एबीएन सोशल डेस्क। पारसनाथ से खंडगिरी उदयगिरी विहार के क्रम में परमपूज्य 108 श्री सुतीर्थ सागर जी महाराज अपर बाजार रांची में विराजमान हैं। प्रात: 8.15 बजे मुनिश्री का प्रवचन प्रारंभ हुआ। कषाय आत्मा को जकड़ लेती है या आत्मा को दुख देती है। कषाय चार मुख्य विकारों या नकारात्मक भावनाओं को संदर्भित करता है : क्रोध, मान, माया, और लोभ। ये आत्मा के स्वाभाविक गुणों (जैसे शांति, ज्ञान) को दूषित करते हैं। आत्मा एक शुद्ध, चेतन तत्व है जिसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है।
जब कोई व्यक्ति क्रोध, अहंकार, छल या लालच जैसी भावनाओं में उलझा रहता है, तो वह कर्म (अच्छे या बुरे) करता है। इन कर्मों के कारण नये कर्म बंधन आत्मा से जुड़ जाते हैं, जिससे आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र में फंस जाती है। ये कषाय आत्मा की शांति और शुद्धता को नष्ट कर देते हैं, ठीक वैसे ही जैसे रस्सी किसी वस्तु को कसकर बांध देती है। जैन दर्शन में कषायों पर विजय पाने, या इन्हें कम करने, पर बहुत जोर दिया जाता है ताकि आत्मा मुक्त हो सके।
व्यक्ति जब क्रोध करता है तो उसकी बुद्धि उस समय काम नहीं करती और वह ऐसे कार्य कर जाता है जिससे उसे पूरा जीवन पछताना पड़ता है। क्रोध क्षण भर के लिए होती है लेकिन दुख पूरा जीवन सहना पड़ता है। मान का अर्थ होता है घमंड अगर व्यक्ति के अंदर मान आ जाए तो वह अपने सामने हर दूसरे व्यक्ति को अपने से छोटा समझता है। एक मायाचारी व्यक्ति कभी आत्मा का स्वरूप नहीं समझ सकता।
लोभ पाप का बाप है लोभ के कारण ही व्यक्ति पाप करता है। व्यक्ति अपना पेट नहीं पेटी भरता है क्योंकि पेट भरने के लिए बहुत कम समान चाहिए लेकिन पेटी भरने के लिए वह हमेशा 99 के चक्कर में रहता है। व्यक्ति परिवार के सदस्यों के लिए समय नहीं निकल पाता और उसका पूरा जीवन दुख से भरा रहता है ।
वर्तमान कार्यकरिणी के सदस्यों एवम् बाहर से आये अतिथिगण के अलावा अध्यक्ष प्रदीप बाकलीवाल, मंत्री जीतेंद्र छाबड़ा, माणकचंद काला, प्रमोद झांझरी, चेतन पाटनी, अरुण पाटनी, सुबोध जी बड़जात्या, मनोज जी काला, सौरभ विनायक्या, राजेश छाबड़ा और समाज के कई लोग धर्म सभा में उपस्थित थे। यह जानकारी मीडिया प्रभारी राकेश काशलीवाल ने दी।
आज परम पूज्य आचार्य भगवन 1008 श्री रामलाल जी महाराज सा की आज्ञानुवर्ती शासन दीपिका समिया श्री जी महाराज सा का प्रवचन सुबह 9 बजे से शुभकरण बछावत के आवास पर हुआ। प्रवचन में साध्वी जी ने कहा कि हमें अपनी बिजी लाइफ के बीच में समय निकालना चाहिए, अपनी आत्मा को मैली होने से बचना चाहिए। पांच इंद्रियों वाली यह मनुष्य काया हमें बहुत ही पुण्य कर्म करके मिली है।
हमारा धर्म अहिंसा होना चाहिए एवं जीवों की हिंसा से बचना चाहिए। भगवान महावीर ने कहा हे की अहिंसा परमो: धर्म। हम अपने जीवन में पानी का दुरुपयोग रोककर भी हम हिंसा से बच सकते हैं। हम जानते हैं कि भगवान से बड़ा कोई नहीं है। परंतु जीवन में हम अपने आप से बड़ा किसी को नहीं मानते। हम ही सबसे समझदार हैं, हमारी ही बात सही है- ऐसा हम सोचते हैं। यही अहंकार हमें नर्क गति में ले जाता है। अहंकार के प्रतिफल में बाहुबली जी का 1 वर्ष का निर्जल तप भी व्यर्थ हो गया और केवल्य ज्ञान उन्हें नहीं मिला।
जैसे ही उन्हें बोध हुआ। उन्होंने अपने अहम् को छोड़ा, एक क्षण में वे केवली हो गये। छोटा सा अभिमान भी हमारी आत्मा की शुद्धि के लिए घातक है। हम हर चीज का अहंकार करते हैं- मेरा परिवार, मेरा पैसा, मेरा बच्चा, मेरा घर, मेरा रूप। जब हम सब में अपनत्व नहीं रखेंगे और अपने आप को श्रेष्ठ मानना बंद करेंगे तो हमारा अहंकार कम होगा। अपना कोई नहीं है यहां तक की ये शरीर भी नहीं हमारा नहीं हैं।
केवल अपनी आत्मा है जो अपनी है, जब अपना कोई नहीं है तो फिर अहंकार किस बात का। अहंकार कम करने के लिए एक आदत और अपनानी चाहिए, गलती स्वीकार करने की आदत। अहंकार की भावना के कारन ही व्यक्ति स्वयं की गलती स्वीकार नहीं करता है। आज के प्रवचन में छोटेलाल चोरडिया, अमर चंद बेंगाणी, विकास सुराणा, प्रकाश चंद नाहटा आदि कई श्रावक और श्राविकाएं उपस्थित थे।
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