एबीएन एडिटोरियल डेस्क। पंद्रह नवंबर का दिन झारखंड की आत्मा को झकझोरता है। यह वह पवित्र दिन है जब हमारे महान जनजातीय नायक भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। यही वह दिन है जब सन् 2000 में झारखंड का जन्म हुआ। किंतु आज पच्चीस वर्ष बाद हमारा राज्य खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। यह संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं है। यह संघर्ष आर्थिक शोषण के विरुद्ध है। यह संघर्ष उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए है।
झारखंड का आज का दृश्य चिंताजनक है। नागरिक (ग्राहक ) जो हर दिन बाजार जाते हैं, उन्हें पता नहीं कि वे क्या खरीद रहे हैं। एक दवाई जो जान बचानी चाहिए, वह जान ले रही है। खाद्य पदार्थों में मिलावट की महामारी ने हर घर को असुरक्षित बना दिया है। साइबर अपराधियों का तांडव सामान्य मनुष्य की जेब काट रहा है और इसी बीच भ्रष्टाचार जनता के विश्वास को निगलते जा रहा है। यह संकट उसी तरह का है जिसका सामना बिरसा मुंडा ने किया था, किंतु इस बार दुश्मन अंग्रेज नहीं है, बल्कि हमारे अपने संस्थान हैं।
झारखंड में नकली दवाओं का कारोबार पूरी तरह अनियंत्रित हो गया है। राज्य में मात्र बारह दवा निरीक्षक हैं, जबकि आवश्यकता बयालीस की है। इसका अर्थ यह है कि एक निरीक्षक के पास चार-चार जिले हैं। ऐसे में दवा की सप्लाई चेन में हर स्तर पर जांच नहीं हो पाती है। नतीजा यह है कि दवा निमार्ता से लेकर दुकानदार तक, नकली माल का व्यापार निर्बाध रूप से चलता है।
हाल ही में सुखदेव नगर थाने के क्षेत्र में स्थित एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में नकली एंटीबायोटिक टैबलेट पकड़ी गई। जांच में पता चला कि दवा निर्माता, सप्लायर और दोनों के पते सब फर्जी थे। टैबलेट में संबंधित दवा के सक्रिय तत्व तक नहीं थे। रोगी को गलत दवा दे कर उसके संक्रमण को बढ़ाना एक राष्ट्रीय शर्म का विषय है।
ब्रांडेड दवाओं के नाम पर नकली और सब-स्टैंडर्ड दवाओं का धंधा तेजी से बढ़ रहा है। दर्द निवारक, बुखार की दवाएं, शुगर, हाई ब्लड प्रेशर, थायरॉयड, गर्भनिरोधक गोलियां, विटामिन सप्लिमेंट्स ये सभी वस्तुएं अवैध कारोबारियों के कब्जे में चली गयी हैं। मरीज दवा का कोर्स पूरा करते हैं, किंतु राहत नहीं मिलती, क्योंकि उन्हें नकली दवा दे दी गयी है। चिकित्सकों को बार-बार दवाएं बदलनी पड़ती हैं। यह न केवल स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि गरीब परिवारों के सीमित संसाधनों पर सीधा हमला है।
सरकार ने क्यूआर कोड लागू करने की कोशिश की है, जिससे असली और नकली दवा की पहचान की जा सके। किंतु यह समाधान अधूरा है। समस्या यह है कि जांच सुविधाएं अपर्याप्त हैं। अन्य जिलों में मानक जांच भी संभव नहीं है। क्या हमारे नागरिकों के जान का मूल्य इतना कम है कि हम उन्हें पर्याप्त संसाधन भी नहीं दे सकते?
