बांग्लादेश में हिन्दू मारे जा रहे, यूएन को सिर्फ गाजा और सूडान की चिंता

 

डॉ मयंक चतुर्वेदी

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। इस्लामिक अतिवादियों, उपद्रवियों और आतंकवादियों ने छात्र आंदोलन के नाम पर बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के इस्तीफे के बाद कई जगहों पर हिंदुओं पर हमले करना जारी रखा है। आधिकारिक तौर पर 500 से अधिक हिंदू मंदिरों, सैकड़ों घरों और हजारों व्यापारिक प्रतिष्ठानों को शरिया की चाह रखनेवाले और गैर मुस्लिम को अपना शत्रु समझनेवाले मुसलमानों ने निशाना बनाया है। 

हिंदुओं की संपत्ति लगातार लूटी जा रही है। उनकी हत्या की जा रही है और उनके शवों को लटकाया जा रहा है। दूसरी ओर हिन्दू महिलाओं के साथ सामूहिक रेप हो रहे हैं। ये जिहादी इस्लामवादी बच्चियों को भी नहीं छोड़ रहे और इस प्रकार की घटनाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही हैं । कई कट्टरपंथी तो साफ तौर पर हिन्दुओं को निशाना बनाने की बात कहकर सोशल मीडिया में वीडियो वायरल कर रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा हिन्दुओं को निशाना बनाया जा सके।

ये इस्‍लामवादी यहां तक नीचता पर उतर आए हैं कि मारते वक्‍त पैंट नीचे उतारकर देखते हैं कि हिन्‍दू ही है या नहीं। जैसे ही पिटनेवाले का हिन्‍दू होना कन्‍फर्म हो जा रहा है कि इसका खतना नहीं हुआ, सभी ओर से उसे जान से मार देने के लिए टूट पड़ रहे हैं । पिछले तीन दिन में इस प्रकार के अनेक वीडियो सामने आ चुके हैं और अत्‍याचार के ये वीडियो लगातार सामने आते ही जा रहे हैं । 

ऐसे में गाजा पर, हमास और फिलिस्‍तीनियों के नाम पर इजराइल की सैन्‍य कार्रवाई को लेकर आंसू बहानेवाले मानवाधिकार संगठनों, यूनिसेफ समेत अन्‍य वैश्विक संस्‍थाओं की हिन्‍दू अत्‍याचार पर चुप्‍पी बहुत चुभ रही है। जबकि कहने को ये अपने आप को मानवाधिकार का सबसे बड़ा झण्‍डाबरदार मानते हैं । यूएन का बयान आया भी तो वह हिन्‍दुओं के ऊपर हो रहे कई दिन के अत्‍याचार के बाद । बांग्लादेश के कुल 64 जिलों में 50 से अधि‍क में ह‍िन्‍दू विरोधी ह‍िंसा जारी है।

दरअसल, अभी यूनाइटेड नेशन (यूएन) जिसकी अधिकारिक वेबसाइट पर तमाम मानवीयता का दावा करनेवाली स्‍टोरी तैरती नजर आ रही हैं, लेकिन यदि कुछ उसमें गायब है तो वह है हिन्‍दू अत्‍याचार से जुड़ी बांग्‍लादेश की एक भी स्‍टोरी का वहां नहीं पाया जाना । सबसे ज्‍यादा यूएन यदि मानवीयता के नाम पर कवरेज किसी को देता दिख रहा है तो वह गाजा है। उसके बाद दूसरे नंबर पर सूडान की समस्‍याओं का निदान है, उसके लिए किए जा रहे कार्य हैं । 

वहीं दिनांक 07 अगस्‍त के ताजा अपडेट में संयुक्‍त राष्‍ट्र को चिंता अफगान महिलाओं की सबसे ज्‍यादा दिखाई दे रही है और इसलिए वह ऑस्ट्रेलिया सरकार, अफगान हत्याओं के लिए मुआवजा दे, मानवाधिकार विशेषज्ञ शीर्षक से स्‍टोरी कर रहा है । वह कवरेज दे रहा है गाजा में स्कूलों पर इजराइली हमलों में तेजी पर गम्भीर चिन्ता शीर्षक के माध्‍यम से वहां की इस्‍लामिक जनता की चिंता उसे है, यह बताने की ।

