25 नवंबर दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। यह दिन भगवान श्रीराम और माता सीता के पावन विवाह के स्मरण का उत्सव है। उत्तर भारत, विशेषकर जनकपुर और अयोध्या में यह पर्व अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।विवाह पंचमी का महत्व इस तथ्य से जुड़ा है कि इस शुभ तिथि पर भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम ने राजा जनक की पुत्री सीता जी से विवाह किया था।
शास्त्रों के अनुसार यह विवाह केवल सामाजिक या पारिवारिक बंधन नहीं था, बल्कि धर्म, मर्यादा और आदर्शों के दिव्य मिलन का प्रतीक था। इसी कारण यह दिन आदर्श दांपत्य जीवन का संदेश देता है। भक्त इस तिथि को भगवान राम-सीता के विवाह उत्सव के रूप में मनाते हैं और अपने जीवन में प्रेम, त्याग, संयम तथा धर्मपालन के संस्कार को अपनाने की प्रेरणा लेते हैं।
रामायण के अनुसार मिथिला के राजा जनक एक बार खेत जोतते समय धरती से एक दिव्य कन्या को पाते हैं। यह कन्या उनकी दत्तक पुत्री बनी-यही थीं जनकनंदिनी सीता। उनके युवा होने पर राजा जनक ने निश्चय किया कि वह सीता का विवाह उसी वीर पुरुष से करेंगे जो शिवजी के अत्यंत भारी धनुष पिनाक को प्रत्यंचा पर चढ़ा सके।
इस धनुष को भगवान शिव ने राजा जनक के पूर्वजों को भेंट दिया था, जिसे कोई भी योद्धा हिला तक नहीं सका था। इधर अयोध्या में राजकुमार राम अपने गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुँचे। वहां भगवती सीता ने राम को देखा और मन ही मन उन्हें अपने पति के रूप में वरण कर लिया। स्वयंवर में सभी राजाओं और वीरों ने शिव धनुष उठाने का प्रयास किया, किंतु असफल रहे।
अंततः भगवान राम ने गुरु की आज्ञा से धनुष को सहज रूप से उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयत्न किया, जिसके परिणामस्वरूप धनुष टूट गया। यह देखकर जनकपुर में आनंद की लहर दौड़ गई और सीता-राम का विवाह निश्चित हुआ।मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी के शुभ दिन राजा दशरथ स्वयं बारात लेकर जनकपुर पहुँचे।
जनक-सुनयना ने हर्ष और भावविभोर होकर सीता का विवाह राम से संपन्न कराया। इसी दिन तीन अन्य पवित्र विवाह भी हुए-भरत-मांडवी, लक्ष्मण-ऊर्मिला तथा शत्रुघ्न–श्रुतकीर्ति। जनकपुर में इन चारों विवाहों का उत्सव आज भी विवाह पंचमी महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।इस दिन भक्त राम-सीता की प्रतिमाओं का पारंपरिक विवाह कराया जाता है।
मंदिरों में शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं और रामायण के मंगलमय विवाह प्रसंग का पाठ किया जाता है। विवाहित दंपति इस दिन मंदिर जाकर अपने दांपत्य जीवन की सुख-समृद्धि के लिए आशीर्वाद लेते हैं, जबकि अविवाहित युवक-युवतियाँ आदर्श जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए भगवान राम-सीता का आशीष माँगते हैं।
विवाह पंचमी केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों का जीवंत प्रतीक है। यह हमें धर्म, मर्यादा, निष्ठा और प्रेम से परिपूर्ण दांपत्य जीवन का संदेश देती है। सीता-राम का दिव्य मिलन युगों-युगों तक मानव जीवन को मार्गदर्शित करता रहेगा।
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