यूपी को पहला नमक सत्याग्रही देने वाला गांव बकुलिहा

 

गौरव अवस्थी 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। लालगंज-उन्नाव फोरलेन हाइवे बनने के बाद कई गांव-कस्बों के नाम लिखे दिखने लगे हैं। उनमें एक है- बकुलिहा। करीब पांच हजार की आबादी वाला गांव। आजकल गांव का रास्ता पक्का है। कुछ समय पहले यह कच्चा था। अन्य की तरह इसे साधारण गांव समझने की भूल मत कीजियेगा। स्वाधीनता संग्राम में इस गांव का खासा योगदान रहा है। हालांकि स्वाधीनता से जुड़े अन्य स्थानों की तरह यह भी अब भूला-बिसरा ही है। 
उत्तर प्रदेश में नमक सत्याग्रह के लिए पहला सत्याग्रही देने का श्रेय लालगंज से 12 किलोमीटर दूर स्थित इसी गांव के नाम दर्ज है। 

दांडी में 07 अप्रैल 1930 को समुद्र के खारे जल से नमक बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के नमक कर के आदेश का उल्लंघन करने के बाद महात्मा गांधी ने सारे देश में नमक सत्याग्रह का आग्रह किया। उत्तर प्रदेश में नमक सत्याग्रह की सफलता के लिए कानपुर से प्रकाशित होने वाले प्रताप अखबार के प्रतापी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की अध्यक्षता में समिति गठित की गयी। इस समिति में पंडित जवाहरलाल नेहरू, रफी अहमद किदवई और मोहनलाल सक्सेना सदस्य के रूप में शामिल किये गये। 

इसी समिति ने उत्तर प्रदेश में नमक सत्याग्रह के शुभारंभ के लिए रायबरेली को चुना। तब यह सवाल उठा था कि आखिर रायबरेली ही क्यों? इस सवाल का जवाब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन शब्दों में दिया- रायबरेली में अंगद, हनुमान, सुग्रीव जैसे कार्यकर्ता घड़ी भर की सूचना मिलते ही जान हथेली पर रखकर निकल पड़ते हैं। इसकी दूसरी वजह रायबरेली का 1921 का किसान आंदोलन भी था। रायबरेली का मुंशीगंज गोलीकांड भारतीय स्वाधीनता इतिहास में मिनी जलियांवाला बाग कांड के रूप में याद किया जाता है। 

सई नदी के तट पर ब्रिटिश हुकूमत और जमींदार सरदार वीरपाल सिंह के कारिंदों द्वारा बरसाई गई गोलियों से सैकड़ों किसान शहीद हुए। किसानों के खून से नदी का पानी लाल हो गया था। इस गोलीकांड की सूचना पर रायबरेली आए पंडित जवाहरलाल नेहरू को नजर बंद कर दिया गया था। अपनी आत्मकथा में उन्होंने इस कांड का जिक्र भी किया है। गणेश शंकर विद्यार्थी को इस कांड की विस्तार से रिपोर्ट छापने के लिए दंडित भी किया गया था। बाराबंकी में जन्मे रफी अहमद किदवई की कर्मभूमि रायबरेली ही रही। यह तीनों उत्तर प्रदेश में नमक सत्याग्रह के शुभारंभ के लिए गठित की गयी समिति के सदस्य थे। 

रायबरेली को नमक सत्याग्रह के शुभारंभ के लिए चुने जाने की एक वजह यह भी हो सकती है। समिति ने अपने इस निर्णय की सूचना महात्मा गांधी को भी भेजी। महात्मा गांधी भी मुंशीगंज गोलीकांड भूले नहीं थे। इसलिए उन्होंने फैसले पर तुरंत मोहर लगाते हुए अपने साबरमती आश्रम में रहने वाले रायबरेली के शिवगढ़ के बाबू शीतला सहाय को एक पत्र देकर रायबरेली भी भेजा। यह पत्र था, राजा अवधेश सिंह और उनके भाई कुंवर सुरेश सिंह के नाम। पत्र में इन दोनों को रायबरेली के आंदोलन को नेतृत्व देने का निर्देश दिया गया था। 

जिलास्तर पर रफी अहमद किदवई, मोहनलाल सक्सेना और कुंवर सुरेश सिंह की समिति ने 8 अप्रैल 1930 को डलमऊ के गंगा तट पर नमक बनाने का ऐलान किया और प्रथम सत्याग्रही के रूप में बकुलिहा गांव में जन्मे बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव को चुना गया। डलमऊ के मेहंदी हसन ने सत्याग्रह के लिए शेख सखावत अली का मकान निश्चित किया लेकिन प्रशासन ने 07 अप्रैल को ही मेहंदी हसन को गिरफ्तार कर लिया। रफी अहमद किदवई की तलाश में छापे मारे जाने लगे। 

ब्रिटिश पुलिस की सक्रियता को देखते ही बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव अंग्रेज हुकूमत की आंखों में धूल झोंकते हुए रफी अहमद किदवई के साथ रायबरेली आ गए। 1921 के मुंशीगंज गोलीकांड को ध्यान रखते हुए पंडित मोतीलाल नेहरू भी प्रयाग से रायबरेली पहुंच गये। ब्रिटिश पुलिस और प्रशासन की सक्रियता के चलते डलमऊ में गंगा के किनारे नमक बनाने का प्लान फेल हो गया लेकिन पंडित मोतीलाल नेहरू की उपस्थिति में 08 अप्रैल 1930 को बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव ने लोनी मिट्टी से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ कर प्रथम सत्याग्रही होने का गौरव प्राप्त किया। 

बाबू सत्यनारायण 1921 के असहयोग आंदोलन में नौकरी छोड़कर शामिल हुए। कई वर्षों तक जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे। नमक एवं व्यक्तिगत सत्याग्रह, लगान बंदी और भारत छोड़ो आंदोलन में करीब साढ़े 3 वर्ष से ज्यादा दिन जेल में बंद रहे। 200 रुपये जुमार्ना भी हुआ। लगानबंदी आंदोलन के दौरान बकुलिहा को बारडोली जैसा बनाने का श्रेय भी बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव को ही है।

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