टीम एबीएन, रांची। भागवत की कथा मृत्यु सिखलाती है और रामायण कथा जीवन जीना बतलाती है। इसलिए भागवत कथा मरने में कल्याण करती है और मरने के बाद भी कल्याण करती है। परीक्षित और धुन्धकारी इसके उदाहरण हैं। इतना ही नहीं रोगी का रोग भी छूट जाता है।
भक्ति के पुत्र ज्ञान और वैराग्य से हम यह सीखते हैं। शिव जब कथा सुनने अगस्त के आश्रम में आये तब शम्भू हुए। सुने तो महेश और जब कथा सुन चले तो त्रिपुरारि हो गये। भगवान की लीला और चरित्र में अन्तर है। सती शिव प्रसंग कहता है- जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती को न समझा सके, तो हम सब अपनी पत्नी को न समझा सके तो दुखी मत होना।
भागवत कथा के प्रसंग के दूसरे दिन कथा में आचार्य दीनानाथ शरण जी (वृन्दावन वाले) ने श्रीराम जानकी मन्दिर हाउसिंग कालोनी बरियातु के प्रांगन में कही। कथा आयोजन में जय सिंह, विभा सिंह, प्रतिमा सिंह वगैरह का सहयोग है। यह जानकारी पंडित रामदेव पांडेय ने दी।
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