एबीएन सेंट्रल डेस्क। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में राजशाही की बहाली और हिंदू राष्ट्र की पुन: स्थापना की मांग को लेकर आंदोलन तेज हो गया है। इस विरोध प्रदर्शन की बढ़ती तीव्रता को देखते हुए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए देशभर में सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इस आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार करने की योजना बनाई जा रही है। आंदोलन में शामिल कई नेता अब गिरफ्तारी से बचने के लिए अंडरग्राउंड हो गए हैं।
सरकार ने राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के प्रमुख नेताओं रवींद्र मिश्र और धवल शमशेर राणा सहित 61 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इन पर देशद्रोह, सार्वजनिक अशांति फैलाने और संगठित अपराध जैसे गंभीर आरोप लगाये गये हैं।
राजधानी काठमांडू के रिंग रोड क्षेत्र को आगामी दो महीनों के लिए प्रदर्शन मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया गया है, जिससे वहां किसी प्रकार का धरना या रैली न हो सके। प्रधानमंत्री ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल के साथ नेपाली कांग्रेस और माओवादी केंद्र ने मिलकर इस आंदोलन के विरोध में साझा मोर्चा बनाया है। तीनों दल किसी भी सूरत में नेपाल को पुन: हिंदू राष्ट्र या राजशाही प्रणाली में ले जाने के पक्ष में नहीं हैं।
इस आंदोलन में कई हिंदूवादी संगठन और राजशाही समर्थक लोग सक्रिय रूप से शामिल हैं। ये लोग नेपाल को फिर से एक हिंदू राष्ट्र घोषित करने और राजशाही की वापसी की मांग कर रहे हैं।
नेपाल में 2006 में राजशाही का अंत हुआ और 2008 में औपचारिक रूप से इसे एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया। इसके बाद 2015 में नया संविधान लागू किया गया, जिसमें सभी धर्मों को समान अधिकार प्रदान किये गये।
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