झारखंड में सारंडा जंगल पर चल रहा महासंग्राम

 

  • ग्रामीणों के विरोध से मंत्रियों का दौरा स्थगित, 75 हजार लोगों का भविष्य दांव पर

टीम एबीएन, रांची। झारखंड का एशिया का प्रसिद्ध सारंडा जंगल इन दिनों सरकार और ग्रामीणों के बीच संघर्ष का केंद्र बन गया है। सरकार की ओर से इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने की पहल जारी है, लेकिन ग्रामीणों के तीखे विरोध ने इस प्रक्रिया को संकट में डाल दिया है। इसी विरोध के कारण शनिवार को प्रस्तावित ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स का नंदपुर दौरा स्थगित करना पड़ा।

करीब 75 हजार आदिवासी और अन्य ग्रामीण सारंडा जंगल और उसके आसपास रहते हैं। उनकी आजीविका मुख्य रूप से जंगल आधारित संसाधनों लकड़ी, पत्ते, चारा, शिकार, लघु वनोपज और खेती-किसानी  पर निर्भर है। 

ग्रामीणों का कहना है कि यदि जंगल को अभयारण्य घोषित कर दिया गया तो न केवल उनकी रोज़ी-रोटी पर संकट आएगा बल्कि उन्हें अपने पैतृक भूमि से विस्थापन का भी सामना करना पड़ेगा। ग्रामीणों का साफ कहना है, जंगल है तो हम हैं। अगर जंगल नहीं रहेगा तो हम भी नहीं रहेंगे।

सारंडा जंगल को लेकर यह पहल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हो रही है। अदालत ने सरकार से कहा है कि वह यहां वन्यजीव संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए और इस सिलसिले में सभी वर्गों से राय भी ली जाए। इसी आदेश के तहत सरकार ने पांच सदस्यीय ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स का गठन किया है। 

इस ग्रुप की अध्यक्षता वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर कर रहे हैं। अन्य मंत्रियों में दीपिका सिंह पांडेय, संजय प्रसाद यादव, सुदिव्य कुमार सोनू और दीपक बीरूआ शामिल हैं। अब तक टीम दो इलाकों का दौरा कर चुकी है और 4 अक्टूबर को नंदपुर में आमसभा करने का कार्यक्रम तय था। लेकिन ग्रामीणों के विरोध के कारण यह दौरा स्थगित कर दिया गया।

गौरतलब है कि 30 सितंबर को भी जब मंत्रियों की टीम सारंडा पहुंची थी, उस समय ग्रामीणों ने जोरदार विरोध किया था। उस दौरान भी ग्रामीणों ने अभयारण्य बनाए जाने का पुरजोर विरोध जताते हुए कहा था कि यह उनकी संस्कृति और जीवनशैली पर हमला है।

इस मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 8 अक्टूबर को निर्धारित है। उससे पहले सरकार को ग्रामीणों, जनप्रतिनिधियों और समाज के अन्य वर्गों से राय लेकर रिपोर्ट पेश करनी है। लेकिन लगातार हो रहे विरोध से सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। 

सारंडा जंगल न केवल एशिया का सबसे बड़ा साल वन है, बल्कि यह झारखंड और देश की जैव-विविधता की धरोहर भी है। यहां अनेक दुर्लभ वन्यजीव, पक्षी और वनस्पतियां पाई जाती हैं। यही कारण है कि इसे संरक्षण क्षेत्र में बदलने की कवायद हो रही है। 

हालांकि, यह सवाल भी उतना ही गंभीर है कि क्या संरक्षण की कीमत पर हजारों लोगों की आजीविका और जीवन उजड़ जाएंगे। यह मुद्दा अब राज्य की राजनीति और आदिवासी अस्मिता से भी जुड़ता जा रहा है। एक तरफ सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना है, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीणों की ज़िंदगी और भविष्य की सुरक्षा भी चुनौती बन गयी है।

Newsletter

Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.

We do not share your information.

Tranding

abnnews24

सच तो सामने आकर रहेगा

टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।

© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse