मुरुम बारह पाड़हा सोहराई जतरा हर्षोल्लास के साथ संपन्न

 

जतरा हमारी पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहर है : सुरेश बैठा 

प्रकृति ही हमारे आराध्यदेव है जो हमें जीवन देता है : नारायण उरांव  

झारखंडी संस्कृति का आत्मा है जतरा : डॉ बिरेन्द्र साहु 

टीम एबीएन, रांची। कांके के मुरुम बारह पाड़हा सोहराई जतरा आज हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ। जतरा में मुरुम, रोल, होचर, इचापिरी, रेंडो- पतरातु सहित कई गांवों के खोड़हा अपने पारंपरिक परिधान के साथ ढोल-ढाक-नगाड़ा बजाते एवं नृत्य दान करते हुए मुरूम मुख्य अखाड़ा पहुंचे, जहां घंटों लोग जतरा नृत्य-गान किये। रात्रि में नागपुरी गीत आर्केस्ट्रा का आयोजन किया गया। 

मुख्य अतिथि के रूप में कांके के विधायक सुरेश कुमार बैठा ने कहा हमारी परंपरा व संस्कृति को बोलचाल व वेशभूषा ही जीवित रखा है। युवा पीढ़ी इस परंपरा रूपी धरोहर को जतरा के रूप में आयोजित कर बचा रहे हैं। 

जतरा के उद्घाटनकर्ता सरना समिति के नारायण उरांव ने हमारे पुरखों ने पुरातन काल से ही समाज को ठीक रखने के लिए पाड़हा रूपी न्यायिक व्यवस्था बना करके रखा है, जहां हम किसी भी प्रकार के मामला का निपटारा करते रहे हैं। उन्होंने कहा प्रकृति ही हमारा आराध्य देव है जो हमें जीवन देता है। जल जंगल जमीन ही हमारी पहचान है जो पर्यावरण को सुरक्षित रखने का सूत्र प्रदान करता है। 

डॉ बिरेन्द्र साहु ने कहा कि झारखंड के लोगों का बोलना ही गीत एवं चलना ही नृत्य के समान होता है। झारखंडी संस्कृति का आत्मा गांव गांव में लगने वाला जतरा है। 

कार्यक्रम को सफल बनाने में जतरा के संरक्षक सधन उरांव, अध्यक्ष साधो उरांव, कार्य अध्यक्ष गुड्डू उरांव, कोषाध्यक्ष संदीप उरांव, एतवा उरांव, अजीत टोप्पो, सुधीर उरांव, राहुल तिर्की आदि मुख्य थे। उक्त जानकारी समिति के साधो उरांव ने दी।

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