एबीएन एडिटोरियल डेस्क। ये विषय देश की आंतरिक सुरक्षा, सद्भाव और परस्पर समरसता से जुड़ा है। अभी लगातार दो तरह की घटनाएं घटती दिख रही हैं, एक तरफ राहुल गांधी स्वयं से नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं तो दूसरी ओर जेएनयू जैसे शिक्षा संस्थान और स्वयंसेवी संस्थाएं हैं जिन्हें टूलकिट के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। उद्देश्य दोनों का समान है, भारत में अराजकता का माहौल पैदा करना।
वर्तमान केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास की भावना आम जन में भर देना ताकि किसी भी तरह से देश में दंगे-फसाद कराये जा सकें और फिर किसी तरह से वर्तमान नेतृत्व को सत्ता से बाहर कर सत्ता हथियाई जा सके। वैसे देश की एकता, अखण्डता एवं समरसता के लिए पहले भी न्यायालय कई विषयों पर आगे से स्वत: संज्ञान लेकर हस्तक्षेप करता रहा है। इस मुद्दे पर भी माननीय न्यायालय से आग्रह है कि वह आगे आये। देश में घटनाएं कैसे घट रही हैं, आप देखिये; पहले, राहुल गांधी का एक वीडियो सामने आता है, इसे उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में संविधान सम्मान सम्मेलन का बताया जा रहा है।
इस सम्मेलन में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी मिस इंडिया कॉन्टेस्ट को लेकर यह दावा करते नजर आ रहे हैं कि देश में नब्बे प्रतिशत लोग सिस्टम का हिस्सा नहीं हैं, कह रहे हैं, मैं तो मिस इंडिया की लिस्ट देख रहा था, उसमें कोई दलित-ओबीसी-आदिवासी, अल्पसंख्यक ही नहीं है। उनके पास हर तरह की प्रतिभा मौजूद है, लेकिन फिर भी वे सिस्टम से जुड़े नहीं हैं। यही कारण है कि हम जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं। उनका ये बयान सामने आने के बाद मीडिया ने भी इसे तेजी के साथ आगे बढ़ाया।
स्वाभाविक है, जो आंकड़ों में नहीं जाते, अध्ययन करने पर कम, अपने नेता या वरिष्ठ के कहे पर विश्वास अधिक करते हैं। जो साक्षर हैं किंतु शिक्षित नहीं, वस्तुत: देश में ऐसे करोड़ों लोग हैं। अब ऐसे में राहुल गांधी का दयिा ये बयान उन्हें सही नजर आ सकता है! स्वभाविक तौर पर उनके मन में आक्रोश भी पनप सकता है कि बताओ, स्वाधीनता के 77 वर्ष बाद भी देश में अनुसूचित जाति-जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यकों को उनका अधिकार क्यों नहीं दिया गया है, बल्कि अभी पर कुछ चुनिंदा अपने में तथाकथित बड़ी जातियों ने कब्जा करके रखा है!
किंतु क्या राहुल गांधी यहां जो कह रहे हैं वह सच है माननीय न्यायालय आप जानते हैं कि राहुल गांधी यहां जूठ बोल रहे हैं। देश में सिर्फ मिस इंडिया ही नहीं अनेक प्रमुख प्रतिष्ठित स्थानों पर अजा, जनजा, अल्पसंख्यक लोग विराजमान रहे हैं और वर्तमान में भी हैं। इस संदर्भ में अनेक तथ्य मौजूद हैं, जैसेकि भारतीय जनता पार्टी नेता तजिंदर पाल सिंह बग्गा ने स्वाधीनता के बाद से अब तक उन महिलाओं की सूची साझा की है, जिन्होंने मिस इंडिया का क्राउन पहना है।
इस लिस्ट को जारी करते हुए तजिंदर बग्गा ने एक्स पर लिखा भी कि इस देश में मिस इंडिया कॉन्टेस्ट 1947 में शुरू हुई, उसमें अल्पसंख्यक समाज की कई बहनें विजेता बनी। उन्होंने जो लिस्ट साझा करते हुए एस्टर विक्टोरिया अब्राहम, इंद्रानी रहमान, फेरिअल करीम से लेकर नायरा मिर्जा, अंजुम मुमताज, फरजारा हबीब, सोनू वालिया, गुल पनाग, साराह जेन डायस, नवनीत कौर ढिल्लन तक के नामों का उल्लेख किया है। वस्तुत: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी इतना कहने के बाद भी चुप नहीं रहे हैं। उन्होंने केंद्र सरकार पर बड़े आरोप लगा दिए । इसी संविधान सम्मान सम्मेलन कार्यक्रम में बोलते दिखे कि संविधान की रक्षा, दलित, आदिवासी, ओबीसी करते हैं।
