एबीएन हेल्थ डेस्क। बच्चों में बढ़ती आंखों की समस्या एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है, जिसमें वर्तमान समय देखने में आ रहा है कि प्रत्येक बच्चे को जन्म से ही आंखों की समस्या से गुजरना पड़ रहा है। और आंखों पर चश्मा लगता जा रहा है। यह कारण माता-पिता की बदलती लाइफस्टाइल दैनिक दिनचर्या आहार शैली भी एक कारण है।
वहीं बच्चों की दिनचर्या एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का ज्यादा उपयोग और फास्ट फूड का अत्यधिक सेवन करने से बच्चे दिन प्रतिदिन आंखों की समस्याओं से ग्रसित होते जा रहे हैं। योगाचार्य महेश पाल विस्तार पूर्वक बताते हैं कि बच्चों में आँखों की समस्याएँ ऐसी किसी भी समस्या या स्थिति को संदर्भित करती हैं जो आँखों, ऑप्टिक तंत्रिका और मस्तिष्क सहित दृश्य प्रणाली को प्रभावित करती हैं।
ये समस्याएँ गंभीरता में भिन्न हो सकती हैं, हल्के अपवर्तक त्रुटियों से लेकर अधिक गंभीर स्थितियों तक जो बिना इलाज के दृष्टि हानि का कारण बन सकती हैं। बच्चों में होने वाली आम आँखों की समस्याओं में अपवर्तक त्रुटियाँ शामिल हैं, जैसे कि मायोपिया (नज़दीकी दृष्टि) और हाइपरोपिया (दूरदृष्टि), साथ ही एम्ब्लियोपिया (आलसी आँख), स्ट्रैबिस्मस (भरी आँखें) और कंजंक्टिवाइटिस (गुलाबी आँख) जैसी स्थितियाँ।
इन स्थितियों और उनके संकेतों और लक्षणों के बारे में जागरूक होना ज़रूरी है ताकि समय रहते इनका पता लगाया जा सके और उचित उपचार के साथ साथ योग अभ्यास कर समय रहते आंखों की समस्या का निदान कर सकें, बच्चों में आँखों की समस्याओं के कुछ सामान्य लक्षणों में बार-बार आँखों को रगड़ना, अत्यधिक आँसू आना, लाल या सूजी हुई आँखें, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता, आँखें सिकोड़ना , ध्यान केंद्रित न कर पाना, पढ़ने या नज़दीक से काम करने में कठिनाई और आँखों का असामान्य संरेखण शामिल हैं।
वहीं आंखों की योगिक सूक्ष्म क्रिया से स्ट्रैबिस्मस, आँशु नलिकाओं का अवरुद्ध होने की समस्या, निस्टागमस आदि समस्याओं से बचा जा सकता है वहीं आसान और प्राणायाम ध्यान के द्वारा मायोपिया (निकट दृष्टि दोष), हाइपरोपिया (दूरदृष्टि दोष) एम्ब्लियोपिया (आलसी आँख) कंजंक्टिवाइटिस (गुलाबी आँख) आदि आँखों की समस्याओं से बचा जा सकता है, जिसमे रेगुलर योग अभ्यास मैं आँखों की योगिक सूक्ष्म क्रियाएं, सुखासन, स्वास्तिक आसान पद्मासन, सर्वांगासन शीर्षासन विपरीत करनी मुद्रा , प्राणायाम में अनुलोमविलोम, भ्रामरी, चंद्रभेदी आज्ञाचक्र पर ध्यान, नदी शोधन प्राणायाम आदि के अभ्यास से आंखों की समस्याओं से बचा जा सकता है।
5 वर्ष से अधिक के बच्चे योगाभ्यास अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं, आंखों में लालिमा होने की समस्या होने पर शीर्षासन का अभ्यास न करें। बच्चों की दैनिक दिनचर्या में पौष्टिक आहार शैली और दैनिक दिनचर्या में योगाभ्यास को स्थान देकर आंखों की समस्या के साथ-साथ हम बच्चों को भविष्य में आने वाले विभिन्न प्रकार मानसिक व शारीरिक रोगों से बचा सकते हैं।
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