योगी का बंटोगे तो कटोगे का नारा झारखंड में भी गूंजेगा?

 

एनके मुरलीधर

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की तारीख तय हो चुकी है। यह तो तय है कि योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता पूरे देश में है। बंटोगे तो कटोगे का योगी का चुनावी उद्घोष का असर मतदाताओं पर विशेष रूप से देखा जा रहा है। जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के पांच क्षेत्रों में चुनाव प्रचार किया, जिसमें से चार सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की। इसी तरह उन्होंने हरियाणा विधानसभा चुनाव में प्रचार किया। 

यह तय है कि महाराष्ट्र के चुनाव में योगी का एक बड़ा कार्यक्रम होगा, लेकिन यक्ष प्रश्न है कि क्या झारखंड में योगी आदित्यनाथ चुनाव प्रचार के लिए आयेंगे या बुलाये जायेंगे? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर भाजपा के अंदर अपनी ताकत का अहसास करा दिया है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा को लगातार तीसरी बार मिली जीत के हीरो बनकर उभरे हैं योगी। योगी ने हरियाणा में कुल 14 विधानसभा क्षेत्रों में जनसभाएं की जिसमें से 09 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई। 

यह स्ट्राइक रेट 70 फीसदी के करीब बैठता है जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुल 08 जनसभाएं की। जिसमें से कांग्रेस को मात्र दो सीटों पर ही जीत हासिल हो पायी। भाजपा की जीत में वोटिंग प्रतिशत का बढ़ना भी अहम रहा। कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव के समय हरियाणा में थोड़ी कमजोर नजर आ रही भाजपा को सही मौके पर यहां के वोटरों ने बूस्टर डोज दे दी। हरियाणा विधानसभा चुनाव में 48 सीट जीतकर भाजपा सत्ता बरकरार रखने में कामयाब हुई, जबकि कांग्रेस को 37 सीट पर जीत मिली है। खासकर योगी के बंटोगे तो कटोगे वाले बयान ने भी योगी की जीत में अहम भूमिका निभायी। 

कहने का तात्पर्य यह है कि सीएम योगी एक बार फिर से भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड साबित हुए हैं। योगी का मंतव्य यह बताने के लिए काफी है कि हरियाणा में भाजपा का हिन्दुत्व का कार्ड तो खूब चला, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस का संविधान बचाओ का ढोंग और हिंदुओं को जातियों में बांट कर हिंदू वोटों में डिवीजन की साजिश परवान नहीं चढ़ पायी। योगी ने हरियाणा में चार दिन और जम्मू-कश्मीर में दो दिन प्रचार किया। 

सीएम योगी ने 22 सितंबर को नरवाना, राई और असंध सीट पर चुनाव प्रचार किया। इन तीनों ही सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। इसके बाद 28 सितंबर को मुख्यमंत्री ने फरीदाबाद, रादौर, जगाधरी और अटेली सीटों पर प्रचार किया। इन सभी सीटों पर भी भाजपा जीती है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने 30 सितंबर को बवानी खेड़ा में चुनावी जनसभा की थी। इस सीट पर भी भाजपा ने जीत दर्ज की है। 

तीन अक्टूबर को उन्होंने सफीदों में जनसभा की, यहां भाजपा ने जीत दर्ज की है। अब अगर जम्मू-कश्मीर में उनके ट्रैक रिकॉर्ड पर ध्यान दें तो बिल्कुल ऐसा ही नजर आता है, जिन सीटों पर उन्होंने चुनाव प्रचार किया वहां भाजपा का दबदबा रहा। योगी ने जम्मू कश्मीर के रामगढ़, आरएस पुरा दक्षिण, रामनगर और कठुआ में सभाएं की थीं। इन सभी सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। उनका चुनाव के दौरान उनका जादू चलता नजर आया है।  