यहां प्रश्न यह है कि क्या अन्य जन जो इस सूची से बाहर हैं, वह संविधान की रक्षा नहीं करते फिर उनका यहां यह कहना कि देश के उद्योगपति में कोई दलित आदिवासी नहीं, मोची, धोबी और बढ़ई के हाथों में जबरदस्त स्किल है, पर देश में हुनर की इज्जत नहीं ह, कितना सही है आगे वे कहते दिखे, स्किल डेवेलमेंट की शुरूआत यूपीए ने की थी किंतु 90 प्रतिशत लोग सिस्टम से बाहर बैठे हैं। पीएम मोदी राजा-महाराजा वाला मॉडल चाहते हैं।
अब माननीय न्यायालय आप देखिये, यह संविधान बचाने के नाम पर देश को किस-किस तरह से आपस में यहां के जनसमुदायों को जाति के आधार पर भिड़ाने की कोशिश की जा रहे हैं! जबकि हकीकत यही है कि देश में अनेक उद्योगपति हैं, जोकि अजा, जनजा, पिछड़ावर्ग से आते हैं और वे अपने व्यवसाय में पूरी तरह से सफल हैं। यहां भी राहुल का इस संबंध में किया दावा गलत ठहरता है। इस वक्त राहुल गांधी जिस तरह से आबादी के हिसाब से नीतियां बनाने की बात कह रहे हैं, हम सभी जानते हैं कि वह साम्यवाद का वामपंथी मॉडल है, जो कहता है कि सभी को उनकी जनसंख्या के हिसाब से लाभ मिले।
दरअसल, सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है।
किंतु इस मॉडल के अनेक खतरे हैं। पूरी दुनिया इस मॉडल को रिजेक्ट कर चुकी है, यहां तक कि जहां से वामपंथ शुरू हुआ था, वह देश वियतनाम, चीन, जर्मनी, रूस या अन्य कोई देश क्यों न हो। सभी का अनुभव इस मामले में एक जैसा ही है कि यह नीति अपने देश की बहुजनसंख्या को निकम्मा बना देने का काम करती है। अब इस सिद्धांत से चलेंगे तो जो काम करेगा उसे भी उतना ही भाग मिलेगा जितना कि बगैर काम करनेवाले को। ऐसे में योग्य लोगों की जब प्रतिभा का ह्रास होता दिखेगा तो फिर कौन काम करना चाहेगा समाज की व्यवस्था अपने आप डगमगा जायेगी। समाज की श्रम और क्रय शक्ति कमजोर होगी तो स्वभावकि है कि देश कमजोर हो जायेगा।
अभी ये घटना घटी ही थी कि एक दूसरी घटना का वीडियो सामने आया, अबकी बार ये जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से बाहर आया था, जिसमें कि जेएनयू के अंदर आजादी-आजादी वाले फिर गूंजे हैं। यहां प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने कथित तौर पर हिंदू राष्ट्र से आजादी और रामराज्य से आजादी के नारे लगाये हैं। यहां लगे नारों को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की जेएनयू ईकाई के अध्यक्ष राजेश्वर कांत दुबे ने इसके संबंध में खुलकर बताया भी है कि कैसे कुछ वामपंथी अपना प्रोटेस्ट करते हैं और उसमें स्टूडेंट के हित को लेकर के नारे नहीं लगाते, बल्कि सनातन हिन्दू धर्म के खिलाफ ये नारे लगाते हैं।
राजेश्वर कांत दुबे बताते हैं कि जेएनयू में छात्रों की मांगों को लेकर प्रदर्शन कई दिनों से चल रहा था। इसी के तहत कुछ वामपंथी और कांग्रेसियों ने एमओई तक मार्च निकाला। इसमें छात्रों की मांगों को लेकर नारेबाजी नहीं हुई, बल्कि उसमें सनातन हिंदू धर्म के विरोध में नारे लगे। उसमें भारत के खिलाफ भी नारे लगाये गये हैं। अब माननीय न्यायालय आप ही देखें, भारत में कौन सा हिंदू राष्ट्र बन रहा है और कौन सा राम राज्य आ गया जो यह नारे लगाकर एक बहुसंख्यक समाज को विचलित कर देने का प्रयास किया जा रहा है! इसके पीछे के लोगों की आप पड़ताल करेंगे तो मालूम हो जाएगा कि इनके और राहुल गांधी के अंतरंग संबंध कितने गहरे हैं!
वास्वत में लगातार जहर उगल रहे राहुल गांधी बहुसंख्यक हिन्दू समाज को कई टुकड़ों में विभाजित कर देने के षड्यंत्र में रचे-बसे नजर आ रहे हैं। जोकि नेता प्रतिपक्ष होने के नाते अति गंभीर मामला है, जिस पर कि अतिशीघ्र रोक लगना जरूरी है। यहां यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि विरोध का मतलब यह कदापि नहीं हो सकता कि देश को कमजोर किया जा सके, वह कोई भी हो, एक जिम्मेदार पद पर बैठकर देश को कमजोर करने की अनुमति किसी को नहीं दी जा सकती है। माननीय न्यायालय अब आपसे ही आस है। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)
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