यूनाइटेड नेशन (यूएन) को इस वक्‍त सबसे ज्‍यादा लेबनान, सीरिया गोलान पहाड़ियां और ईरान की राजधानी तेहरान में हुए हमलों से पूरे क्षेत्र में टकराव भड़कने की आशंका सता रही है। इसे मुस्‍लिम बच्‍चों और महिलाओं की चिंता है। इससे जुड़े सभी मानवाधिकार कार्यकर्ता और संगठन इन्‍हीं पर फोकस कर कार्य करते नजर आ रहे हैं, जैसा कि इसने अपनी रिपोर्ट्स में अधिकारिक वेबसाइट के माध्‍यम से बताया है, लेकिन उसे बांग्‍लादेश में जो अमानवीयता-अत्‍याचार हो रहा है, वह दिखाई नहीं दे रहा ।

हालांकि कुल तीन स्‍टोरी बांग्‍लादेश पर यूएन ने करवाई हैं, किंतु ये सभी सतही हैं। सामान्‍य डेटा है इसमें । यहां हिन्‍दुओं पर जो भयंकर अत्‍याचार हो रहे हैं, उस पर एक शब्‍द भी यूएन के माध्‍यम से अब तक नहीं बोला गया और न ही कोई स्‍टोरी फ्लेश की गई है । जबकि यूएन अपनी अधिकारिक वेबसाइट पर यह दावा जरूर करता दिखा है कि यूएन न्‍यूज यानी कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मानवीय कहानियां (Global perspective Human stories) यही साझा करना उसका अहम कार्य है। 

दूसरी ओर वास्‍तविकता में यहां यही दिखाई दे रहा है कि उसे ईसाईयत और इस्‍लाम से जुड़े लोगों की चिंता सबसे अधिक है, उनके मानवाधिकार उसे याद हैं, जैसा कि उसकी वेबसाइट https://news.un.org में देखा जा सकता है लेकिन वैश्विक मानवाधिकार की पैरोकार बननेवाले इस संगठन को हिन्‍दुओं के अत्‍याचारों से कोई भी लेना-देना नहीं है।

यही हाल यहां दूसरे सबसे बड़े बच्‍चों और महिलाओं के वैश्विक मंच होने का दावा करने वाले उनकी सर्वाधिक चिंता जतानेवाले संगठन यूनिसेफ का नजर आ रहा है । कहने को इस संगठन का दावा है कि दुनिया के हर देश में उनके वॉलंटियर एवं पेड वर्कर्स हैं, जिनके माध्‍यम से यह बच्‍चों एवं महिलाओं के हित में चहुंमुखी और सर्वाधिक कार्य करता है, लेकिन बांग्‍लादेश हिन्‍दू हिंसा पर ये संगठन भी पूरी तरह से गायब है, कहीं कोई आवाज इसकी सुनाई नहीं दे रही। ये पूरी तरह से चुप नजर आ रहा है ।

इसे भी आज यदि किसी की सबसे ज्‍यादा‍ चिंता हो रही है जैसा कि दिखाई भी दे रहा है तो वह गाजा में रह रहे मुसलमान हैं। वे ही इस यूनिसेफ संगठन की नजरों में सबसे बड़े पीड़‍ित हैं, इसलिए ही यह अधिकारिक तौर पर Children in Gaza need life-saving support, UNICEF and partners are on the ground स्‍टोरी को पहले स्‍थान पर रखकर चल रहा है। 

इसके बाद https://www.unicef.org/ जो विशेष स्‍टोरी महिलाओं एवं बच्‍चों के हित में यहां देता दिख रहा है, उसमें भी अफ्रिका के सूडान, हेती एवं अन्‍य देश शामिल हैं लेकिन बांग्‍लादेश के इस्‍लामिक जिहादियों से प्रताड़‍ित होते बच्‍चे और महिलाएं कहीं भी अपनी स्‍टोरी या दर्द भरी दांसता में (यूनिसेफ़) इसके यहां अपनी जगह नहीं बना सके हैं।