खाद्य सुरक्षा प्रणाली झारखंड में पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। राज्य की इकलौती खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला को राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीएल) ने मान्यता से वंचित कर दिया है, क्योंकि यह अपग्रेड नहीं की गई। नतीजा यह है कि अब राज्य में खाद्य पदार्थों में मिलावट की कानूनी जांच ही नहीं हो सकती। पहले यहां हर साल 1200 से अधिक सैंपलों की जांच होती थी, जिसमें से 40 प्रतिशत में मिलावट पायी जाती थी। अब तो यह जांच ही बंद हो गयी है।
इसका मतलब साफ है कि मिलावट करने वाले अब निर्बाध रूप से अपना काम करेंगे। अनाज में चूरा, मसालों में जहरीले रंग, दूध में मिलावट, सब्जियों में कीटनाशक- ये सब अब बिना किसी बाधा के बिकेंगे। गरीब परिवार जो सब्जी मंडी से सस्ते दाम पर सब्जियां खरीदते हैं, वे नहीं जानते कि वे अपने बच्चों को जहर खिला रहे हैं।
पिछले वर्ष मसालों में मिलावट के खिलाफ एफएसएसएआई द्वारा अक्टूबर माह में अभियान चलाया गया। जांच में पाया गया कि काली मिर्च में स्टार्च, मिर्च पाउडर में हानिकारक रंग, हल्दी पाउडर में मिट्टी सब कुछ मिलावट के लिए उपयोग हो रहा है। ये रंग कैंसर का कारण बन सकते हैं। किंतु न तो सरकार के पास संसाधन हैं और न ही राजनीतिक इच्छा है कि इस महामारी को रोका जा सके।
झारखंड हाईकोर्ट ने भी मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिये हैं कि खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति जल्द से जल्द की जाये। किंतु अब तक इस निर्देश का पालन नहीं हुआ है।
साइबर अपराध में झारखंड का नाम शर्म से जुड़ा हुआ है। जनवरी से जून 2025 तक महज छह महीने में 11910 शिकायतें दर्ज हुईं। यानी हर दिन औसतन 66 शिकायतें। इसी अवधि में 767 साइबर अपराधी गिरफ्तार किये गये। फिर भी संकट थमता नहीं दिख रहा।
जनवरी 2024 से जून 2025 तक डेढ़ साल में 390 करोड़ रुपये का साइबर फ्रॉड हुआ है। कल्पना कीजिए, देश का यह हिस्सा कितना असुरक्षित है जहां हर दिन इतनी बड़ी ठगी होती है। पेंशनभोगी, अकेली महिलाएं, छोटे व्यापारी सभी अपने जीवन भर की बचत को खो देते हैं। बैंकों को धोखा दिया जाता है, आधार के नाम पर बिना अनुमति के खाते खोले जाते हैं, व्यक्तिगत डेटा चोरी होता है।
सबसे दर्दनाक बात यह है कि पीड़ितों को उनका पैसा वापस नहीं मिलता। हालांकि हाल ही में हाईकोर्ट के निर्देश के बाद पुलिस को पीड़ितों को पैसा लौटाने की व्यवस्था करने का आदेश दिया गया है, किंतु यह प्रक्रिया अभी शुरूआती चरण में है। जामताड़ा से लेकर देवघर तक, साइबर अपराधियों का जाल फैला हुआ है।ये गिरोह विदेशी सर्वर का इस्तेमाल करते हैं। डिजिटल गिरफ्तारी करके पीड़ितों को ब्लैकमेल किया जाता है।
यह केवल व्यक्तिगत हानि नहीं है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है। हर वह नागरिक असुरक्षित है जो इंटरनेट का उपयोग करता है। बुजुर्ग, किशोर, महिलाएं, सभी निशाने पर हैं। आनलाइन शॉपिंग, बैंकिंग, सोशल मीडिया - हर क्षेत्र में खतरा है।
भ्रष्टाचार ने झारखंड की नसों में जहर घोल दिया है। अबुआ आवास जैसी सरकारी योजनाओं में भी गरीब लाभुकों से घूस मांगी जाती है। कुछ गरीब कर्ज लेकर पैसे देते हैं ताकि उन्हें आवास मिल सके। स्वास्थ्य विभाग में अधिकारियों की मिलीभगत से ही नकली दवाओं का सिलसिला चलता है।
