उम्मीदों के अनुरूप रहा बजट

 

  • बजट में भारत को विकसित देश का दर्जा दिलाने के लिए आवश्यक दीर्घ अवधि के लक्ष्य निर्धारित करने को प्राथमिकता दी गयी है 

एम गोविंद राव 

एबीएन सेंट्रल डेस्क। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का चिर प्रतीक्षित पहला बजट अनुमानों के अनुरूप ही रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लगातार अपना सातवां बजट पेश किया है। बजट में भारत को विकसित देश का दर्जा दिलाने के लिए आवश्यक दीर्घ अवधि के लक्ष्य निर्धारित करने को प्राथमिकता दी गयी है। 

बजट में गठबंधन सरकार के लिए जरूरी राजनीतिक कसरत का भी बखूबी ध्यान रखा गया है और सरकार उन दलों की मांगों के आगे नतमस्तक हुई है जिनका समर्थन उसके अस्तित्व के लिए अति आवश्यक है। पूर्ण बजट में राजस्व एवं व्यय के आंकड़े अंतरिम बजट के प्रावधान के करीब ही हैं। 
अंतरिम बजट में व्यक्त अनुमानों की तुलना में भारी भरकम लाभांश मिलने से केवल गैर-कर राजस्व के आंकड़ों में इजाफा किया गया है। राजकोषीय घाटे के अनुमान में मामूली सुधार किया गया है। 

वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में तीन जरूरी बातों का समावेश किया गया है। पहली बात, यह बजट काफी पारदर्शी रहा है और कोई बात या बजट से इतर देनदारी पर्दे के पीछे नहीं रखी गयी है। इसका फायदा यह है कि इससे वृहद आर्थिक हालात पर बजट प्रावधानों के असर को समझने में मदद मिलती है। दूसरी बात, कोविड महामारी के बाद राजकोषीय स्थिति सुदृढ़ बनाने के प्रयास तेज हो गये हैं। 

इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए वित्त वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.5 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है। वित्त मंत्री ने कहा है कि राजकोषीय ढांचा घाटा धीरे-धीरे घटाने के बाद भी सरकार इसे और कम करने के लिए काम करती रहेगा ताकि कर्ज बोझ घटाया जा सके। हालांकि, कितनी कमी संभव हो पाएगी और इसमें कितना समय लगेगा इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। 

तीसरी बात, सरकार राजकोषीय स्थिति सुदृढ़ करने के साथ ही पूंजीगत आवंटन भी बढ़ाती रही है ताकि अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज बनी रहे। जीडीपी के सापेक्ष केंद्र सरकार का पूंजीगत आवंटन निरंतर बढ़ रहा है और यह 2024-25 के बजट में बढ़कर 3.4 प्रतिशत हो गया है, जो 2020-21 में 1.7 प्रतिशत था। जैसा ऊपर चर्चा की गयी है, अंतरिम बजट की तुलना में राजकोषीय घाटे से जुड़े आंकड़े बेहतर नजर आ रहे हैं। राजकोषीय घाटा 5.1 प्रतिशत के बजाय 4.9 प्रतिशत तक सीमित करने का लक्ष्य रखा गया है और राजस्व घाटा अंतरिम बजट के 2 प्रतिशत की तुलना में 1.8 प्रतिशत रखा गया है। 

अस्थायी वास्तविक आंकड़ों की तुलना में राजकोषीय घाटा 5.6 प्रतिशत से 0.7 प्रतिशत कम यानी 4.9 प्रतिशत है। राजकोषीय घाटा भी 2.6 प्रतिशत की तुलना में 0.8 प्रतिशत कम यानी 1.8 प्रतिशत है। राजकोषीय घाटा 4.5 प्रतिशत तक समेटने का लक्ष्य प्राप्त करना और अगले साल इसे और कम करना मुश्किल भी नहीं है। 

अंतरिम बजट में व्यक्त अनुमान की तुलना में सरकार को लाभांश के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से 1.1 लाख करोड़ रुपये अधिकांश मिले हैं। इस रकम का इस्तेमाल मोटे तौर पर दो बड़ी सहयोगी दलों की मांग पूरी करने में हुआ है। केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से दूर रही है मगर दोनों महत्त्वपूर्ण सहयोगी भारी भरकम राशि झटकने में जरूर कामयाब रहे हैं। 

