एबीएन डेस्क। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान पूरी दुनिया में बच्चों में संक्रमण आठ से दस फीसदी के बीच ही रहा है। इसमें से भी अधिकांश बच्चों में कोरोना के लक्षण नहीं पाए गए थे और ज्यादातर अपने घर पर ही रहकर स्वस्थ हो गए। बहुत कम बच्चों को ही कोरोना के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। अब जबकि कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि तीसरी लहर में भी बच्चों में होने वाला संक्रमण स्तर इसके आसपास ही रह सकता है। इसलिए बच्चों के माता-पिता को बहुत चिंता करने की नहीं, लेकिन कोरोना संबंधित व्यवहार के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। हालांकि, एहतियात के तौर पर निजी और सरकारी अस्पतालों में 20 फीसदी बेड्स विशेष तौर पर बच्चों के लिए बनाकर सुरक्षित रखे जा रहे हैं। देश के अस्पतालों में आॅक्सीजन की उपलब्धता की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है। सामान्य कोरोना बेड्स भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इससे आपात स्थिति से निबटने में मदद मिलेगी। लेकिन क्या कोरोना की तीसरी लहर ज्यादा भयावह रहेगी? आॅल इंडिया इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली के पूर्व निदेशक एमसी मिश्रा ने अमर उजाला को बताया कि तीसरी लहर के आने की संभावना और इसके असर को लेकर अभी तक कोई प्रामाणिक अध्ययन नहीं है। लेकिन कुछ आंकड़ों के आधार पर नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ डिजास्टर मैनेजमेंट और आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने तीसरी लहर के बारे में तीन स्तर की संभावनाएं व्यक्त की हैं। सबसे पहली संभावना यह है कि यदि हमारी सारी गतिविधियां सामान्य स्थिति की तरह शुरू हो जाती हैं, तो इससे लोगों का आपसी संपर्क बढ़ेगा। इस स्थिति में अक्तूबर महीने तक कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है। लेकिन वैक्सीनेशन और कोविड होने के कारण लोगों में पैदा हुई प्रति?ोधी क्षमता की वजह से इस दौरान कम लोग बीमार पड़ सकते हैं। इस दौरान लगभग तीन लाख लोग रोजाना संक्रमित हो सकते हैं, दूसरी लहर में चार लाख से ज्यादा लोग रोजाना संक्रमित हो रहे थे। दूसरी संभावना यह है कि अगर डेल्टा वैरियेंट की तरह कोरोना का कोई नया म्यूटेशन सामने आ जाता है और वह डेल्टा से भी ज्यादा संक्रामक पाया जाता है (चिली में मिला नया वैरियेंट ज्यादा संक्रामक बताया जा रहा है) और उसकी संक्रमण क्षमता दो से अधिक होती है तो इससे तीसरी लहर का पीक अक्तूबर की बजाय सितंबर महीने में ही आ सकता है। इस दौरान दूसरी लहर से ज्यादा लगभग पांच लाख लोग रोजाना संक्रमित हो सकते हैं। तीसरी संभावना है कि अगर इस दौरान लोगों में वैक्सीनेशन बढ़ा और लोगों ने मास्क लगाने, शारीरिक दूरी बनाए रखने के नियमों का पालन किया तो तीसरी लहर अक्तूबर माह के अंत तक आएगी, इसकी संक्रामकता भी दूसरी लहर की तुलना में काफी कम यानी लगभग आधी रह सकती है। अब तक लगभग 59 करोड़ लोगों को वैक्सीन की खुराकें दी जा चुकी हैं। अगस्त के अंत तक यह संख्या 65 करोड़ के लगभग हो सकती है। इसी प्रकार सितंबर तक 75-80 करोड़ हो जाएगा। इसके अलावा जिन्हें कोविड हो चुका है, उन्हें प्राकृतिक तौर पर सुरक्षा मिल गई है। इस तरह अगर कोरोना की तीसरी लहर आई तो भी इससे नुकसान कम होने की संभावना है। मार्च से जून के बीच किए गए एम्स के सीरो सर्वे में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में सकारात्मकता दर 55.7 फीसदी और वयस्कों में 63.5 फीसदी थी। लेकिन हर्ड इम्यूनिटी के लिए अब 90 फीसदी से अधिक सकारात्मकता दर को ही विशेषज्ञ सुरक्षित मान रहे हैं। चूंकि, कोरोना की दोनों डोज लेने के बाद भी लोगों को कोरोना हो रहा है, वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमण से स्वयं को सुरक्षित नहीं माना जा सकता। इस दौरान भी लोगों को पूरी सावधानी बरतने की आवश्यकता है। बच्चों के संपर्क में जो लोग भी आएं, उन्हें वैक्सीन की दोनो डो़ज लग चुकी हो। घर पर माता-पिता, घरेलू नौकर और स्कूल में टीचर-सपोर्टिंग स्टाफ पूरी तरह वैक्सीनेटेड होने चाहिए। स्कूल तभी खोलें जब आसपास के माहौल में कोरोना के मामले बहुत कम हो गए हैं। अगर दूर के इलाकों में कोरोना के मामले हैं तो सुरक्षा उपायों के साथ स्कूल खोले जा सकते हैं। लेकिन अगर संक्रमण बहुत ज्यादा है तो स्कूल खोलने से पूरी तरह दूरी रखनी चाहिए। जैसे ही बच्चों के लिए वैक्सीन उपलब्ध हो जाती है, बच्चों को प्राथमिकता के साथ वैक्सीन लगवाने की कोशिश की जानी चाहिए। यह बात ध्यान रखने की है कि जिन छोटे-छोटे देशों में वैक्सीनेशन लगभग पूरा हो चुका है, इसके बाद भी वहां दोबारा संक्रमण हो रहा है। यानी कोरोना की समस्या खत्म नहीं हुई है, और हाल-फिलहाल में इसके खत्म होने की कोई संभावना भी नहीं है। ऐसे में भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। जितनी जल्द संभव हो सके, बच्चों को वैक्सीन की डोज लगवाएं और हर संभव तरीके से मास्क लगाकर चलें और बच्चों को भी इसके लिए प्रेरित करें।
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