एबीएन सोशल डेस्क। एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट मे बैठा। एक राम का सकल पसारा, एक राम इन सबसे न्यारा ॥
कोई भी यह तर्क दे सकता है कि त्रेता युग की तुलना में किसी भी समय एक महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व ने हमारी सभ्यता और संस्कृति की रूपरेखा को आकार देने में अधिक शक्तिशाली और निर्णायक भूमिका नहीं निभाई, एक ऐसा युग जिसने भगवान राम में एक महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व का शानदार और भाग्यशाली उद्भव देखा।
जिन्होंने एक नए दिव्य युग की स्थापना की, जिसने विभिन्न युगों के दौरान विभिन्न कारणों से अपनी चमक, जीवंतता और शक्ति खो दी। वह एक आदर्श राजा और एक आदर्श गृहस्थ थे जो मानवता की उच्चतम संस्कृति की रक्षा और प्रचार के प्रति समर्पित थे और इस प्रकार लोगों के जीवन को प्रबुद्ध करते थे और सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध समाज के उद्भव का मार्ग प्रशस्त करते थे, जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं जो हमारे सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग हैं।
अब समय आ गया है जब हमें इस महान विरासत के मशाल वाहक के रूप में धार्मिकता, आशा, दृढ़ता और एकता के युग को पुनर्जीवित करने का संकल्प लेना चाहिए। राम मंदिर का निर्माण और राष्ट्र को समर्पित करने की वर्तमान सरकार की प्रतिबद्धता देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपरा की सुरक्षा और संरक्षण के प्रति उसके मजबूत समर दर्शाती है।
हां, भव्य मंदिर का सफल और शांतिपूर्ण निर्माण वास्तव में उस राष्ट्र के लिए उत्सव का प्रतीक है, जिसने दबाव और सामाजिक संकट देखा होगा, लेकिन इनमें से कोई भी इतना शक्तिशाली साबित नहीं हुआ कि हमारी पहचान खतरे में पड़ जाए। राम मंदिर परियोजना वास्तव में हमारी आबादी के बीच विश्वास की एक सर्वोत्तम भावना पैदा करेगी और हमारे देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आत्मसात की प्रक्रिया को मजबूत करेगी। यह भगवान राम की अजेयता और अप्रतिरोध्यता को प्रमाणित करता है।
इस तरह की भावना को फारूक अब्दुल्ला के हालिया बयान में प्रतिध्वनित किया गया है कि भगवान राम सभी के हैं, न कि केवल हिंदुओं के। श्रीराम जन्म भूमि आंदोलन का इतिहास लगभग आठ सौ वर्ष पुराना है। यानी बाबर से भी 300 वर्ष पूर्व से अनेक राजा और रानियों ने सेना सहित तथा भक्तों ने व्यक्तिगत अथवा सामूहिक तौर पर अपने प्राण न्योछावर किए और इनकी कुल संख्या लाखों में है।
अस्सी के दशक के अंतिम वर्षों में गहन चिंतन और मनन के बाद हिंदू संगठनों ने पहले विश्व हिंदू परिषद उपरांत भाजपा और विविध सहयोगियों के साथ इस धार्मिक आंदोलन को अपनाने का जोखिम पूर्ण निर्णय लिया था। पालमपुर में आयोजित बैठक में इसे विधिवत घोषित भी कर दिया गया। इस सांस्कृतिक आंदोलन का मैंने नजदीक से अध्ययन और अवलोकन करने का मन बनाया। इस विषय में शेष राजनीतिक और सामाजिक ढांचे के विरोध का आलम ऐतिहासिक और भीषण था।
इसी क्रम में मुलायम सिंह यादव के समय 1990 में कारसेवकों पर लाठीचार्ज और गोलीबारी ने हिन्दू समाज को अत्यंत आक्रोशित किया जिस के कारण 1992 का दृश्य बना और संतसमाज, न्यायालय और जनसाधारण के सक्रिय योगदान से भाजपा को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचा।