इसी तरह से कई वैश्‍विक एवं स्‍थानीय मानवाधिकार संगठनों, मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल एवं अन्‍य की पहली प्राथमिकता में गाजा, फिलीस्‍तीन अफ्रीका, अफगानिस्‍तान एवं अन्‍य इस्‍लामिक देश एवं युरोपियन देश तो हैं, लेकिन बांग्‍लादेश में हिन्‍दू प्रताड़‍ित और अत्‍याचार से अपनी जान गंवा रहे हैं, यह उनके लिए भी कोई महत्‍व नहीं रखता है। जबकि वास्‍तविकता बांग्‍लादेश में सर्वत्र भयावह है। 

ढाका के धामराई में एक हिंदू परिवार के घर पर 100-150 इस्लामिक चरमपंथियों की एक भीड़ आती है, घर को तोड़ देती, सारी संपत्ति लूट लेती है और घर में बने मंदिर को क्षत-विक्षत कर दिया जाता है। हिंदू परिवार पर हुए हमले की इस घटना को बांग्लाादेशी अखबार ढाका ट्रिब्यून ने प्रकाशित किया है। यहां ऐसे अनेक परिवारों पर लगातार हमले हो रहे हैं।

प्रश्‍न यह है कि ये सब कुछ बांग्लादेश में आरक्षण समाप्‍त करने के लिए छात्र आंदोलन के नाम पर हो रहा है! एक सवाल लगातार उठ रहे हैं, कि आखिर छात्र आंदोलन इतना हिंसक क्यों हो गया? आज यह सवाल उठना बहुत लाजमी भी है क्‍योंकि छात्रों के प्रदर्शन का मकसद सिर्फ आरक्षण को खत्म करना नहीं दिखा है, इससे इतर इसकी आड़ में इस्‍लाम का अतिवादी चेहरा दुनिया को दिखाना और यहां के अल्‍पसंख्‍यकों को समाप्‍त करके शरिया राज की स्‍थापना करना दिखाई दे रहा है !

जिस सरजिस आलम, छात्र नेता की बात जोरशोर के साथ शेख हसीना सरकार के खिलाफ हुए आंदोलन में केन्द्रीय भूमिका निभाने को लेकर हो रही है, उसके बारे में भी यह सामने आ चुका है कि उसका मूल मकसद छात्र आन्‍दोलन एवं अवाम को भड़काकर बांग्लादेश में शरिया आधारित इस्लाम की स्थापना करना है। सरजिस आलम ने फेसबुक पोस्ट में लिखा था, कल का राष्ट्र इस्लाम होगा, संविधान अल कुरान होगा - इंशा अल्लाह। जब उसकी इस पोस्‍ट से इस पूरे आन्‍दोलन का पर्दाफाश हुआ तो उसने फिर दूसरा चेहरा दिखाना शुरू कर दिया और इसलिए इस सरजिस आलम ने अपना फेसबुक पोस्ट डिलीट कर दिया। लेकिन बांग्लादेश को शरिया राष्ट्र में बदलने की उसकी मंशा अब दुनिया के सामने उजागर हो चुकी है।

शरिया देश में गैर मुसलमानों को देना होगा जजिया, गैर मुस्‍लिम लड़कियां और महिलाएं होंगी गनीमत की संपत्ति

बांग्लादेशी पत्रकार सलाह उद्दीन शोएब चौधरी इस बारे में जानकारी देते हुए लिख रहे हैं, कि सरजिस आलम बांग्लादेश में जिस इस्लाम की स्थापना करना चाहता है, उस शरिया देश में हिंदुओं और गैर-मुस्लिमों को जजिया देना होगा, जबकि गैर-मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं को गनीमत की संपत्ति माना जाएगा, जिसका अर्थ है कि इस्लामवादी उन्हें यौन दास के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने आगे लिखा है, कि विवेक रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति नैतिक रूप से इसका सामना करने के लिए बाध्य है। कृपया इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं। आइए, हम इस्लामवादियों को बांग्लादेश को नव-तालिबान राज्य में बदलने से रोकें।

