हजारीबाग। कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने राज्य व जिले में कई लोगों की जान ले ली है। कोरोना संक्रमण के कारण स्थितियां लगातार गंभीर होती जा रही हैं। संक्रमण के इस हालात में डाक्टर, नर्स, प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मीडियाकर्मी भी लगातार काम कर रहे हैं। कई मीडियाकर्मियों ने कोरोना महामारी की इस दूसरी लहर में अपनी जान गवां दी है। जबकि कई पत्रकार हास्पिटल में आक्सीजन और वेंटिलेटर्स के सहारे जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। वहीं प्रखंडों में कई पत्रकार होम आइसोलेशन में इलाज करा रहे हैं। फ्रंटलाइन पर काम करने वाले 60 से ज्यादा पत्रकार कोरोना की चपेट में हैं। राज्य के अलग-अलग हिस्से में 25 से ज्यादा पत्रकारों की मौत हो चुकी है। कई पत्रकारों के परिवारों की माली हालत ठीक नहीं है। ऊपर से घर के मुखिया के निधन के बाद इन पत्रकारों के परिजन व बच्चों की देखरेख कैसे होगी इसपर राज्य सरकार के साथ-साथ राज्य व जिले के प्रेस क्लबों को संवेदनशील होने की आवश्यकता है। पत्रकारों को भी होती है सहारे की जरूरत : कोरोना वारियर्स का दर्जा मिलने से पत्रकार व उनके परिवार को एक सहारा मिल जाता। किसी पत्रकार के मौत के बाद उनके परिजन को सरकार द्वारा आर्थिक मदद मिल जाती। लेकिन झारखंड में अभी तक पत्रकारों को कोरोना वारियर्स का दर्जा नहीं मिल पाया है। एक डाटा के अनुसार पूरे देश में झारखंड ऐसा राज्य है जहां कोरोना से मरने वाले पत्रकारों की संख्या सबसे ज्यादा है। उसके बावजूद भी कोरोना वारियर्स का दर्जा नहीं दिया जाना बहूत खलता है। जबकि कई राज्यों ने पत्रकारों को कोरोना वारियर्स का दर्जा दे दिया है। जिसमें मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब, हरियाणा सहित कई राज्य हैं। देखा जाय तो अगर दूसरी लहर आने के बाद राज्य के पत्रकारों को फ्रंटलाइन वॉरियर्स की मान्यता दे गयी होती और प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण हो गया होता तो शायद इन पत्रकारों को कोरोना महामारी की चपेट में आने से रोका जा सकता था। अभी भी वक्त है सरकार ठोस निर्णय ले और पत्रकारों को कोरोना वारियर्स का दर्जा दे।
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