एबीएन डेस्क (डॉ नीलम महेंद्र)। कर प्रणाली की बात करें तो मनुस्मृति और वेदों से लेकर कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इसका स्पष्ट एवं सुव्यवस्थित उल्लेख मिलता है। भारत के प्राचीन ग्रंथों में राजा के द्वारा लिए गए कर एवं राजस्व पद्धति की व्याख्या राजा के शासन संबंधी सेवाओं के वेतन के रूप में किया गया था। वैदिक काल में भी ग्राम वासियों द्वारा कृषि एवं पशु संपति पर एक निर्धारित राशि बलि के रूप में चुकाई जाती थी। कृषकों से प्राप्त राशि को बलि तथा विक्रय वस्तु से प्राप्त राशि को शुल्क कहा जाता था जो सामान्यत: उसके मूल्य का छटवां अथवा आठवां हिस्सा होता था। वहीं कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी विस्तारपूर्वक राजकीय आय के स्रोतों का वर्णन किया गया है। मौर्यकाल में भू राजस्व समेत अनेक शुल्क नगरवासियों पर लगाए जाते थे जैसे,1. षड भाग: छठवें अंश के रूप में प्राप्य राज कर 2. सेना भक्त: युद्धकाल में राज्यादेश से प्रजा जनों द्वारा प्राप्त खाद्य पदार्थ 3. बलि: करों के अतिरिक्त अन्य उपहार के रूप में प्राप्त धन4. कर: अधीनस्त राजाओं से मिलने वाला कर5. उत्संग: उत्सव आदि अवसरों पर भेंट स्वरूप प्राप्त वस्तुएं 6. पाश्व: नियत कर से अधिक की वसूली 7. पारीहीणक: पशुओं द्वारा खेत आदि की हुई हानि के कारण पशु स्वामी को दिए गए अर्थ दंड से उपलब्ध धन8. औपयानिक: राजा को उपहार में प्राप्त धन 9. कौष्टयेक: खुदाई से सहसा प्राप्त धन।करों की इतनी वृहद व्याख्या करने के साथ साथ कौटिल्य ने राजा और प्रजा दोनों के लिए यह भी स्पष्ट किया है कि राज्य कर आदि का अधिकारी है तो प्रजा के प्रति उसके कर्तव्य भी हैं। और प्रजा कर देने के लिए कर्तव्यबद्ध है तो उसके अधिकार भी हैं, अगर राजा कर लेने के बाद भी अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन नहीं करता तो प्रजा उसके प्रति अपनी निष्ठा छोड़ सकती है। मध्यकालीन भारत में विभिन्न रियासतों का वर्चस्व था जो अपने अपने हिसाब से प्रजा से कर लेती थीं। सल्तनत काल से लेकर मुगल काल मेँ यह कर छठवें हिस्से से बढ़कर आय के आधे हिस्से तक पहुंच गया था। आधुनिक भारत में आयकर प्रणाली 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार पर आए वित्तीय संकट के कारण 1860 में अंग्रेजों द्वारा लाई गई थी। मजेदार बात यह है कि भारत के तत्कालीन ब्रिटिश वित्तमंत्री जेम्स विल्सन ने भी आयकर की शुरूआत करते हुए मनु को उदृत किया था। 1886 में भारत में इनकम टैक्स एक्ट पास हुआ था तब से उसमें कई बार बदलाव किए गए। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात 1918 में फिर 1922 में नया एक्ट लाया गया। स्वतंत्र भारत में वर्तमान में जो आयकर कानून चल रहा है वो 1 अप्रैल 1962 को लागू किया गया था। भारत में दो प्रकार के कर लिए जाते हैं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर। 2017 में जीएसटी लागू कर के अप्रत्यक्ष करों में क्रांतिकारी बदलाव लाकर कर सुधारों की तरफ एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया था। प्रत्यक्ष करों में भी सरकार हर बजट में कुछ बदलाव करती रहती है। लेकिन इसके बावजूद जब विश्व के देशों की टैक्स कंपेटेटिव इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट आती है तो 36 देशों की इस सूची में न्यूजीलैंड, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस, जर्मनी और पुर्तगाल जैसे देशों के नाम हैं लेकिन भारत का कोई स्थान नहीं है। जब व्यक्तिगत आयकर वसूलने वाले देशों से तुलना की जाती है तो वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में यह 37%, न्यूजीलैंड में 39% और भारत में 35.88% है। जीएसटी की बात की जाए तो भारत में 28% के साथ यह 140 देशों की तुलना में सबसे ज्यादा है 27 % के साथ दूसरे स्थान पर अर्जेंटिनिया है जबकि यूके और फ्रांस में यह 20% तो सिंगापुर में 7% है।
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