देश-विदेश से लाखों-लाख नर नारी, युवा, बृद्ध और बाल एक ही मंजिल तक पहुंचे। चेहरों पर निडरता, उत्साह और जनून स्पष्ट झलक रहे थे। एक प्रत्यक्षदर्शी गया से गये थे। कविन्द्र सिंह नाम के इस व्यक्ति ने बताया कि पचास हजार से अधिक लोग बैरिकेड्स के आसपास नारे लगा रहे थे।
झुंड के झुंड पताका और ध्वजदंड के साथ बढ़ रहे थे। स्थिति बहुत तनावपूर्ण थी। डंडे और लाठियों के साथ नेताओं के भाषणों को दरकिनार कर लोग वानर सेना के समान आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे। अचानक सामने ढांचे के गुंबद की ओर रस्सी फेंक कर उसे स्तंभ से बांध कर सेतु बना कर दो नवयुवक उल्टा लटक कर गुंबद के शिखर पर पहुंच गए और भगवा फहरा दिया।
उन्होंने पीठ पर कुछ औजार बांधे हुए थे। मंच से घोषित किया गया कि कोई हिन्दू है तो नीचे उतर आए। स्मरण है कि साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती और आडवाणी जी भी मंच पर थे। इस हालत को देखते ही बैरिकेड्स के समीप का जनसमूह सैलाब की तरह आगे निकल कर ढांचे को घेरकर खड़ा हो गया।
बैरिकेड्स कहां गए, सुरक्षा कहां गई कोई पता नहीं चला। विस्फारित आंखों से वे ऐतिहासिक पल देखे। आस्था का विकराल आक्रोश था। फिर क्या हुआ सभी को मालूम है। तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह ने केन्द्रीय बलों को रेल या केन्द्रीय परिसरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी थी।
हिमाचल प्रदेश सहित चार भाजपा सरकारें गिरा दी गई थीं। मंदिर का विषय भाजपा की सफलता का एक पक्ष अवश्य है लेकिन इन सरकारों का उस समय दोबारा न आना, इस कार्य में उस समय लाखों दक्षिण भारतीय महिलाओं और पुरुषों का योगदान तथा 2014 में बहुमत जो मोदी नीत भाजपा को निरंतर सशक्त बना रहे हैं और यह व्यापक राष्ट्र हित में आवश्यक भी है।
1992 और 2025 की परिस्थितियां बहुत अर्थ में भिन्न हैं। राम भारत के जन-जन में हैं मन-मन में विराजते हैं। बिहार के चुनाव में मन के राम की व्यापक जीत और विगत 30 साल से राम देश के राजनीति का आधार भी है। धर्म नीति राम राज्य की परिकल्पना से हर कोई प्रभावित है। यह राम ही हैं जो भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं।
आज राम मंदिर का ध्वजा कोई सामान्य ध्वजा नहीं है। यह सत्य सनातन के उदभव विकास और शीर्ष पर जाने की एक संपूर्ण कहानी है। हजारों साल की गुलामी मुगलों का शासन और आजाद भारत की छद्म धर्म निरपेक्षता के बीच निखरे हमारे सत्य सनातन के राम अपना सम्मान पा रहें हैं।
लोहिया ने कहा था कि जबतक देश में राम,कृष्ण और शिव रहेंगे भारत के भाग्य की चिंता करने की जरुरत नहीं होगी। श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अनुसार दाएं कोण वाले तिकोने झंडे की ऊंचाई 10 फुट और लंबाई 20 फुट है। इस पर चमकते सूरज की तस्वीर है, जो भगवान श्री राम की चमक और वीरता का प्रतीक है। इस पर ॐ लिखा है और साथ ही कोविदारा पेड़ की तस्वीर भी है।
पवित्र भगवा ध्वज राम राज्य के आदर्शों को दिखाते हुए, गरिमा, एकता और सांस्कृतिक निरंतरता का संदेश देगा। आज का दिन विराट दिन है जब धर्म ध्वजा फहराने विश्व के सबसे बड़ें लोकतंत्र का प्रधानमंत्री, राजा राम के मंदिर में जाकर मानो कह रहा है- सब देव चले, महादेव चले, लै- लै फूलन की हार रे,चले आवो राघव सांवरिया।
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