एबीएन डेस्क, रांची। वर्तमान कोरोना के संकट को पार करने के लिए भारत सरकार ने भारी मात्रा में ऋण लेने की नीति अपनाई है। ऋण के उपयोग दो प्रकार से होते हैं। यदि ऋण लेकर निवेश किया जाए तो उस निवेश से अतिरिक्त आय होती है और उस आय से ऋण का ब्याज एवं मूल का पुनर्भुगतान किया जा सकता है। जिस प्रकार उद्यमी ऋण लेकर उद्योग स्थापित करता है, अधिक लाभ कमाता है, और उस अतिरिक्त लाभ से ऋण का भुगतान करता है। ऐसे में ऋण का सदुपयोग उत्पादक कार्यों के लिए होता है। लेकिन यदि ऋण का उपयोग घाटे की भरपाई के लिए किया जाए तो उसका प्रभाव बिल्कुल अलग होता है। खपत के लिए उपयोग किये गये ऋण से अतिरिक्त आय उत्पन्न नहीं होती बल्कि संकट के दौरान लिए गये ऋण पर अदा किए जाने वाले ब्याज का अतिरिक्त भार आ पड़ता है। जैसे किसी कर्मी की नौकरी छूट जाए और वह ऋण लेकर अपनी खपत को पूर्ववत बनाए रखे तो भी दुबारा नौकरी पर जाने के बाद लिए गये ऋण पर ब्याज का भुगतान करना पड़ेगा। इस प्रकार उसकी शुद्ध आय में गिरावट आएगी। पूर्व में ब्याज नहीं देना पड़ता था जो कि अब देना पड़ेगा। इस परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार समेत विश्व के तमाम विकासशील देशों द्वारा संकट पार करने के लिए ऋण लेने पर विचार करना होगा। ये ऋण नौकरी छूटने पर लिए गए ऋण के सामान है। चूंकि इनसे अतिरिक्त आय उत्पन्न नहीं हो रही है। इसलिए विश्व बैंक ने चेताया है कि ऋण लेकर संकट पार करने की नीति भविष्य में कष्टप्रद होगी। उन्होंने वेनेजुएला का उदाहरण दिया है, जिसने भारी मात्रा में ऋण लिए। आज उस देश को खाद्य सामग्री प्राप्त करना भी दुश्वार हो गया है। चूंकि ब्याज का भारी बोझ आ पड़ा है। इसी क्रम में छह विकासशील देश जाम्बिया, एक्वाडोर, लेबनान, बेलीज, सूरीनाम और अर्जेंटीना ने अपने ऋण की अदायगी से वर्ष 2020 में ही डिफाल्ट कर दिया है। वे लिए गए ऋण का भुगतान नहीं कर सके हैं। साथ-साथ 90 विकासशील देशों ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से आपात ऋण की सुविधा की मांग की है। जिससे पता लगता है कि विकासशील देशों द्वारा लिये जाने वाले ऋण का प्रचलन फैल भी रहा है और उन्हें संकट में भी डाल भी रहा है। तुलना में अमेरिका और चीन द्वारा लिए गये ऋण का चरित्र कुछ भिन्न है। अमेरिकी सरकार ने भारी मात्रा में ऋण लेकर अपने नागरिकों को नगद ट्रांसफर किए हैं। लेकिन साथ-साथ उन्होंने नयी तकनीकों में भारी निवेश भी किया है। जैसे अमेरिकी सरकार ने बैक्टीरिया रोगों की रोकथाम के लिए प्रकृति में उपलब्ध फाज से उपचार के लिए सब्सिडी दी है। इसी प्रकार चीन ने अमेरिका और रूस के साथ अंतरिक्ष यान बनाने के स्थान पर स्वयं अपने बल पर अंतरिक्ष यान बनाना शुरू कर दिया है और उसका पहला हिस्सा अंतरिक्ष में भेज दिया है; चीन ने सूर्य के बराबर तापमान पैदा किया है; अपने ही लड़ाकू विमान बनाये हैं; और मंगल ग्रह पर अपने सेटेलाइट को उतारा है। ऐसे में अमेरिका और चीन द्वारा लिए गये ऋण का चरित्र भिन्न हो जाता है। ये उसी प्रकार हैं जैसे कि उद्यमी ऋण लेकर उद्योग स्थापित करता है और उससे अतरिक्त लाभ कमाता है। अत: भारत द्वारा ऋण लेकर संकट को पार करने की नीति उचित