एबीएन डेस्क, रांची। गोतिया और दाल जितना गले उतना ही स्वादिष्ट होता है। ये घटिया कहावत ही मनुष्यों की फितरत बताने को काफी है। मैं तो आम निर्यात में भारत से पाकिस्तान के आगे रहने और फुटबॉल विश्वकप में पाकिस्तान के बने गेंदों की धमक से भी दुखित हो जाता हूं। नब्बे के दशक में हुए एक एशियाड में भारत ने मात्र एक गोल्ड मेडल जीता था, वह भी कबड्डी में और पाकिस्तान ने दो। इस तरह वह एशियाड के मेडल लिस्ट में हमसे आगे था और यह तब के अखबारों की सुर्खियां थीं। भारतीय अपने घटिया खेल से कम मायूस थे, वो पाकिस्तान के आगे रहने से ज्यादा दुखित थे। सिर्फ बांग्लादेश के विकास दर को भारत से अच्छा जानकर भारतीयों में ईर्ष्या, द्वेष का संचार हो जाता है। बांग्लादेश तेजी से तरक्की कर सकता है। उसके पास समुद्र तट है, बंदरगाह है। पटसन की खेती के अलावा कृषि, कपड़ा उद्योग, मछलीपालन से संवरने की उसके पास भरपूर संभावना है। वहां युवा कामगार हाथ हैं, सिर्फ इस्लाम हैं। बौद्ध, हिंदू, चकमा वगैरह थे, वो ठिकाने लगा दिये गये हैं। वहां कोई सेकुलर नहीं, टंगखिंचवा नहीं। सबसे बड़ी बात कि बांग्लादेशी इस्लाम अरब या पाकिस्तानी इस्लाम से थोड़ा अलग है, वहां खुलापन भी है और आतंकवाद पर सरकार सख्त रूख अपना लेती है। कुछ सालों में बांग्लादेश तरक्की करके एक विकसित देश की राह पर चल निकले, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नेपाल, श्रीलंका भी अगर किसी अच्छे नेतृत्व में अपनी छोटी आबादी और उपलब्ध साधनों से तरक्की करने लगें तो वो महज पांच साल में हमें पीछे छोड़ देंगे। क्योंकि यहां भी भारत की तरह संकट पैदा करने वाले कम हैं। कल को पाकिस्तान में कोई नेता उभर आये जो उसे इस्लाम और आतंकवाद से आगे देखने लगे, कश्मीर से परे जाकर भारत से दुश्मनी त्याग देश पर ध्यान देने लगे तो वह भी हमसे आगे निकल जायेगा। (हालांकि इसकी उम्मीद अभी न के बराबर है) हकीकत में तो वह कुछ दशक पहले हमसे बेहतर स्थिति में था भी। अमेरिका, यूरोप भारत विरोधी थे उनके पैसे से वहां के हालात हमसे बेहतर थे, हम रूस के पालतू बने लुंज-पुंज से चल रहे थे। अब अगर बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान तेजी से विकास कर हमसे आगे निकल जायें तो सबसे ज्यादा तकलीफ, पेट दर्द किसे होगी? बेशक हम भारतीयों को होगी। हम इन मुल्कों को खुद से आगे जाते नहीं देखना चाहेंगे, पर वो किसी सफल नेतृत्व में ऐसा करते हैं तो हम सिर्फ तमाशाई बने देख सकते हैं और खुन्नस में उनकी छोटी कमियों को भी खूब बढ़ा चढ़ा कर यहां छापेंगे। ये फितरत यूरोपियन अमेरिकन में कूट कूट कर भरी हुयी है। भारत की उपलब्धि, किसी वैश्विक आविष्कार या सफल नेतृत्व से मामूली सुधार अंकल सैम, अंग्रेज या खुद को सर्वोपरि मानते आये यूरोपीय देश हमारा चिर शत्रु चीन कैसे जज्ब करेगा? वो अपने अखबारों में हमारे खिलाफ लिखेंगे, हमारी उपलब्धियों को नकार कर यहां की कमियों को बढ़ा चढ़ा कर बतायेंगे, नेतृत्व को अक्षम बतायेंगे, हमारे लोकतंत्र को अर्द्धतानाशाह कहेंगे, हमारी वैक्सीन उनके लिये खतरा बन जाती है। अमेरिका ने तो रूस को धमका कर दशकों पहले ही हमें क्रायोजेनिक इंजन देने से मना कर दिया था, कुछ साल पहले मंगल मिशन से वह हतप्रभ था। तो मत ज्यादा तूल दें, पश्चिमी देशों और अमेरिका के मीडिया को। वो हमारे खिलाफ सदैव नकारात्मक रहे हैं, इष्यार्लु रहे हैं। यहां जो गड़बड़, असफल है सो यहां भी तो छप दिख रहा है। जनता भी तो देख सुन रही है वह भी अब सब कुछ जानती है।
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