पिछले 10 साल में पांच हजार से अधिक भयावह हिन्‍दू विरोधी घटनाएं घटीं

इस सब के बीच बड़ी और दुखभरी बात यह है कि दुनिया में एक देश जिसमें कि एक करोड़ से अधिक हिन्‍दू आबादी है, आज उनके घर लूटे जा रहे हैं, उनसे जीवन जीने का हक छीना जा रहा है, उन्‍हें अपना गुलाम बनाने पर ये इस्‍लामवादी मुसलमान मजबूर कर रहे हैं या फिर उन्‍हें अपना सब कुछ छोड़कर बांग्‍लादेश से बाहर जाने को कह रहे हैं। 

दुखद है कि इन सभी हिन्‍दुओं पर होता अत्‍याचार वैश्‍विक स्‍तर पर बड़े बड़ों को जो अपने को शक्‍तशाली कहते हैं, उन्‍हें दिखाई नहीं दे रहा है। हर साल दुर्गापूजा पर इन्‍हें (हिन्‍दुओं को) निशाना बनाया जाता है। भारत में कुछ सांप्रदायिक मामले होते हैं तो हिंसा बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्‍दुओं पर शुरू हो जाती है। 1992 में भी निशाना बनाया गया था, जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था और पिछले 10 सालों में यहां पर कम से कम 05 हजार से अधिक हमलों की रिपोर्ट हुई है , जिसमें बर्बरता, आगजनी और लक्षित हिंसा शामिल है।

सरकार बदली, हालात नहीं, अभी बांग्‍लादेश के 27 जिलों में अमानवीय अत्‍याचार

अभी तख्‍तापलट की स्‍थ‍िति में यहां पर 27 जिलों में हिन्‍दुओं को मुस्‍लिम भीड़ ने अपना निशाना बनाया है। कई तस्वीरें विचलित करने वाली हैं। हालांकि, कई जगहों पर भीड़ को दूर रखने की पूरी कोशिश करते हुए, कुछ लोग मंदिरों के बाहर पहरा देते देखे जा रहे हैं। उनके भी वीडियो सामने आए हैं लेकिन फिर बाद में वे वीडियो भी आ रहे हैं कि वहां जैसे ही भीड़ पहुंचती है, उसने सभी कुछ नष्‍ट कर दिया।

जो मंदिर को बचाने के लिए पहले खड़े दिखाई दे रहे थे, वे भी फिर गायब हो गए । फिलहाल कोई मानवाधिकार संगठन हिंदुओं की रक्षा के लिए यहां दिखाई नहीं दे रहा है । इसमें भी दुख इस बात का सबसे अधिक यह है कि भारत में भी वह वर्ग जो अल्‍पसंख्‍यक अत्‍याचार के नाम पर या अन्‍य विवाद पैदा कर बार-बार आंसू बहाता, सड़कों पर निकलता, अधिकारों की बात करता हुआ दिखाई देता है, यहां वह वर्ग भी चुप्‍पी साधकर बैठा हुआ है।

सेक्युलर जमात का दोगलापन

यूएन, यूनिसेफ तो छोड़‍िए भारत के इन कथित सेक्युलरों के मुंह बंद होने पर आज इनका दोगलापन साफ दिखाई दे रहा है। इस सेक्युलर जमात में से वह भीड़ भी आज होते हिन्‍दू अत्‍याचार पर चुप और गायब है जो भारत में छोटी-छोटी बातों को बड़ा बनाकर हिन्‍दुओं के विरोध में लगातार एक प्रोपेगेंडा तथा नैरेटिव खड़ा करती है । जिन्‍होंने हमास के समर्थन में, गाजा में हिंसा के नाम पर इजराइल के विरोध में, फिलिस्तीन के हक में और न जाने ऐसे कितने ही वीडियो बना डाले। 

सोशल मीडिया पर अभियान ले चला डाले तथा लम्‍बी-लम्‍बी पोस्‍ट उनके समर्थन में लिखी हैं; यहां ये सभी बांग्‍लादेश में हो रहे हिन्‍दू अत्‍याचार पर मौन दिखाई दे रहे हैं। अब इसे क्‍या कहें? मानवता की हत्‍या या संवेदनशीलता की मौत, जोकि हिंसा को हिंसा नहीं मानते, उसमें भी पंथ, मजहब, धर्म और मत देखते हैं और लाशों पर चुप रहते तथा हर वक्‍त अपने हित की राजनीति करते हैं। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

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