नहीं दिखती जबकि अमेरिका और चीन की ऋण लेकर निवेश करने की नीति सही दिशा में प्रतीत होती है। भारत सरकार द्वारा लिये जाना वाला ऋण एक और दृष्टि से संकट पैदा कर सकता है। पिछले महीने अप्रैल, 2021 में जीएसटी से प्राप्त राजस्व में भारी वृद्धि हुई है। पिछले दो वर्ष में लगभग 1.0 लाख करोड़ रुपये प्रति माह से बढ़कर मार्च, 2021 में 1.23 लाख करोड़ और अप्रैल, 2021 में 1.41 लाख करोड़ का राजस्व जीएसटी से मिला है। इस आधार पर सरकार द्वारा लिया गया ऋण स्वीकार हो सकता है। लेकिन तमाम आंकड़े इतनी उत्साहवर्धक तस्वीर नहीं पेश करते । मैकेंजी द्वारा किए गये एक सर्वेक्षण में जनवरी, 2021 में देश के 86 प्रतिशत लोग देश की अर्थव्यवस्था के प्रति सकारात्मक थे जो कि अप्रैल, 2021 में घटकर 64 प्रतिशत हो गये थे। डिप्लोमेट पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के अनुसार फैक्टरियों द्वारा बाजार से खरीद करने वाले मैनेजरों में मार्च 2021 में 54.6 प्रतिशत सकारात्मक थे जो अप्रैल में घटकर 54.0 प्रतिशत रह गये थे। मार्च और अप्रैल के बीच पेट्रोल की खपत में 6.3 प्रतिशत की गिरावट आई है, डीजल की खपत में 1.7 प्रतिशत की गिरावट आई है, कारों की बिक्री में 7 प्रतिशत की गिरावट आई है और अंतर्राज्यीय ईवे बिलों में 17 प्रतिशत की गिरावट आई है। अत: अर्थव्यवस्था के मूल आंकड़े मार्च की तुलना में अप्रैल में नकारात्मक हैं। इसके बावजूद जीएसटी की वसूली में भारी वृद्धि हुई है। इसका कारण संभवत: यह है कि बीती तिमाही में जो जीएसटी अदा किया जाना था वह अप्रैल में अदा किया गया है; अथवा सरकार ने जीएसटी के रिफंड रोक लिए हैं। और भी कारण हो सकते हैं जिनका गहन अन्वेषण करना जरूरी है। बहरहाल इतना स्पष्ट है कि जीएसटी की वसूली में वृद्धि के बावजूद मूल अर्थव्यवस्था की तस्वीर विपरीत दिशा में चल रही है। भारत सरकार ने दिसम्बर, 2019 में अपनी जीडीपी का 74 प्रतिशत ऋण ले रखा था जो दिसम्बर, 2020 में बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया है। इस वर्ष के बजट में वित्त मंत्री ने भारी मात्रा में ऋण लेने की घोषणा की थी जो कि कोविड की दूसरी और तीसरी लहर के कारण हुई क्षति के कारण और अधिक होगा। इस कठिन परिस्थिति में सरकार को कुछ कठोर कदम उठाने चाहिये ताकि ऋण का बोझ न बढ़े। पहला यह कि ईंधन तेल के ऊपर आयात कर बढ़ाकर राजस्व वसूल करना चाहिए और इसकी खपत कम करनी चाहिए। दूसरा, सरकार को अपनी खपत में जैसे सरकारी कर्मियों के वेतन में समय की नाजुकता को देखते हुए भारी मात्रा में कटौती कर देनी चाहिए और अन्य अनुत्पादक खर्चों को समेटना चाहिए। तीसरा सरकार को नयी तकनीकों में भारी निवेश करना चाहिए। हमारे लिए यह शर्म की बात है कि दवाओं के क्षेत्र में अग्रणी होने के बावजूद आज हम अपने देश की भारत बायोटेक के टीके से आत्मनिर्भर नहीं हो सके हैं और तमाम देशों से टीके आयात कर रहे हैं। इसलिए इस कठिन परिस्थिति में अपने बल पर नयी तकनीकों में भारी निवेश करने की पहल करनी चाहिए अन्यथा यह ऋण देश की अर्थव्यवस्था को ले डूबेगा। जैसे वेनेजुएला जैसे देशों को यह संकट में डाल रहा है।
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