एबीएन एडिटोरियल डेस्क। हरि भाई, यानी हरिनारायण सिंह नहीं रहे। यह एक व्यक्ति का गुजर जाना मात्र नहीं है। यह एक स्तंभ का ढह जाना है। इसलिए उनके निधन की सूचना झारखंड के लोगों के लिए एक बड़ा झटका है। जिसने भी इसे सुना, देखा या पढ़ा, भौंचक रह गया। चाहे वह पत्रकार हो, नेता हो या फिर व्यवसायी या फिर अधिकारी-कर्मचारी से लेकर आम लोग, हर कोई अपने इस प्रिय शख्सियत के अवसान से व्यथित हो गया।
सहकर्मियों के लिए हरि भाई या हरि भैया, परिचितों के लिए हरि जी और आम लोगों के लिए हरि सर एक ऐसी हस्ती का नाम था, जिसमें मानवता कूट-कूट कर भरी थी। तभी उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए उमड़े लोग कह रहे थे, ऐसा संपादक तो हमने देखा या सुना भी नहीं था, जो हर किसी से प्रेम करता हो। चाहे निजी जीवन हो या पेशेवर जीवन, हरि भाई ने कभी भी इंसानी रिश्तों को कमतर नहीं होने दिया।
उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले के पातेपुर में पैदा हुए हरि भाई ने रांची और झारखंड को अपना घर बना लिया था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से रांची, एकीकृत बिहार और झारखंड की पत्रकारिता को नया आयाम देनेवाले हरि भाई ने कलकत्ता (कोलकाता) में रविवार पत्रिका से अपने करियर की शुरुआत की। फिर चौथी दुनिया और आनंद बाजार पत्रिका से होते हुए 23 अक्तूबर, 1989 को प्रभात खबर में काम करने के लिए रांची आये।
वहां से हिंदुस्तान के रांची संस्करण में वरीय स्थानीय संपादक और फिर झारखंड के स्टेट हेड बने। फिर न्यूज 11, सन्मार्ग और खबर मन्त्र जैसे मीडिया संस्थानों में नेतृत्व की भूमिका का निर्वहन करने के बाद 2015 में अपना अखबार आजाद सिपाही निकालना शुरू किया। बिना किसी बड़ी पूंजी और कॉरपोरेट समर्थन के रांची से निकल कर आजाद सिपाही आज झारखंड के शीर्ष अखबारों की कतार में शामिल है, तो इसके पीछे हरि भाई की सोच, विजन और मेहनत है। उन्होंने अखबार को एक ऐसे परिवार के रूप में बदल दिया, जहां कोई नौकरी नहीं करता है, बल्कि घर का काम करता है। ऊर्जा, उत्साह, जानकारी और मेहनत का ऐसा अद्भुत संगम थे हरि भाई कि मीडिया जगत ही नहीं, दूसरे क्षेत्रों के लोग भी उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते थे।
हरि भाई ने जिस गंभीरता से पत्रकारिता की, उसी गंभीरता से इंसानी रिश्तों और मानवीय संवेदनाओं को भी अनुभूति दी। वह ऐसे व्यक्ति थे, जिनको किसी से बैर नहीं था। वह किसी की निंदा नहीं करते थे और न ही किसी को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसलिए हर कोई उनका दोस्त था और उनसे मिलनेवाला हर व्यक्ति उनसे एक आत्मीय रिश्ता जोड़ लेता था।
अपने पत्रकारीय जीवन में हरि भाई ने सैकड़ों लोगों को पत्रकार बनाया, रोजगार दिला कर उन्हें संभाला और एक अभिभावक की तरह उनका मार्गदर्शन किया। वह ऐसे संपादक थे, जिन्होंने आज तक किसी को भी काम से नहीं निकाला। बालसुलभ सहजता, हर समय कुछ नया सीखने और करने की ललक और हर रिश्ते से अधिक मानवीय रिश्ते को माननेवाले हरि भाई ने जो रिक्तता पैदा की है, उसे भर पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। (लेखक आजाद सिपाही के स्थानीय संपादक हैं।)
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