एबीएन एडिटोरियल डेस्क। धन, संपदा और भौतिक संसाधन से जो जितना संपन्न है उसी के अनुपात में उसकी समृद्धि आंकी जाती है, जो कि एक सामान्य दृष्टिकोण है। समृद्धि प्राप्त करना एक सामान्य व्यवहार है और जिसे भी देखिए इस दिशा में भाग रहा है। सफलता और असफलता के कई भौतिक कारण हो सकते हैं परंतु मूल कारण के ऊपर कोई विचार नहीं करता है।
वास्तव में देखा जाए तो सफलता अथवा असफलता का मूल आधार हमारा व्यक्तित्व ही होता है इसके निर्माण पर कम ही ध्यान दिया जाता है; जबकि हमारी भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर 25 वर्षों तक व्यक्तित्व के निर्माण का काल निर्धारित रहा है। अपनी प्रतिभा को समृद्ध बनाए बिना क्या भौतिक समृद्धि प्राप्त करना सरल है ?
वंशानुगत प्राप्त भौतिक समृद्धि क्या वास्तविक संतोष और सुख दे पता है? इन प्रश्नों का हल ढूंढने से ज्ञात होता है कि भौतिक समृद्धि से कहीं अधिक प्रतिभा की समृद्धि आवश्यक है जो इंसान को भटकने नहीं देता है। उक्त जानकारी पवित्रम सेवा परिवार के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने दी।
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