एबीएन सेन्ट्रल डेस्क। झारखण्ड इस मन्तव्य के साथ जीएसटी दरों में प्रस्तावित बदलाव का समर्थन करेगा, जिसमें राज्यों को होनेवाली राजस्व क्षति की भरपाई जीएसटी कंपनसेशन से किया जाये। एक अनुमानित आकलन के अनुसार झारखंड को लगभग 2000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष राजस्व की प्राप्ति नहीं हो सकेगी।
इसी परिप्रेक्ष्य पर आज दिल्ली में आठ राज्यों के वित्त मंत्रियों की संयुक्त बैठक हुई। प्रस्तावित बदलाव पर विचार विमर्श किया गया। तय किया गया कि इस मुद्दे पर एक संयुक्त ज्ञापन भी भारत सरकार को समर्पित किया जायेगा। झारखंड की ओर से इस बैठक में वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर शामिल हुए। हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, पंजाब, तमिलनाडू, तेलंगाना एवं पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री / वाणिज्य कर मंत्री / राजस्व मंत्री की बैठक आहूत की गयी।
राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि वस्तु और सेवा कर (जी.एस.टी) केंद्र और राज्यों के बीच एक साझा राजकोषीय ढांचा है। जो सर्वसम्मति और संघीय व्यवस्था पर आधारित है। दरों का सरलीकरण और युक्तिकरण वांछनीय उद्देश्य हैं। लेकिन इन्हें राज्यों की राजकोषीय स्थिरता की कीमत पर नहीं अपनाया जाना चाहिए। यदि वर्तमान प्रस्ताव को बिना किसी कंपनसेशन के लागू किया जाता है, तो इससे राज्यों के राजस्व को भारी नुकसान होगा, राजकोषीय असंतुलन बढ़ेगा और इसलिए यह वर्तमान स्वरूप में अस्वीकार्य है।
इसलिए, राज्यों की यह सुविचारित अनुशंसा है कि दरों को युक्तिसंगत बनाने के लिए एक मजबूत राजस्व संरक्षण ढांचा, Sin और Luxury की वस्तुओं पर एक पूरक शुल्क, और कम से कम पाँच वर्षों के लिए एक गारंटीकृत Compensation की व्यवस्था होनी चाहिए। केवल ऐसा संतुलित दृष्टिकोण ही राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता की रक्षा करेगा और साथ ही कोऑपरेटिव फेडरलिज्म की सच्ची भावना के साथ जीएसटी सुधार के उद्देश्यों को आगे बढ़ायेगा।
यहां मालूम हो कि तीन सितंबर से चार सितंबर तक दिल्ली में जीएसटी दरों के बदलाव पर जीएसटी परिषद की बैठक होनी है। इस बैठक में केंद्र सरकार का प्रस्ताव है कि जीएसटी की दरों के चार स्लैब यथा- 5%, 12%, 18%, एवं 28% को युक्ति संगत बनाते हुए 12% एवं 28% के स्लैब को समाप्त किया जाये।
जिन मालों एवं सेवाओं के कर की दरों को घटाने का प्रस्ताव है उसके फलस्वरुप आशा है कि सामग्रियों के मूल्य घटने के कारण जन मानस पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा साथ ही देश की अर्थव्यस्था सुदृढ़ करने में अहम भूमिका निभाएगा। परंतु वर्तमान में जीएसटी परिषद द्वारा जो रेट रेसनलाइजेशन का प्रस्ताव लाया गया है उस निर्णय से राज्यों के उपर पड़ने वाले वित्तीय भार का आकलन नहीं किया गया है।
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