एबीएन हेल्थ डेस्क। योग से युवा जागरुक और स्वस्थ युवा अभियान के तहत देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार उत्तराखंड में योग सेमीनार आयोजित किया गया जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों के 200 से भी अधिक विद्यार्थियों ने भाग लिया, यह सेमिनार विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पंड्या के मार्गदर्शन में आयोजित हुआ।
जिसमें मुख्य वक्ता (रिसोर्स पर्सन) की भूमिका के लिए गुना के योगाचार्य महेश पाल को चुना गया विश्वविद्यालय के योग विभाग की एचओडी डॉ अल्का मिश्रा और प्रोफेसर संतोषी साहू द्वारा योगाचार्य महेश पाल का स्वागत किया गया। उसके पश्चात गायत्री महामंत्र वा योग मंत्रों द्वारा योग सेमिनार प्रारंभ हुआ।
जिसमें योगाचार्य महेश पाल द्वारा योग थेरेपी फॉर लाइफस्टाइल डिसऑर्डर विषय पर महत्वपूर्ण उद्बोधन देते हुए कहा कि आज के आधुनिक युग में मनुष्य की जीवनशैली जितनी सुविधाजनक हुई है, उतनी ही असंतुलित भी। अत्यधिक मानसिक तनाव, असंतुलित आहार, नींद की कमी और शारीरिक निष्क्रियता ने मिलकर कई लाइफस्टाइल डिसऑर्डर्स (Lifestyle Disorders) को जन्म दिया है।
जैसे हाइपरटेंशन, डायबिटीज़, मोटापा, थायरॉइड, डिप्रेशन और हृदय रोग आदि। इन रोगों के उपचार में जहाँ दवाएँ केवल लक्षणों को नियंत्रित करती हैं, वहीं योग थेरेपी जड़ से संतुलन स्थापित करने की दिशा में कार्य करती है। योग थेरेपी (Yoga Therapy) का आशय केवल आसन या प्राणायाम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक समग्र उपचार पद्धति है जिसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर संतुलन लाने का प्रयास किया जाता है।
योग थेरेपी का उद्देश्य शरीर की प्राकृतिक चिकित्सा क्षमता को जाग्रत करना है।योग थेरेपी केवल रोग निवारण का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। यह हमें सिखाती है कि कैसे मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित किया जाए। जब मन शांत होता है और शरीर स्वस्थ, तभी सच्चा स्वास्थ्य संभव होता है।
उन्होंने विद्यार्थियों को आगे बताया कि लाइफस्टाइल डिसऑर्डर्स के कई कारण है जिसमें असंतुलित दिनचर्या, फास्ट फूड और जंक फूड का अधिक सेवन, देर रात तक जागना, नींद की कमी, तनावपूर्ण कार्य वातावरण, मोबाइल और स्क्रीन का अत्यधिक प्रयोग शारीरिक गतिविधि का अभाव, योग थेरेपी से कई लाभ प्राप्त होते हैं।
जिसमें आसनों का अभ्यास पैंक्रियास की क्रियाशीलता में सुधार कर ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है। नाड़ीशोधन प्राणायाम और ध्यान से रक्तचाप सामान्य रहता है।सर्वांगासन, मत्स्यासन, और उष्ट्रासन थायरॉइड ग्रंथि को संतुलित करते हैं। सूर्य नमस्कार और कपालभाति से चर्बी घटती है।
डिप्रेशन और तनाव से बचाव मै ध्यान काफी उपयोगी है और भ्रामरी प्राणायाम से मानसिक संतुलन बनता है। बही एचओडी डॉ अल्का मिश्रा ने कहा कि योग थेरेपी के साथ आहार चिकित्सा भी आवश्यक है जिसमें सात्विक आहार पर बल दिया जाता है जिसमें फल, सब्जियाँ, अंकुरित अनाज, दूध, दही, और स्वच्छ जल का सेवन प्रमुख है।
वहीं प्रोफेसर संतोषी साहू ने बताया कि आज जब लाइफस्टाइल डिसऑर्डर्स विश्वभर में तेजी से बढ़ रहे हैं, ऐसे में योग थेरेपी एक आशा की किरण बनकर उभरी है। यह न केवल रोगों को मिटाती है, बल्कि व्यक्ति को संपूर्ण स्वास्थ्य, संतुलन और सुख की दिशा में ले जाती है।
आवश्यक है कि हम योग को केवल अभ्यास न मानें, बल्कि अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएं, क्योंकि योग ही जीवन है, और स्वस्थ जीवन ही सच्चा योग है। इस अवसर पर मुकेश कुमार, प्रवीण कुमार सहित विभागीय सदस्य मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
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