भाजपा योगी का प्रचार उन क्षेत्रों में करवाती है, जहां जीत सुनिश्चित करानी हो। अगर योगी का झारखंड में कार्यक्रम होता है जिसकी पूरी संभावना है तो वह शहरी क्षेत्रों के अतिरिक्त पलामू प्रमंडल के उत्तर प्रदेश से सटे गढ़वा, मेदनीनगर सहित बिहार से सटे हजारीबाग, देवघर सहित उन जिलों के विधानसभा क्षेत्रों में होगी जहां भाजपा उग्र हिंदूत्व को अपना जीतने का हथियार बनाती आयी है।  

वैसे भी गोरखपुर पीठ हिंदू धर्म के उच्च परंपरा वाले संतों, सदगुरुओं की पीठ है जिसके देश में लाखों अनुआयी हैं। आज योगी की लोकप्रियता का परिणाम है कि यूपी में लगातार जीत हासिल हो रही है। लोकसभा चुनाव में कम सीटों पर जीत का नकारात्मक असर से उबर चुके योगी आज विधानसभाओं में भाजपा के सबसे लोकप्रिय चेहरों में एक है। उत्साही समर्थक उन्हें देश के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार करते हैं। भाजपा निश्चत तौर पर योगी का कार्यक्रम झारखंड विधानसभा चुनाव में करेगी यह तय है। 

भाजपा की अंदरूनी रणनीति के अनुसार पार्टी विधानसभा की 44 उन सीटों पर फोकस करने जा रही है जो सामान्य श्रेणी की आती है। उसके बाद आठ एससी सीटों पर भी पार्टी पूरा जोर लगायेगी। इन्हीं सीटों पर योगी आदित्यनाथ की सभा आयोजित करने से पार्टी अधिकतम लाभ में होगी। शेष 28 जनजातीय सीटों पर पार्टी का आत्मबल कमजोर है। माय, माटी, रोटी का नारा इन 28 सीटों को ध्यान में रखकर प्रचारित किया जा रहा है लेकिन इन सीटों पर चंपई सोरेन  गीता कोड़ा और सीता सोरेन के माध्यम से ही कुछ सीटों पर उम्मीद कर सकती है। 

लोकसभा के चुनाव के आधार पर पार्टी भले 55 विधानसभा पर आगे दिखती हो लेकिन विधानसभा में पहले के 65 सीटों के नारों का ध्वस्त होना अभी तक भुला नहीं पायी है। ऐसे में पार्टी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। राजनीतिक समीकरण आजसू के साथ होने, झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय से भाजपा के पक्ष में दिखता है लेकिन वर्तमान सरकार की लोक लुभावन कार्यक्रमों और स्थानीयता का भाव भाजपा पर भारी पड़ सकता है। 

ऐसे में भाजपा के तरकश में जितने भी तीर है उन सब का इस्तमाल भाजपा अवश्य करेगी। इनमें एक योगी आदित्यनाथ भी है जो फिर से पूरे फार्म में है। भाजपा के कट्टर हिंदूत्व के सबसे बड़े फायर ब्रांड  नेता का झारखंड के चुनाव में उपयोग न हो ऐसा संभव नहीं जान पड़ता है। चुनाव के रंग है उसमें भगवा के असर की परीक्षा भी है। किसी भी हाल में भाजपा हिंदूत्व को छोड़ नहीं सकती है।  झारखंड में भाजपा जिन मुद्दों को उठा रही है उसमें हिंदूत्व की चासनी से लपेटी हुई है। 

घुसपैठ, धर्मांतरण, सत्ता रूढ़ दल पर सांप्रदायिक होने का आरोप जैसे मुद्दों के साथ है। देश में लंबे समय से स्थापित सेक्यूलरिज्म की काट भाजपा का हिंदूत्व ही बना। इस आधार पर भी झारखंड में भाजपा सफल होती रही है। यह अलग बात है कि जीत के साथ जो कमियां राजनीतिक दलों में आती है उसका शिकार भी भाजपा होती रही है। लेकिन जीत का अंतिम प्रयास में हरियाणा और कश्मीर का प्रदर्शन झारखंड में दोहराने का प्रयास करेगी। (लेखक एबीएन के प्रधान संपादक हैं।)

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