पूर्व डीजीपी अनुराग गुप्ता के समय एनजीओ शाखा के प्रभारी इंस्पेक्टर गणेश सिंह के विरुद्ध भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने जांच दर्ज की है। आरोप है कि उन्होंने विभिन्न फाइलों के निष्पादन के बदले में अवैध वसूली की। जब सत्ता का संरक्षण होता है, तो भ्रष्टाचार पनपता है। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि झारखंड में भ्रष्टाचार व्यवस्थागत समस्या बन गयी है, न कि अपवाद।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय और राज्य के आयोग खुद ही सोए हुए हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 को लागू हुए पांच वर्ष हो गए हैं, किंतु झारखंड में इसकी क्रियान्वयन व्यवस्था और स्ट्रक्चर अभी भी कमजोर है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के गठन के बाद भी झारखंड में इसकी कार्यप्रणाली स्पष्ट नहीं हुई है।
बिरसा मुंडा की जयंती और झारखंड स्थापना दिवस केवल राजनीतिक उत्सव नहीं हैं। ये अवसर हैं हमारे प्रतिबद्धता को नवीकृत करने का। झारखंड सरकार को तत्काल निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए।
नकली दवाओं के विरुद्ध दवा निरीक्षकों की संख्या तुरंत बढ़ानी चाहिए। प्रत्येक जिले में एक आधुनिक दवा परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित की जानी चाहिए। दवा सप्लाई चेन को पूरी तरह डिजिटल किया जाना चाहिए। दवा दुकानों पर निरंतर निगरानी होनी चाहिए। खाद्य सुरक्षा के लिए स्टेट फूड लैब को तुरंत अपग्रेड किया जाना चाहिए। प्रमुख जिला केंद्रों में अतिरिक्त खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की जानी चाहिए। खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति में तेजी लायी जानी चाहिए।
साइबर अपराध के विरुद्ध हर जिले में साइबर जांच की इकाई स्थापित की जानी चाहिए। पीड़ितों को उनका पैसा लौटाने की तेजी से प्रक्रिया की जानी चाहिए। स्कूलों में साइबर सुरक्षा की शिक्षा दी जानी चाहिए। भ्रष्टाचार के विरुद्ध एसीबी को सशक्त किया जाना चाहिए। एक ही स्थान पर तीन साल से अधिक समय तक रहने वाले अधिकारियों का तबादला अनिवार्य किया जाना चाहिए।
साथ ही, हर झारखंडवासी को भी अपने दायित्व के बारे में जागरूक होना चाहिए। अपने अधिकारों के बारे में जानें। संदिग्ध उत्पादों की शिकायत दर्ज करें। स्थानीय स्तर पर उपभोक्ता समूह बनायें। सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन पर निगरानी रखें। इंटरनेट के उपयोग में सावधानी बरतें। शिक्षा को बढ़ावा दें।
बिरसा मुंडा को 150 साल पहले राजनीतिक स्वतंत्रता की लड़ाई लड़नी पड़ी थी। आज हमें आर्थिक स्वतंत्रता की लड़ाई लड़नी है। नकली दवा, खाद्य मिलावट, साइबर अपराध, भ्रष्टाचार ये सब नए अंग्रेज हैं, जो आंतरिक रूप से हमें लूट रहे हैं। हर गली में, हर मोहल्ले में, हर गांव में उपभोक्ता जागरूकता समूह बनने चाहिए। यह नयी क्रांति होगी आंतरिक शत्रुओं के विरुद्ध, आर्थिक न्याय के लिए, सामाजिक कल्याण के लिए।
बिरसा कहते थे: अबुआ राज तोहरो काज। हमारा राज्य, हमारा काम। आज हर झारखंडवासी को यह आह्वान दोहराना चाहिए। अपने राज्य को बचाने के लिए, अपने परिवार को सुरक्षित करने के लिए, अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए, हर नागरिक को सचेष्ट होना चाहिए। यह समय परिवर्तन का है। यह समय आंदोलन का है। यह समय क्रांति का है। जय बिरसा मुंडा! जय झारखंड! (लेखक अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के क्षेत्र संगठन मंत्री हैं।)
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