टीम एबीएन, रांची। विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं राष्ट्रीय सनातन एकता मंच के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन मनाया जाने वाला आंवला नवमी पर्व हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। यह पर्व आंवले के पेड़ की पूजा के लिए मनाया जाता है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है।
हिंदू पंचांग के अनुसार अक्षय नवमी का आरंभ 9 नवंबर की रात को 10 बजकर 45 मिनट पर होगा और अगले दिन 10 नवंबर को रात 9 बजकर 1 मिनट पर इसका समापन होगा। इसलिए उदया तिथि की मान्यता के अनुसार अक्षय नवमी 10 नवंबर की रात को मनायी जायेगी। पौराणिक कथा के अनुसार, आंवले के पेड़ की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई थी।
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया, तो उन्होंने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने भगवान विष्णु को तीन पग भूमि देने का वचन दिया, लेकिन भगवान विष्णु ने तीन पग में ही समस्त भूमि को माप लिया और राजा बलि को पाताल लोक में भेज दिया। राजा बलि की पत्नी विंध्यावली ने भगवान विष्णु से अपने पति की मुक्ति के लिए प्रार्थना की।
भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि आंवले के पेड़ की पूजा से राजा बलि की मुक्ति होगी। आंवला नवमी में महिलाएं आंवला पेड़ की पूजा पूरे विधि विधान के साथ करती है। आंवले के पेड़ की पूजा से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने से स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है। आंवला नवमी पर्व हमें स्वास्थ्य और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। इस पर्व को मनाने से हमें भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और हमारे जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
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