एबीएन हेल्थ डेस्क। वर्तमान समय में युवाओं की बदलती दैनिक दिनचर्या व अव्यवस्थित भोजनचर्या के कारण युवाओं में घटता स्पर्म काउंट नपुंसकता को जन्म दे रहा है जिसके कारण नव वैवाहिक जोड़े माता पिता बनने में असमर्थ होते जा रहे हैं योगाचार्य महेश पाल बताते है कि यह समस्या 40 से अधिक के उम्र के लोगों में देखने को मिलती है। वर्तमान समय में यह समस्या बहुत तेजी से युवा वर्ग में देखने में आ रही है।
एक शोध में यह आशंका व्यक्त की गयी है कि 2025 तक सर्वाधिक नपुंसकता की संख्या बाला देश भारत बन सकता है इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी), जिसे नपुंसकता के रूप में भी जाना जाता है, इरेक्शन पाने और उसे बनाए रखने में असमर्थता है। इरेक्टाइल डिसफंक्शन एक बहुत ही आम स्थिति है, खासकर यह वृद्ध पुरुषों में पायी जाती है।
यह अनुमान लगाया गया है कि 40 से 70 वर्ष की आयु के बीच के आधे पुरुषों में यह किसी न किसी हद तक होती है, लेकिन वर्तमान समय में यह समस्या युवा वर्ग में भी देखने में आ रही है, कम शुक्राणु संख्या को आलिगोस्पर्मिया भी कहा जाता है। शुक्राणुओं की पूरी तरह कमी को एजोस्पर्मिया कहा जाता है। यदि आपके वीर्य में प्रति मिलीलीटर 15 मिलियन से कम शुक्राणु हैं, तो आपके शुक्राणुओं की संख्या सामान्य से कम मानी जाती है।
कम शुक्राणुओं की संख्या का मुख्य लक्षण गर्भधारण न कर पाना, अंडकोष क्षेत्र में दर्द, सूजन या गांठ, चेहरे या शरीर पर कम बाल या गुणसूत्र या हार्मोन संबंधी स्थिति, किसी पुरुष में शुक्राणु कम होने के कई कारण हो सकते हैं। हार्मोन में अनुवाँशिक असंतुलन टेस्टोस्टेरोन की कमी, अधिक धूम्रपान व अधिक शराब का सेवन, नशा, अव्यवस्थित जीवन शैली, मानसिक तनाव व चिंता, मोटापा, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, फास्ट फूड जंक फूड, मानव शरीर में अंतर स्त्रावी तंत्र प्रजनन अंगों को विनियमित करने और भावनात्मक संतुलन बनाये रखने के लिए हार्मोन की श्रृंखला जारी करने का काम करता है।
जब हमारी जीवन शैली व आहार शैली असंतुलित होती है व इन सभी कारणों से शरीर तंत्रिकाओं के माध्यम से प्रजनन प्रणाली को नियंत्रित करने की क्षमता को देता है जिससे हार्मोन असंतुलित हो जाते है और स्पर्म काउंट कम होने लगता है प्रजनन अंग काम करना बंद कर देते हैं और नपुंसकता धीरे-धीरे जन्म ले लेती है। नपुंसकता से बचाव के लिए अपनी जीवन शैली व आहार शैली को व्यवस्थित करते हुए योग को अपने दिनचर्या में स्थान देना होगा।
यह योग अभ्यास प्रजनन तंत्र को स्वस्थ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं जिसमें पश्चिमोत्तानासन, उत्तांन आसान, जानुसिरासन, कंदरासन, भद्रासन, तितली आसन, धनुरासन, सूर्य नमस्कार, नाड़ीशोधन प्राणायाम, अनुलोम विलोम, कपालभाती, भ्रामरी चंद्रभेदी प्राणायाम, वज्रासन- यह आसन श्रोणि क्षेत्र में रक्त परिसंचरण को बेहतर बनाने में मदद करता है, तथा यौन क्रिया से जुड़ी मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को मजबूत बनाता है सर्वांगासन- यह आसन जीवन शक्ति को बढ़ाता है और स्तंभन दोष को दूर कर सकता है।
भुजंगासन- प्रजनन अंगों को उत्तेजित करने की अपनी क्षमता के लिए जाना जाने जाता हैं, पश्चिमोत्तानासन- आसन पैल्विक मांसपेशियों को खींचता है और विश्राम देता है, तनाव और चिंता को कम करता है, धनुरासन- पेट और पैल्विक मांसपेशियों को मजबूत करके, धनुरासन प्रजनन प्रणाली को सशक्त बनाता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रास :- गुर्दे, यकृत और पेट के अंगों को उत्तेजित करता है तथा प्रजनन प्रणाली को पुनर्जीवित करने में मदद करता है जानु शीर्षासन :- श्रोणि क्षेत्र में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है, जिससे स्तंभन स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है। सेतुबंधासन-जननांगों में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है, तथा तनाव और थकान को कम करता है। व्यवस्थित दैनिक दिनचर्या का आहार से हम विभिन्न प्रकार के रोगों के साथ-साथ आने वाले गंभीर रोगों से बच सकते हैं अपने जीवन को स्वस्थ पूर्वक बना सकते हैं इसलिए हमें हमारे जीवन में योग को स्थान देने की आवश्यकता है।
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