एबीएन एडिटोरियल डेस्क। छात्रों और प्रतियोगी परीक्षार्थियों को भी विधिक अधिकार प्राप्त होते हैं। लेकिन जानकारी के अभाव में अक्सर परीक्षार्थी या विद्यार्थी इनका इस्तेमाल नहीं करते हैं। अगर उन्हें परीक्षा प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी लगे या तय सुविधा न मिले या फिर भेदभाव हो तो वे निश्चित प्लेटफॉर्म पर उसकी शिकायत कर न्याय प्राप्त कर सकते हैं।
भारत में छात्र और किसी परीक्षा को देने वाले परीक्षार्थी अपनी पढ़ाई और परीक्षा के संबंध में कई तरह के कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के मालिक होते हैं। लेकिन ज्यादातर को इस सबके बारे में पता नहीं होता। तो जानना उपयोगी है कि छात्रों और प्रतियोगी परीक्षार्थियों के विधिक और संवैधानिक अधिकार क्या-क्या होते हैं और उन्हें कैसे नीतिगत सुरक्षा में बांटा जा सकता है। परीक्षा प्रक्रिया में गड़बड़ी लगे तो पहले ये कदम उठायें।
अगर छात्रों या विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएं देने वाले परीक्षार्थियों को परीक्षा प्रक्रिया में किसी गड़बड़ी का अहसास हो। जैसे उन्हें लगे कि पेपर लीक हो गया है या जो परिणाम आया है, वो गलत है या किसी भी तरह की परीक्षा में पारदर्शिता की कमी है, तो वे शिकायत करने और अपनी शिकायत के संबंध में न्याय पाने के लिए ये कदम उठा सकते हैं। सबसे पहले वे परीक्षा की आयोजक संस्था, चाहे वह यूपीएससी हो, एसएससी हो, एनटीए हो या पीएससी हो, आधिकारिक शिकायत प्रणाली यानी पोर्टल आदि पर आनलाइन शिकायत दर्ज कराएं। अगर उन्हें इसका पता नहीं है तो परीक्षा भवन में स्थित प्रबंधक के कार्यालय से इसकी जानकारी हासिल कर सकते हैं।
परीक्षा में गड़बड़ी लगे तो दूसरे कदम के रूप में परीक्षार्थी अपने ओएमआरसी या आंसर शीट अथवा मार्किंग विवरण मांगने के लिए आरटीआई आवेदन कर सकते हैं। जबकि तीसरे चरण के रूप में ये छात्र अगर इन्हें लगता है कि पहले दो कदमों से उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो वे हाईकोर्ट में पिटीशन अनुच्छेद 226 के तहत या सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में केस दायर कर सकते हैं, इसका उन्हें कानूनी हक है और चौथे व अंतिम कदम के रूप में पेपर लीक आदि के लिए सीबीआई/ईडी जांच की मांग की जा सकती है।
ऐसी स्थिति में पहले कदम के रूप में उस संस्थान की जहां से आपका संबंध हो, ग्रीवांस रिड्रेसल सेल्फ/यूजीसी कम्पलेंट पोर्टल पर शिकायत करें। दूसरे कदम के रूप में राज्य शिक्षा विभाग या विश्वविद्यालय में इसकी लिखित शिकायत करें। तीसरे कदम के रूप में अगर छात्र पर मानसिक उत्पीड़न/ हिंसा/ भेदभाव हुआ है तो आईपीसी और एससी/ एसटी एट्रोसीटीज एक्ट जैसे कानूनों के तहत एफआईआर दर्ज करायी जा सकती है। चौथे कदम के रूप में फीस और सुविधाओं से जुड़ी समस्याओं के लिए कंज्यूमर कोर्ट में दस्तक दी जा सकती है।
अगर दिव्यांग छात्रों को जरूरी सहूलियत न मिलें इसके लिए पहले कदम के रूप में परीक्षा प्राधिकरण/संस्थान से लिखित शिकायत करें कि आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 का पालन नहीं हो रहा। दूसरे कदम के रूप में जिला स्तर पर चीफ कमिशनर फॉर पर्संस विद डिसएबिलिटी को शिकायत भेजें और तीसरे कदम के रूप में जरूरत पड़ने पर हाईकोर्ट में रिट डालकर अतिरिक्त समय स्क्राइब या अन्य सहूलियत की मांग करें।
ऐसी स्थिति में पहले कदम के रूप में छात्र या उसके परिजन मेंटल हेल्थ हेल्पलाइन पर संपर्क करें, जो कि 1800-599-7019- किरण हेल्पलाइन है। दूसरे कदम के रूप में मेंटल हेल्थ केयर अधिनियम 2017 के तहत हर छात्र को मुफ्त काउंसलिंग और इलाज का अधिकार है। अगर संस्थान दबाव बना रहा हो, जैसे असंभव टारगेट, भेदभाव, तो पुलिस या शिक्षा विभाग में शिकायत दर्ज करायें।
ऐसे में पहले कदम के रूप में आधिकारिक उत्तर कुंजी और कटआफ की कॉपी आरटीआई के जरिये प्राप्त करें। दूसरे कदम के रूप में आवश्यक आंसर शीट का रिवैल्यूएशन मांगें और तीसरे कदम के रूप में स्टे आर्डर या रि-एंग्जाम की मांग की जा सकती है।
विशेषकर प्रतियोगी परीक्षा भर्ती विवादों के लिए आरटीआई पोर्टल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में शिकायत कर सकते हैं। भेदभाव या उत्पीड़न के मामले में नेशनल कमीशन फॉर शिड्यूल कास्ट/ट्राइब/माइनरटीज/वुमन्स, फीस/सुविधा से जुड़े विवाद में कंज्यूमर कोर्ट से मदद मिल सकती है।
भारत में हर छात्र को समान अवसर देना संस्थान की जिम्मेदारी है। चौदह साल तक की उम्र के हर व्यक्ति को मुफ्त शिक्षा का अधिकार है। परीक्षा भर्ती और कॉलेज प्रशासन आदि से जुड़ी सूचनाएं पाने का सबको अधिकार है। भारत में हर छात्र और प्रतियोगी परीक्षार्थी को निष्पक्ष परीक्षा का अधिकार है, उसे समान अवसर व आरक्षण के लाभ का अधिकार है। बता दें कि इस जानकारी को कानूनी मदद, स्रोत के तौरपर नहीं इस्तेमाल किया जा सकता। सिर्फ पाठकों में अपने अधिकारों के प्रति सजगता बढ़ाने के लिए इसका उपयोग संभव है।
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