एबीएन हेल्थ डेस्क। वर्तमान समय के भाग दौड़ भरी जीवन में हम अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं जिसके कारण हम विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाते हैं, उन्हीं में से एक गंभीर बीमारी है किडनी रोग। योगाचार्य महेश पाल विस्तार पूर्वक बताते हैं कि वर्तमान समय में भारत ही नहीं पूरे विश्व में बच्चे युवा वर्ग महिलाएं वयस्क वरिष्ठजन किडनी रोग से ग्रस्त होते जा रहे हैं, एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) से पीड़ित है, बही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये संख्याएं चौंका देने वाली हैं।
अनुमान है कि दुनिया भर में 2 मिलियन से भी अधिक लोग किडनी फेलियर से पीड़ित हैं, और इस बीमारी से पीड़ित रोगियों की संख्या में हर साल 5-7% की दर से वृद्धि होती जा रही है। किडनी रोग होने के कई कारण देखे गए हैं जो इस प्रकार है, किडनी में पर्याप्त रक्त प्रवाह न होना,किडनी को प्रत्यक्ष क्षति,किडनी में मूत्र का जमा हो जाना, प्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि, गुर्दे में पथरी, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, सिगरेट व धूम्रपान का अत्यधिक सेवन, गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होना, जैसे एक्लेम्पसिया व प्रीक्लेम्पसिया, अत्यधिक शराब का सेवन एवं बिन्ज ड्रिंकिंग (जिसे महिलाओं के लिए 2 घंटे में लगभग चार ड्रिंक्स और पुरुषों के लिए 2 घंटे में पांच ड्रिंक्स के रूप में परिभाषित किया जाता है) बिन्ज ड्रिंकिंग एक जोखिम तीव्र किडनी फेलियर है जो किडनी के कार्य में अचानक गिरावट लाता है और किडनी फेलियर का कारण बनता है।
किडनी की बीमारियाँ तब होती हैं जब आपकी किडनी क्षतिग्रस्त हो जाती है और आपके रक्त को फिल्टर नहीं कर पाती। क्रोनिक किडनी रोग में, क्षति कई वर्षों के दौरान होती है ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस,इस प्रकार की किडनी की बीमारी में ग्लोमेरुली को नुकसान पहुंचता है, जो आपके गुर्दे के अंदर फिल्टरिंग इकाइयां हैं। आपके गुर्दे के कई काम हैं, लेकिन उनका मुख्य काम आपके रक्त को साफ करना, विषाक्त पदार्थों, अपशिष्ट और अतिरिक्त पानी को मूत्र (पेशाब) के रूप में बाहर निकालना है।
आपके गुर्दे आपके शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स (जैसे नमक और पोटेशियम) और खनिजों की मात्रा को भी संतुलित करते हैं, रक्तचाप को नियंत्रित करने वाले हार्मोन बनाते हैं, लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करते हैं और आपकी हड्डियों को मजबूत रखते हैं। यदि आपके गुर्दे क्षतिग्रस्त हैं और ठीक से काम नहीं करते हैं, तो अपशिष्ट आपके रक्त में जमा हो जाते हैं और किडनी को क्षति पहुँचाते है और किडनी के रोगों से हम ग्रस्त होने लगते हैं, जब हम किडनी रोग से ग्रस्त होते हैं तो हमारे सामने कई लक्षण नजर आते हैं, थकान, कमजोरी, कम ऊर्जा स्तर,भूख में कमी हाथ, पैर और टखनों में सूजन सांस लेने में कठिनाई झागदार या बुलबुलादार पेशाब।
मोटी आंखें, सूखी और खुजली वाली त्वचा, ध्यान केन्द्रित करने में परेशानी, नींद न आना, सुन्न होना। मतली या उलटी,मांसपेशियों में ऐंठन, उच्च रक्तचाप, त्वचा का काला पड़ना, यह सारे लक्षण हमारी बॉडी में नजर आते हैं तो हमें तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए उसके पश्चात अन्य उपचार करने चाहिए, योग रक्तचाप को कम करने, गुर्दे की कार्यप्रणाली में सुधार करने, डायलिसिस की आवश्यकता को कम करने और सीकेडी के रोगियों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए पारंपरिक उपचार विधियों के सहायक उपचार के रूप में सुरक्षित और प्रभावी उपाय है, योग अभ्यास से हमारे दैनिक दिनचर्या और हमारी आहारचार्य में बदलाव आने से किडनी के रोगों के साथ साथ अन्य रोगों से भी बच सकते हैं।
किडनी रोग से बचाव के लिए हमें यह योग अभ्यास हमारी दैनिक दिनचर्या में शामिल करना चाहिए जिसमें कपालभाति सटकर्म, नाड़ी शोधन, अनुलोम विलोम प्राणायाम, आसन मैं धनुरासन, पश्चिमोत्तासन, चक्रासन वृक्षासन, उष्ट्रासन, सूर्य नमस्कार कटिचक्रासन आदि, कपालभाति के अभ्यास से किडनी फंक्शन को बेहतर करने में मदद मिलती है। प्राणायाम ग्लोमेरुली फिल्टरिंग इकाई को क्षति होने से बचाने में सहयोग करता है, आसन का अभ्यास लिवर, किडनी, ओवरी और यूट्रस के फंक्शन को स्टिम्युलेट करता है।
इस तरह रेगुलर योग अभ्यास करने से किडनी रोग ही नहीं अन्य रोगों से हम अपने आप को बचा सकते हैं हमें अपनी लाइफ स्टाइल में 1 घंटे का योग अभ्यास जरूर शामिल करना चाहिए और हमारी दैनिक दिनचर्या और आहारचार्य को हमारे स्वास्थ्य के अनुसार रखना चाहिए, जिससे कि हम हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार के रोगों का व समस्याओं से बचे रहें। किडनी रोगियों के लिए भोजन मैं सोडियम प्रोटीन पोटेशियम और फास्फेट की कम मात्रा बाला भोजन लेना चाहिए।
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