एबीएन एडिटोरियल डेस्क। नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका दंगों के बाद, हम अपने देश के हर गांव में देशभक्तों द्वारा निर्मित लोकतांत्रिक ताकतों का निर्माण करें। दंगे और अराजकता, नेपाल संसद का दहन। ऐसी घटना किसी भी देश को आर्थिक रूप से कम से कम 10 साल पीछे धकेलने के लिए काफी है। रोजाना कमाने वालों को तुरंत सड़क पर लाकर खड़ा कर देती है। कल श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, और आज... नेपाल...। अगला भूटान, भारत..??। अगर हम यह सोचें कि ये महज संयोग हैं, तो यह बहुत बड़ी भूल है। यह सब किसी योजना की चमक-दमक से हो रहा है और कुछ विदेशी ताकतें यह देशों को अपने कब्जे में ले रही हैं।
2014 में मोदी किसी संयोग से जीत गये थे, और 2019 में हमारे हाथों में एक कमजोर सरकार बनेगी और उन अंतरराष्ट्रीय ताकतों का समर्थन करने वाली कुछ आंतरिक ताकतों को उम्मीद थी कि भारत पर हमारी पकड़ फिर से स्थापित हो जायेगी। लेकिन 2019 में, वे ताकतें इस बात को पचा नहीं पायी कि मोदी पहले से ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता में लौटे हैं।
इसीलिए उपर्युक्त देशों में जिस प्रकार की अराजकता हुई/हो रही है, वैसी ही अराजकता इस देश में भी पैदा हुई है और देश को अस्थिर करने के षड्यंत्र विशेषकर 2019 के बाद से बढ़ गये हैं। कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां, जिन्हें भारत का विकास बर्दाश्त नहीं है, उन्होंने आंतरिक शत्रुओं के साथ मिलकर ऐसी स्थिति पैदा करने का कई बार प्रयास किया है।
इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान, प्रदर्शनकारियों ने उन्हें चाहे जितना भी उकसाया हो, एनडीए मोदी सरकार शांत रही और उसने पुलिस फायरिंग या सेना बुलाने का सहारा नहीं लिया, बल्कि प्रदर्शनकारियों के खुद ही अपना विरोध प्रदर्शन खत्म करने का इंतजार किया। मोदी के प्रशंसकों ने भी मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की कि उसने विरोध करने वालों या उनके पीछे की ताकतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई किये बिना, बहुत नरम रुख अपनाया।
इन विरोध प्रदर्शनों को भड़काने वालों की यही मंशा है। आम लोगों और मोदी समर्थकों में असंतोष पैदा करने और मोदी विरोधी माहौल बनाने के लिए, यानी अगर पुलिस गोलीबारी होती है और किसान या युवा मरते हैं, तो कुछ दुष्ट ताकतों ने उन मौतों का विरोध प्रदर्शनों को और तीव्र व हिंसक बनाने की योजना बनायी है। यही कारण है कि एनडीए सरकार ने सोशल मीडिया के जरिए अपने समर्थकों द्वारा डाले जा रहे दबाव के बावजूद संयम बनाये रखा है और रणनीतिक रूप से शांतिपूर्ण तरीकों से विरोध प्रदर्शनों का सामना किया है और उन्हें दबा दिया है।
लेकिन, हर दिन एक जैसा नहीं होता। अगर हम रोजाना बहुत सावधानी से गाड़ी चलायें, तो भी दुर्घटना होने की संभावना हमेशा बनी रहती है। इसलिए गाड़ी चलाते समय आलस्य ठीक नहीं है। साथ ही, सरकार चाहे कितने भी आंदोलन कुशलता से निपटा ले, यह नहीं कहा जा सकता कि सरकार हर बार आंदोलनकारियों के खिलाफ सफल होगी। तो सुरक्षा मार्ग क्या है।
