भारत-अमेरिका के बीच पहली अंतरिक्ष साझेदारी का गवाह बना निसार

 

आज से शुरू हो गयी भारत और अमेरिका के बीच पहली अंतरिक्ष साझेदारी 

एबीएन सेंट्रल डेस्क। भारत और अमेरिका की पहली अंतरिक्ष साझेदारी की शुरुआत बुधवार को हुई, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने निसार नाम का उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा। इस उपग्रह को इसरो और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मिलकर बनाया है। इसे इसरो के जीएसएलवी एफ-16 रॉकेट के जरिए शाम 5:40 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया। 

लॉन्च के करीब 19 मिनट बाद रॉकेट ने निसार को सूरज के साथ घूमने वाली खास कक्षा (सूर्य समकालिक ध्रुवीय कक्षा) में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। निसार एक अवलोकन उपग्रह है, जो धरती पर होने वाले भूकंप, भूस्खलन, बर्फबारी और जंगलों में बदलाव जैसी चीजों की निगरानी करेगा। इस मिशन को भारत और अमेरिका के बीच तकनीकी सहयोग की एक मिसाल माना जा रहा है। 

इससे पहले 18 मई को इसरो का पीएसएलवी-सी61 मिशन असफल रहा था, जिसमें पृथ्वी पर नजर रखने वाला एक उपग्रह तय कक्षा तक नहीं पहुंच पाया था। हालांकि, इसरो इससे पहले रिसोर्ससैट और रीसैट जैसे कई उपग्रह सफलतापूर्वक लॉन्च कर चुका है, जो खासतौर पर भारत की जरूरतों के लिए बनाए गए थे। लेकिन निसार मिशन के जरिए इसरो ने अब पूरी धरती पर नजर रखने और वैज्ञानिक जानकारी जुटाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।  

करीब 27 घंटे के काउंटडाउन के बाद 51.7 मीटर ऊंचा जीएसएलवी एफ-16 रॉकेट बुधवार शाम 5:40 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। इस रॉकेट में 2,393 किलो वजन वाला निसार उपग्रह मौजूद था। रॉकेट से उपग्रह के अलग होने के बाद वैज्ञानिकों ने इसे पूरी तरह सक्रिय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो अगले कुछ दिनों तक चलेगी। इस प्रक्रिया के बाद उपग्रह अपने मिशन के उद्देश्य पूरे करने के लिए तैयार हो जायेगा। 

इसरो ने जानकारी दी कि निसार मिशन के लिए एस-बैंड रडार सिस्टम, डेटा हैंडलिंग सिस्टम, हाई-स्पीड डाउनलिंक सिस्टम, सैटेलाइट और लॉन्च सिस्टम को भारत ने विकसित किया है। वहीं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एल-बैंड रडार सिस्टम, हाई-स्पीड डेटा रिकॉर्डर, जीपीएस रिसीवर, 9 मीटर लंबा बूम और 12 मीटर का रडार रिफ्लेक्टर इस मिशन के लिए मुहैया कराया है। इसरो इस उपग्रह के संचालन और निर्देशन की जिम्मेदारी निभाएगा, जबकि नासा कक्षा में उपग्रह को चलाने और रडार संचालन की योजना बताएगा। 

दोनों एजेंसियां ग्राउंड स्टेशन के जरिए प्राप्त डाटा को डाउनलोड करेंगी और उसे प्रोसेस कर उपयोगकर्ताओं तक पहुंचायेंगी। एक ही मंच से प्राप्त एस-बैंड और एल-बैंड के रडार डाटा की मदद से वैज्ञानिक पृथ्वी में हो रहे बदलावों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। इसरो के अनुसार, निसार मिशन का मुख्य उद्देश्य जमीन और बर्फ की सतह में बदलाव, जमीन के पारिस्थितिकी तंत्र और समुद्री क्षेत्रों का अध्ययन करना है। यह मिशन जंगलों की संरचना, फसल क्षेत्र में बदलाव, आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स) की सीमा और जैविक सामग्री की मात्रा का आकलन करने में मदद करेगा। निसार मिशन की अवधि पांच साल होगी। 

नासा ने कहा कि निसार मिशन से प्राप्त डाटा प्राकृतिक और मानवीय कारणों से होने वाले खतरों की भविष्यवाणी करने में मदद करेगा और सरकारों को निर्णय लेने के लिए पर्याप्त समय दे सकेगा। यह उपग्रह धरती की जमीन और बर्फ की सतह का त्रि-आयामी (थ्रीडी) दृश्य प्रदान करेगा और बादलों व हल्की बारिश के बावजूद दिन-रात डाटा भेजने में सक्षम होगा। इससे भूकंप और भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की लगातार निगरानी की जा सकेगी और ग्लेशियरों में हो रहे बदलावों का भी आकलन किया जा सकेगा। 

यह उपग्रह अंटार्कटिका का भी अभूतपूर्व डाटा देगा, जिससे यह समझने में मदद मिलेगी कि वहां की बर्फ की चादरें समय के साथ कैसे बदल रही हैं। निसार अब तक का सबसे उन्नत रडार सिस्टम है जिसे नासा और इसरो ने मिलकर लॉन्च किया है और यह हर दिन पहले के किसी भी पृथ्वी उपग्रह की तुलना में अधिक डाटा जनरेट करेगा। 

इस मिशन से दोनों देशों को वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी में मदद मिलेगी। एल-बैंड रडार जंगलों की गहराई तक पहुंचकर उनकी संरचना की जानकारी देगा, जबकि एस-बैंड रडार फसलों की निगरानी करेगा। निसार से प्राप्त डाटा से शोधकर्ता यह जान पाएंगे कि जंगल, वेटलैंड और कृषि क्षेत्र समय के साथ कैसे बदल रहे हैं।

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