बिहार में एनडीए की शानदार जीत के 10 मायने...

 

बिहार में एनडीए की डबल इंजन दहाड़: ये हैं जीत की वो 10 बड़ी वजहें जिन्होंने पलट दिया पासा... 

एबीएन न्यूज नेटवर्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए गठबंधन की जीत बेहद शानदार रही। उनके समुचित चुनाव प्रचार का ही असर रहा कि मजबूत विपक्ष का नामोनिशान मिट गया। विपक्ष अब अपनी बात को अच्छी तरह रखने में भी शायद नाकाम रहेगा। 

आइये जानें एनडीए की शानदार जीत के 10 प्रमुख कारण... 

  1. ब्रांड मोदी का अभेद्य कवच और डबल इंजन की अपील : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने एनडीए को एंटी-इन्कम्बेंसी के दबाव से बचाये रखा। उन्होंने चुनाव को केंद्र की गारंटी बनाम राज्य की अस्थिरता के फ्रेम में सफलतापूर्वक सेट किया। इस डबल इंजन की अपील ने मतदाताओं के मन में यह विश्वास मजबूत किया कि विकास और स्थिरता के लिए सत्ता का केंद्र और राज्य में एक ही होना आवश्यक है। 
  2. एनडीए के कुशल नेतृत्व पर मुहर : एनडीए ने चुनाव से बहुत पहले ही नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। खुद पीएम ने शुरुआती चुनावी सभाओं में नीतीश के नेतृत्व पर मुहर लगाया। 
  3. समय पर सीटों की घोषणा : एनडीए ने अपनी टिकट बंटवारा प्रक्रिया को समय पर और संगठनात्मक तरीके से पूरा किया, जिससे कार्यकर्ताओं को प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिला। जनता में भी पॉजिटिव संदेश गया। टिकट बंटवारे में जातीय संतुलन का पूरा ध्यान रखा गया। एनडीए में चिराग की वापसी और समय प्रबंधन चिराग पासवान को गठबंधन में शामिल करने की प्रक्रिया भले ही लंबी चली, लेकिन एनडीए ने इसे चुनाव की घोषणा से पहले अंतिम रूप दे दिया। यह दिखाता है कि एनडीए नेतृत्व ने अपनी सबसे बड़ी चुनौती को भी समय रहते मैनेज कर लिया और प्रचार शुरू होने से पहले ही गठबंधन की तस्वीर साफ कर दी। 
  4. जीविका दीदी फैक्टर से मिला महिलाओं का मौन समर्थन : एनडीए की जीत में सबसे निर्णायक, संगठित, और राजनीतिक शोर से दूर रहने वाला वर्ग जीविका दीदियां रहीं, जो महिला वोट बैंक की धुरी हैं। महिलाओं का यह समर्थन किसी भावनात्मक अपील पर नहीं, बल्कि ठोस आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण पर आधारित था। देखा जाये तो जीविका दीदियां केवल खुद ही वोट नहीं देती हैं, बल्कि अपने समूह, परिवार और पड़ोस को भी मतदान के लिए प्रेरित करती हैं। कुल मिलाकर नतीजे ये बताते हैं कि यह साइलेंट वोट ही था जिसने कई करीबी सीटों पर परिणाम ठऊअ के पक्ष में मोड़ दिया। 
  5. महागठबंधन में सीट बंटवारे की खींचतान और देरी : महागठबंधन की एक बड़ी कमजोरी सीट बंटवारे में हुई अत्यधिक देरी थी। लंबी बातचीत और खींचतान ने न केवल कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ा, बल्कि यह संदेश भी दिया कि गठबंधन आंतरिक रूप से विभाजित है। कई सीटों पर असंतुष्टों ने बगावत की, जिसका सीधा फायदा एनडीए उम्मीदवारों को मिला। 
  6. अति-पिछड़ा और महादलितों का अटूट साथ : नीतीश कुमार और एनडीए की सोशल इंजीनियरिंग का जादू इस चुनाव में चला है। उनके द्वारा बनाये गये ईबीसी और महादलित वोट बैंक ने अपनी निष्ठा बरकरार रखी। इस वर्ग ने किसी भी भावनात्मक लामबंदी के बजाय स्थायी विकास और सामाजिक सुरक्षा पर वोट किया, जिसने एनडीए की नींव को मजबूत बनाये रखा। 
  7. जंगलराज बनाम सुशासन का नैरेटिव वॉर : एनडीए ने जंगलराज के डर को जिंदा रखकर अपने पक्ष में नैरेटिव बनाया। पीएम मोदी और अमित शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ तक ने अपनी हर रैली में कानून-व्यवस्था की पिछली स्थिति की यादों को जमकर सुनाया और भुनाया। बार-बार कही जा रही इन बातों ने उन युवा मतदाताओं को भी प्रभावित किया जो लालू राज के बाद पैदा हुए थे। जिन्होंने लालू राज को नहीं देखा उन्हें भी इसका डर समझ आया। एनडीए ने साफ किया कि वो ही विकास के साथ-साथ सुरक्षित माहौल दे सकती है। 
  8. बिहार के वोटिंग बिहेवियर में बदलाव : बिहार में इस बार बंपर वोटिंग हुई तो सियासी पंडित तमाम अनुमान लगाने लगे कि क्या बदलाव होगा? लेकिन नतीजों ने साफ कर दिया कि इस बार बिहार के मतदाताओं को बिहेवियर बदला है। उन्होंने इस बार बुनियादी सुविधाओं (बिजली, सड़क, पानी) की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए वोट दिया। यह विकास-केंद्रित मतदान, जिसने क्षणिक प्रलोभनों को नकारा। 
  9. लाभार्थियों का विशाल वर्ग और सीधा फायदा : केंद्र और राज्य की कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित हुए विशाल वर्ग ने अपने हितों की रक्षा के लिए उसी गठबंधन को चुना जिसने उन्हें ये लाभ दिये। यह वर्ग, जो समाज के निचले पायदान पर है, किसी भी विरोध की लहर से अप्रभावित रहा। 
  10. भाजपा का मजबूत बूथ प्रबंधन और कैडर की सक्रियता : भाजपा की संगठनात्मक मशीनरी की दक्षता ने सीटों के छोटे अंतर को निर्णायक जीत में बदल दिया। एनडीए ने बूथ प्रबंधन, मतदाता मोबिलाइजेशन और कैडर की सक्रियता के मामले में विपक्ष को पछाड़ दिया, जो करीबी मुकाबले वाले चुनावों में जीत-हार का फैसला करता है।

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