संस्कृत भाषा : संस्कृति, श्रद्धा और शुद्धता का संगम

 

डॉ उषा किरण 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। श्रावण पूर्णिमा के दिन संस्कृत भाषा दिवस भी मनाया जाता है। इसे विश्व संस्कृत दिवस भी कहा जाता है। यह दिवस प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत के सम्मान में मनाया जाता है। श्रावण पूर्णिमा अर्थात् रक्षाबंधन के दिन को संस्कृत दिवस के रूप में मनाने का निर्णय भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने 1969 में लिया था। संस्कृत को देवों की भाषा कहा गया है और यह भारत की कई भाषाओं की जननी मानी जाती है। 

श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह केवल रक्षाबंधन का पर्व नहीं, बल्कि एक और दिव्य उद्देश्य से भी जुड़ा हुआ है — संस्कृत भाषा दिवस। हर वर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन संस्कृत दिवस के रूप में एक विशेष आयोजन अखिल भारतीय स्तर पर किया जाता है, जो हमें हमारी गौरवशाली भाषा, उसकी परंपराओं और उसके अमूल्य साहित्य की स्मृति दिलाता है। 

  1. संस्कृत दिवस की शुरुआत : भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 1969 में यह निर्णय लिया कि श्रावण मास की पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जायेगा। यह निर्णय केवल एक भाषा को सम्मान देने का नहीं था, बल्कि एक समूची विचारधारा, एक जीवनशैली और भारतीय ज्ञान परंपरा को पुन: जाग्रत करने का एक संकल्प था। संस्कृत केवल भाषा नहीं, भारतीय संस्कृति की आत्मा है। संस्कृत को यूं ही देववाणी या देवों की भाषा नहीं कहा गया। यह वह भाषा है जिसमें वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत, गीता जैसे ग्रंथों की रचना हुई। यह वह माध्यम है जिसके द्वारा योग, आयुर्वेद, खगोल, गणित, दर्शन, व्याकरण और नाट्यशास्त्र जैसे विषयों ने विश्व पटल पर भारतीय सभ्यता की छवि बनायी। संस्कृतं नाम देवभाषा, संस्कृति: तस्य धारिणी। अर्थात् संस्कृत केवल भाषा नहीं, बल्कि संस्कृति की संवाहक भी है। 
  2. रक्षाबंधन और संस्कृत आध्यात्मिक समरसता : संयोग की बात है कि संस्कृत दिवस उसी दिन मनाया जाता है, जिस दिन रक्षाबंधन जैसा सामाजिक और भावनात्मक पर्व भी होता है। रक्षाबंधन में बहन भाई को रक्षा-सूत्र बांधती है और संस्कृत भाषा भी हमें ज्ञान की रक्षा करने का सूत्र प्रदान करती है। यह भाषा हमें आत्मा और ब्रह्म के बीच के गहरे संबंधों को समझने की शक्ति देती है। 
  3. संस्कृत की वैज्ञानिकता और वैश्विक मान्यता : संस्कृत भाषा की विशेषता उसकी संरचना, ध्वन्यात्मकता और व्याकरणिक परिपूर्णता में निहित है। नासा के वैज्ञानिकों ने स्वीकारा है कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए संस्कृत सबसे उपयुक्त भाषा है क्योंकि इसकी संरचना अत्यंत तार्किक और स्पष्ट है। विश्व के कई विश्वविद्यालयों में आज संस्कृत एक महत्वपूर्ण अध्ययन विषय बन चुका है — जैसे कि जर्मनी, अमेरिका, इंग्लैंड, जापान आदि में। आधुनिक युग में संस्कृत का महत्व उल्लेखनीय है. आज के समय में संस्कृत आम बोलचाल की भाषा नहीं रही, परंतु इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। यह भारतीय भाषाओं की मूल जननी है — हिंदी, मराठी, बंगाली, कन्नड़, तेलुगु, उड़िया आदि सभी भाषाओं की जड़ें कहीं न कहीं संस्कृत में हैं। संस्कृत भाषा में छिपे ज्ञान को यदि आधुनिक युग के अनुरूप पुन: प्रस्तुत किया जाए, तो यह मानवता को न केवल सांस्कृतिक, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित करती है। 
  4. संस्कृत दिवस का उद्देश्य : संस्कृत दिवस केवल एक रस्मी आयोजन नहीं, बल्कि एक आमंत्रण है पुनर्जागरण का। इसका उद्देश्य है-  
  • युवाओं को संस्कृत के प्रति आकर्षित करना 
  • शैक्षणिक संस्थानों में संस्कृत की सक्रिय भूमिका को बढ़ावा देना 
  • वेदों और शास्त्रों के अध्ययन को पुनर्जीवित करना 

संस्कृति और भाषा को जोड़ने वाले सूत्र को पुन: जागृत करना 
उदाहरण रूप में - एक प्रेरणास्पद संस्कृत श्लोक है - 
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यमप्रियम। 
प्रियं च नानृतं ब्रूयात, एष धर्म: सनातन:॥ 
अर्थात सत्य बोलो, प्रिय बोलो। अप्रिय सत्य मत बोलो। प्रिय हो परंतु असत्य न बोलो- यही सनातन धर्म है।

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