एबीएन एडिटोरियल डेस्क। काथलिक कलीसिया में ख्रीस्त जयंती का अलग ही महत्व है। यह पर्व येसु के जन्मदिन की याद दिलाता है। उनका जन्म अद्भुत था, क्योंकि उनके जन्म से एक नया युग, नयी सोच और नयी जीवन शिक्षा की शुरुआत हुई। उनका जन्म भी विशिष्ट था, क्योंकि जोसफ और गर्भवती मरियम ने अगुस्तुस सीजर के समय यहूदी जनगणना के लिए अपना नाम दर्ज करवाने के लिए नाजरेथ से बेथलेहम पहुंचने के लिए लगभग 150 किलोमीटर पैदल यात्रा की।
बेथलेहम पहुंचने पर गर्भवती मरियम दर्द से तड़प रही थीं, और जोसफ बड़े आशा और उम्मीद से मदद की गुहार लगाते हुए घर-घर जाकर शरण की याचना कर रहे थे। लेकिन जोसफ और मरियम को अपरिचित और अजनबी समझकर अधिकांश लोग अपना दरवाजा बंद कर देते थे। फिर भी, जोसफ ने अपनी पत्नी मरियम को हौसला और साहस देते हुए, आशा की किरण के साथ हर घर का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हर बार यही जवाब मिलता, हमारे यहां स्थान नहीं है, कृपया आगे जाइये। थके-हारे वे शरण की खोज में दर-दर भटकते रहे।
अंत में, बहुत मुश्किल से उन्हें एक छोटे से कोने में एक स्थान मिला, जहां घरेलू जानवरों को रखा जाता था। वहीं, मरियम ने अपने प्यारे पुत्र येसु मसीह, दुनिया के मुक्तिदाता को जानवरों के बीच जन्म दिया। इस प्रकार, बड़ी तंगी में येसु का जन्म नाजरेथ के एक साधारण परिवार में हुआ, जहां जोसफ एक बढ़ाई थे।
येसु के जन्म का पर्व हम सभी मानवता के लिए, इस दुनिया के लिए आशा का संदेश देता है। यह पर्व आशा का पर्व है, क्योंकि यह हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए हिम्मत और साहस देता है। यह पर्व येसु के जन्म के समय की सामाजिक स्थिति और वास्तविकता आज के हमारे समाज, परिवार और हर एक माता-पिता के लिए एक सच्चे दर्पण की तरह है। यह जन्म पर्व हमारे जीवन की कड़वी सच्चाई है।
इस पर्व का यही संदेश है कि हम एक दूसरे के लिए आशा बनें। हम भी एक-दूसरे के लिए आशा बनें, जैसे जोसफ ने पूरी तत्परता और लगन के साथ अपनी पत्नी का साथ दिया। मरियम ने भी बड़े प्यार से, सुख और दु:ख में, एक आशा की किरण बनकर एक आदर्श पत्नी और मां का कर्तव्य निभाया और नाजरेथ के परिवार को प्रेम और पवित्र परिवार बनाया।
दूसरी ओर, येसु के जन्म के समय दुनिया ने उन्हें शरण नहीं दी और उनका साथ नहीं निभाया। दुनिया ने येसु को उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक दु:ख, गम, अन्याय, तिरस्कार और धोखा दिया, लेकिन बदले में उन्होंने दुनिया को न्याय, प्रेम, क्षमा, विश्वास और शांति की शिक्षा दी। उन्होंने हमेशा दबे कुचले, शोषित, असहाय, जरुरतमंदों का सहारा दिया, हर कदम में उनका साथ दिया।
इसलिए येसु इम्मानुएल कहलाये जिसका अर्थ है प्रभु हमारे साथ है। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक अपने जीवन से प्रेम, साहस और आशा का एक अमिट संदेश दिया। यह पर्व हमें एक गहरा निमंत्रण देता है कि हम हर लाचार, बेबस, हताश और निराश दिलों के लिए आशा की किरण बनें। एक-दूसरे के जीवन में उम्मीदों का दीप जलायें, ताकि हर कदम में एक नयी रोशनी और विश्वास का अहसास हो। (लेखक रांची महाधर्मप्रांत हैं।)
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