इसलिए, हमारे आम लोगों को अपनी संपत्ति, बीवी-बच्चों की रक्षा के लिए चौबीसों घंटे सतर्क रहना चाहिए और देशभक्ति से ओतप्रोत होना चाहिए। ऐसी चिंता की घड़ी में, हमारी पहली जिÞम्मेदारी अपनी संपत्ति और अपने परिवार के सदस्यों की रक्षा करना है। कुछ लोग सोच रहे हैं कि अगर एनडीए मोदी सरकार बांग्लादेश, नेपाल जैसे आंदोलनों के कारण, एनडीए, मोदी या भाजपा के खिलाफ नफरत के कारण सत्ता से गिर जाए, तो बस इतना ही काफी होगा। अगर ऐसा सचमुच होता है और मोदी सत्ता खो देते हैं, तो उन्हें कुछ नहीं खोना पड़ेगा।
लेकिन देश में मौजूद विनाशकारी ताकतें इन चिंताओं को रोककर सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचाती हैं। अगर अर्थव्यवस्था अकल्पनीय तरीके से ढह जाती है, तो रोजाना कमाई पर गुजारा करने वाले छोटे व्यापारी और मजदूर अपनी नौकरियां खोकर सड़क पर आ जायेंगे आम लोग। हिंसक घटनाओं में वे अपनी संपत्ति, जैसे स्कूटर, कार और घर, गँवा देते हैं। अपनों को खोने की भी संभावना रहती है। क्योंकि भीड़तंत्री लोगों में विवेक नहीं होता।
घटनाक्रम के प्रति सजग रहें और सावधान रहें। देश में ऐसी परिस्थितियां न आयें, इसके लिए आइये, हर गांव के देशभक्तों के साथ मिलकर ग्राम रक्षा दल बनायें। आइये, युवाओं को अच्छाई और बुराई की जानकारी दें और उनके मन में यह सही ज्ञान डालें कि देश में सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान न पहुंचायें।
1990 में, विदेशी देशों की प्रेरणा और उनके आर्थिक सहयोग से राजशाही के विरुद्ध बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाया गया। इसके परिणामस्वरूप, संसदीय लोकतंत्र भी अस्तित्व में रहा और राजशाही भी चलती रही। वर्ष 2000 के बाद, एक और चिंता उत्पन्न हुई जिसके परिणामस्वरूप राजशाही व्यवस्था को हटा दिया गया और प्रत्यक्ष संसदीय प्रणाली डेमोक्रेसी के नाम पर पड़ोसी देश के हाथों में कठपुतली सरकार आ गयी। उनका औपनिवेशिक शासन जारी है। यह सच है कि नेपाल सैकड़ों पहाड़ों से सारे संसाधन ले लिया जा रहा है।
इस स्थिति को देखते हुए, कुछ नेपाली लोग, जिन्हें लगा कि पुरानी राजशाही व्यवस्था उनके लिए बेहतर है, सड़कों पर उतर आये और अपनी राय व्यक्त की। आज नेपाल गंभीर संकट में है क्योंकि अब डीप स्टेट के नाम से दूसरे देशों के अस्तित्व को चुनौती देने के लिए शुरू की गयी एक व्यवस्था ने उन देशों को लूटा और अस्थिर किया है।
वर्तमान में नेपाल में काठमांडू के मेयर... बालेन शाह उनको नेपाल के भावी प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद है। नेपाल में जेन-जेड विरोध प्रदर्शनों के पीछे विदेशियों के हाथ में यही ताकत है। बालेन शाह सिविल इंजीनियर... पॉप सिंगर... पद्मा ग्रुप आफ कंपनीज के संयुक्त प्रबंध निदेशक।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने उनके बारे में काफी कुछ लिखा है। उसी न्यूयॉर्क टाइम्स ने पहले अरविंद केजरीवाल के बारे में भी काफी कुछ लिखा था... न्यूयॉर्क टाइम्स डीप स्टेट के माउथपीस।
क्या आप समझते हैं कि वह किसके हाथों में हैं! कई देशों को अस्थिर करने वाली डीप स्टेट शक्तियां भारत में भी उथल-पुथल मचा रही हैं। भारत का लोकतंत्र, जिसने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, इतना मजबूत है कि सरकार, सैन्य बल और देशभक्त शहर एवं ग्रामीण जनता किसी भी आंदोलन से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए तैयार हैं। (लेखक राष्ट्रीय गोरक्षा प्रमुख हैं।)
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