एबीएन हेल्थ डेस्क। बदली जीवनशैली के चलते देश-दुनिया में बड़ी संख्या में लोग हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त हैं। हाई बीपी कई दूसरी गंभीर बीमारियों की वजह बनता है। इसका नियमित चेकअप जरूरी है। वहीं यदि लक्षण सामने आयें तो डॉक्टरी सलाह से उपचार कराना चाहिये। इस रोग को लेकर नई दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल में जनरल फिजिशियन डॉ मोहसिन वली से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
हाइपरटेंशन हमारी सेहत के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है। उम्र बढ़ने के साथ इसका खतरा भी बढ़ता है, लेकिन आजकल अनियमित जीवनशैली के चलते कम उम्र के वयस्कों में भी इसका खतरा बढ़ गया है। हाइपरटेंशन पीड़ित अधिकतर लोगों को जागरूकता न होने पर पता ही नहीं चलता, जब तक कोई समस्या न खड़ी हो जाए। दुनिया में एक बहुत बड़ी तादाद में लोग हाइपरटेंशन से ग्रस्त हैं जिनमें से दो-तिहाई लोग विकासशील देशों में हैं।
भारत की बात करें तो हर तीन में से एक व्यक्ति को हाइपरटेंशन की समस्या है। गांवों में 10 प्रतिशत व शहरों में 25 प्रतिशत लोग इससे ग्रस्त हैं। मरीजों में से दो-तिहाई की उम्र 60 साल से कम होती है। वहीं 85 प्रतिशत लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें हाइपरटेंशन के विकार के साथ कोई दूसरी बीमारी भी होती है।
हृदय हमारे शरीर में एक पंप के रूप में काम करता है और उससे ब्लड सर्कुलेशन पूरे शरीर में होता है। ब्लड सर्कुलेशन के समय होने वाले ब्लड के दवाब को ब्लड प्रेशर कहते हैं। जब हार्ट ब्लड को पंप करता है तब प्रेशर ज्यादा होता है जिसे सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहा जाता है। वहीं दूसरी बीट से पहले हार्ट रिलेक्स कर रहा होता है तब ब्लड प्रेशर कम होता है जिसे डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं।
विभिन्न व्यक्तियों में ब्लड प्रेशर में अंतर हो सकता है। व्यक्ति को ब्लड प्रेशर के नंबर जानना जरूरी है यानी सिस्टोलिक (ऊपर वाला) और डायस्टोलिक (नीचे वाला) का पता होना चाहिए। ब्लड प्रेशर दैनिक प्रक्रियाओं से प्रभावित होता है। अगर व्यक्ति का ब्लड प्रेशर 140/90 या उससे अधिक हो तो इसे हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर की अवस्था कहते हैं।
कई बार हार्ट आर्टरीज पर दबाव पड़ने से उनके अंदर की लाइनिंग ब्लॉक हो जाती है। ब्लड सकुर्लेशन बाधित होने पर ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। जबकि स्वस्थ रहने के लिए ब्लड प्रेशर के दोनों पॉइंट्स को कंट्रोल करना जरूरी है। खासकर 55-60 साल से ज्यादा उम्र के बाद सिस्टोलिक हाइपरटेंशन का नियमित चैकअप कराना जरूरी है। इससे कार्डियोवेस्कुलर डिजीज होने का खतरा रहता है।
मरीजों की बड़ी संख्या है जिन्हें हाइपरटेंशन के कारणों का पता नहीं लगता। जिनमें कारणों का पता चल जाता है, उनका समुचित इलाज किया जा सकता है। छोटे बच्चों और युवाओं में हाइपरटेंशन के कई सेकंडरी कारण रहते हैं।
जैसे- अनियमित और आरामपरस्त जीवनशैली, अनहेल्दी खानपान, खाने में नमक की अधिकता, पढ़ाई और कैरियर को लेकर तनाव, मोटापा, किडनी की बीमारी, आर्टरीज में ब्लॉकेज, हार्मोन संबंधी तकलीफ, गर्भावस्था, थायरॉयड, फैमिली हिस्ट्री, स्मोकिंग, एल्कोहल और नमकीन स्नैक्स का अधिक सेवन।
हाइपरटेंशन को साइलेंट किलर भी कहा जाता है क्योंकि इससे ग्रस्त 90 प्रतिशत रोगियों में इसके कोई लक्षण नहीं होते। बढ़ने पर सिरदर्द, धड़कन तेज होना, चलते समय सांस फूलना, चक्कर आना व थकावट आदि लक्षण होते हैं।
सामान्य व्यक्ति में सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर 140 और डायसिस्टोलिक 90 से नीचे होना चाहिए। जबकि डायबिटीज के मरीजों में रिस्क बहुत बढ़ जाता है इसलिए उनका ब्लड प्रेशर 130/80 से कम होना चाहिए।
हाई ब्लड प्रेशर को पहचानकर सही इलाज न हो तो इसका बढ़ा हुआ स्तर हार्ट, ब्रेन, लिवर, आंखों आदि को क्षति पहुंचाता है। मरीज को कई समस्याएं हो सकती हैं जैसे- हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, ब्रेन हैमरेज, ब्रेन स्ट्रोक, पैरालाइसिस होने का खतरा, रेटिनल हैमरेज, पेरिफरल मस्कुलर डिजीज, किडनी फेल्योर आदि।
हाइपरटेंशन के मरीज लक्षण या दिक्कत महसूस न होने पर आमतौर पर उपचार कराने से कतराते हैं। लेकिन इससे उनका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और दूसरी समस्याएं होने की संभावना बढ़ जाती है।
जबकि हाई ब्लड प्रेशर की जांच शुरूआती स्टेज पर होने और समुचित ध्यान रखने पर इसे ठीक किया जा सकता है। डॉक्टर मरीज को जीवनशैली में बदलाव लाने की सलाह देते हैं। अगर 2 महीने तक मरीज का हाई ब्लड प्रेशर कंट्रोल में नहीं आता, तो उसे मेडिसिन दी जाती हैं।
जरूरी है नियमित रूप से हाई ब्लड प्रेशर की जांच करवायें और जानें कि आपका ब्लड प्रेशर स्टेटस क्या है। अगर आप प्री- हाइपरटेंशन मरीज की कैटेगरी में आते हैं तो इससे बचाव के समुचित कदम उठाने जरूरी हैं। समुचित जांच, सही सलाह और जीवनशैली में बदलाव से सिस्टोलिक हाइपरटेंशन को नियंत्रित किया जा सकता है। खासकर युवाओं को अपना ब्लड प्रेशर जरूर चैक कराना चाहिए। अगर ब्लड प्रेशर ज्यादा हो तो डॉक्टर को कंसल्ट करें। घर के बने संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन करें जिसमें ज्यादा से ज्यादा मौसमी फल-सब्जियां हों।
केला, मौसमी, अनार, नारियल पानी जैसे पोटेशियम रिच पदार्थों का सेवन अधिक करें। फास्ट फूड, जंक फूड व वसायुक्त आहार से परहेज करें। ज्यादा नमक वाली चीजें कम खाएं। चाय-कॉफी का सेवन सीमित मात्रा में करें। घर पर ब्लडप्रेशर मॉनीटर से रेगुलर चैक करें। अगर आपका ब्लड प्रेशर काफी समय से 140/90 मिमी एचजी से अधिक हो तो डॉक्टर के परामर्श से नियमित दवाई लें। वॉक, योगा, मेडिटेशन या एक्सरसाइज करें।
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