बिहार को बक्सर में गंगा पर दो लेन वाले पुल के लिए 26,000 करोड़ रुपये मिले हैं और 21,000 करोड़ रुपये पीरपैंती में 2,400 मेगावॉट बिजली संयंत्र स्थापित करने के लिए आवंटित किए गए हैं। इनके अलावा राज्य में कई सड़क संपर्क परियोजनाएं, मेडिकल कॉलेज, पर्यटन परियोजनाएं, खेल ढांचे तैयार करने के भी वादे किए गए हैं। 

बिहार प्रस्तावित पूर्वोदय (देश के पूर्वी भाग के सर्वांगीण विकास की योजना) का भी हिस्सा है। आंध्र प्रदेश भी केंद्र सरकार ठीक ठाक रकम अपने नाम कराने में सफल रही है। राज्य को प्रस्तावित नई राजधानी बसाने के लिए 15,000 करोड़ रुपये मिलेंगे। पोलावरम सिंचाई परियोजना पूरी करने के लिए राज्य को आवश्यक राशि दी जायेगी। 

बजट में विशाखापत्तनम-चेन्नई औद्योगिक गलियारे और हैदराबाद-बेंगलूरु औद्योगिक गलियारे पर जल, बिजली, रेल और सड़क जैसी आवश्यक सेवाओं के विकास के लिए रकम देने का वादा किया गया है। रायलसीमा, प्रकाशम और उत्तर तटवर्ती आंध्र के पिछड़े क्षेत्रों के आर्थिक विकास के लिए अतिरिक्त पूंजी निवेश की भी घोषणा की गई है। आंध्र प्रदेश वैसे तो देश के दक्षिणी हिस्से में है मगर इसे भी पूर्वोदय परियोजना में रखा गया है। इस घोषणाओं पर न केवल इस वित्त वर्ष बल्कि आने वाले वर्षों में भी भारी भरकम रकम खर्च की जायेगी। 

ऐसी असमान व्यवस्थाओं के साथ समस्या यह है कि इनमें कोई सधी नीति नहीं दिखाई दे रही है। ये निर्णय बदले राजनीतिक समीकरणों के कारण लिये जाते हैं और सत्ताधारी दल हमेशा दूसरे दलों को अपने साथ जोड़ने के बदले वित्तीय लाभ देने की पेशकश कर सकती है। यह एक स्वस्थ संघीय व्यवस्था के दीर्घ अवधि के हित के लिए शुभ नहीं है। 

संविधान में वर्णित वित्त आयोग के माध्यम से राज्यों को रकम देने का प्रावधान पहले से मौजूद है। वित्त आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसे राज्यों की आवश्यकताओं की समीक्षा करने का उत्तरदायित्व दिया जा सकता है। आने वाले समय में केंद्र सरकार में सहयोगी और कई मांगें रख सकते हैं। देखने वाली बात यह है कि केंद्र सरकार अपने सहयोगी दलों की मांगों से कैसे निपटती है। 

विकसित देश का ओहदा हासिल करने के लिए किसी देश को प्रतिस्पर्द्धी बनना पड़ता है। कोई भी देश शुल्कों को ऊंचे स्तरों पर रखकर सालाना 8 प्रतिशत औसत वृद्धि दर हासिल नहीं कर पाया है। बजट में प्रस्तावित दरों में बदलाव भारत के संरक्षणवादी रुख को नहीं बदल पा रहा है, इसलिए इस विषय पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। इसी तरह, पुरानी आयकर व्यवस्था के अनुसार आयकर भुगतान करने का विकल्प समाप्त करने और नई प्रणाली में दरें तर्कसंगत बनाने का समय आ गया है। 

कर सुधार करने का सबसे बढ़िया एवं व्यावहारिक तरीका यह हो सकता है कि एक व्यापक आधार और दरों में कम भिनन्ता वाली एक सरल प्रणाली तैयार की जाये। कराधान में तरजीह देकर कर नीति से कई लक्ष्यों के साधना केवल अनुपालन लागत बढ़ाता है और बाधाएं उत्पन्न करता है। व्यक्तिगत आय कर में अब छह नयी दरें हैं और राजस्व का नुकसान उठाए बिना इन्हें घटाकर तीन किया जा सकता है।

उम्मीद तो यही की जा रही है कि देर सबेर कर दरों में संशोधन किए जाएंगे। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में जीएसटी का दायरा बढ़ाने की बात की है और उम्मीद की जा सकती है कि जीएसटी परिषद की अगली बैठक में इस पर चर्चा होगी। (लेखक 14वें वित्त आयोग के सदस्य रह चुके हैं)

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