एबीएन सोशल डेस्क। विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं राष्ट्रीय सनातन एकता मंच के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा कि आश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत की बरसात करता है। इसलिए इस रात में खीर को खुले आसमान में रखा जाता है और सुबह उसे प्रसाद मानकर खाया जाता है।
दिलचस्प बात है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे पास होता है। इस रात को कोजागिरी भी कहते हैं, खुले आसमान तले रात भर जागकर लक्ष्मी जी के अवतरण के रात देवताओं ने मां लक्ष्मी का आगमन के समय शंख बजा कर श्री शुक्त के मंत्रो से मा लक्ष्मी का स्वागत किया। श्री सूक्त का पाठ करने से मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम उपाय है।
अगर आप गरीबी आर्थिक समस्या से निपटने के लिए नित्य श्रीयंत्र जो प्राण प्रतिष्ठा हो, लक्ष्मी का वास श्री यंत्र में है। नित्य प्रति श्री यंत्र की पूजा कर श्री सुक्त का पाठ शुद्ध रूप से श्रद्धा भक्ति के साथ करने से आर्थिक लाभ जरूर होगा। लोग अक्सर पूर्णिमा और स्नान-दान की तारीख को लेकर असमंजस में रहते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं शरद पूर्णिमा और स्नान दान के लिए मुहूर्त क्या रहने वाला है।
पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात 08 बजकर 40 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं, इस तिथि का समापन 17 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 55 मिनट पर होगा। ऐसे में शरद पूर्णिमा बुधवार, 16 अक्टूबर को मनाई जायेगी। इस दिन पूर्णिमा का व्रत भी रखा जायेगा। आश्विन पूर्णिमा का समापन 17 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 55 मिनट पर होगा। इसलिए स्नान-दान 17 अक्टूबर को किया जायेगा।
शरद पूर्णिमा के रात मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ और देवताओं ने मां लक्ष्मी का स्वागत ऋग्वेद के श्री सूक्त स्तोत्र से स्वागत किया, श्री सूक्त स्त्रोत्र का पाठ करने से लक्ष्मी बहुत जल्दी प्रसन्न होती हैं और धन धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं। अगर शुद्ध उच्चारण से श्री सूक्त स्त्रोत्र का पाठ करने से जीवन में धन का लाभ होता है।शास्त्रों के मुताबिक इस दिन अगर अनुष्ठान किया जाए तो ये सफल होता है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। वहीं शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। माना जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी अपनी सवारी उल्लू पर बैठकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी का भ्रमण करने आती हैं। इसलिए आसमान पर चंद्रमा भी सोलह कलाओं से चमकता है। शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी रात में जो भक्त भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं।
ऐसा विश्वास है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में अमृत भर जाता है और ये किरणें हमारे लिए बहुत लाभदायक होती हैं। इन दिन सुबह के समय घर में माँ लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।
रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए। पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें। खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर जाली से ढक कर दूसरे दिन उसका भोजन करें। सबको उसका प्रसाद दें।
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