एबीएन हेल्थ डेस्क। नेति षट्कर्म नासिका मार्ग को साफ करने और शुद्ध करने की प्रक्रिया है, जिसमें गुनगुना नमकीन जल, सूत्र (धागा) दूध और घी का प्रयोग किया जाता है। जिससे साइनस में जमा हुआ मैल बाहर निकलता है और संतुलित श्वास को बढ़ावा मिलता है। योगाचार्य महेशपाल बताते हैं कि नेति हठयोग में वर्णित एक महत्वपूर्ण शरीर शुद्धि योग क्रिया है। नेति, षटकर्म का महत्वपूर्ण अंग है। नेति मुख्यत: सिर के अंदर वायु-मार्ग को साफ करने की क्रिया है। हठयोग प्रदीपिका और घेरंड सहिता में नेति के बहुत से लाभ वर्णित हैं।
नेति के मुख्यत: दो रूप हैं : जलनेति तथा सूत्रनेति। जलनेति में जल का प्रयोग किया जाता है; सूत्रनेति में धागा या पतला कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है जलनेति में पानी से नाक की सफाई की जाती और आपको साइनस, सर्दी, जुकाम , पोल्लुशन, इत्यादि से बचाता है। जलनेति में नमकीन गुनगुना पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें पानी को नेटिपोट से नाक के एक छिद्र से डाला जाता है और दूसरे से निकाला जाता है। फिर इसी क्रिया को दूसरी नॉस्ट्रिल से किया जाता है।
अगर संक्षेप में कहा जाए तो जलनेति एक ऐसी योग है जिसमें पानी से नाक की सफाई की जाती है और नाक संबंधी बीमारियों से आप निजात पाते हैं। जलनेति दिन में किसी भी समय की जा सकती है। यदि किसी को जुकाम हो तो इसे दिन में कई बार भी किया जा सकता है। इसके लगातार अभ्यास से यह नासिका क्षेत्र में कीटाणुओं को पनपने नहीं देती। सूत्र नेति में, गीली डोरी या पतली सर्जिकल ट्यूबिंग की लंबाई को सावधानीपूर्वक और धीरे से नाक के माध्यम से मुंह में डाला जाता है।
फिर छोर को मुंह से बाहर निकाला जाता है और दोनों सिरों को एक साथ पकड़कर बारी-बारी से डोरी को नाक और साइनस से अंदर और बाहर खींचा जाता है। इसका उपयोग नाक को साफ करने और नाक के पॉलीप्स को हटाने के लिए भी किया जाता है। सूत्र नेति एक नाक साफ करने वाला योगाभ्यास है जिसमें नाक के क्षेत्र और बाहरी श्वसन क्षेत्रों को नरम धागे की मदद से साफ किया जाता है।
नेति योग क्रिया का अभ्यास योग गुरु या योगाचार्य के मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए, साइनस नाक के आसपास चेहरे की हड्डियों के भीतर नम हवा के रिक्त स्थान हैं, जिन्हें वायुविवर या साइनस कहते हैं। साइनस पर उसी श्लेष्मा झिल्ली की परत होती है, जैसी कि नाक और मुँह में। जब किसी व्यक्ति को जुकाम तथा एलर्जी हो, तो साइनस ऊतक अधिक श्लेष्म बनाते हैं एवं सूज जाते हैं।
साइनस का निकासी तंत्र अवरुद्ध हो जाता है एवं श्लेष्म इस साइनस में फंस सकता है। बैक्टीरिया, कवक एवं वायरस वहां विकसित हो जाते हैं तथा वायुविवरशोथ,या साइनसाइटिस रोग का कारण बन जाते हैं। वायुविवरशोध साइनसाइटिस की रोकथाम के लिए नेति योग क्रिया का अभ्यास किया जाता है जिससे नासिका के अंदर बैक्टीरिया, कवक वायरस विकसित न हो और हम साइनस रोग से बच्चे रहे नैति क्रिया जिसमें जल नेति, सूत्र नैति के द्वारा बैक्टीरिया फंगस और वायरस को साफ किया जाता है अगर कोई रोगी साइनस रोग से ग्रसित हैं वह भी निरंतर नेति क्रिया से धीरे-धीरे ठीक हो जाता है नैति क्रिया के अभ्यास से शरीर पर कई लाभ देखे गए जिसमें जुकाम और कफ कान, आंख, गले सिर दर्द, तनाव, क्रोध आदि समस्याओं मैं लाभकारी है।
यह गले की खराश, टॉन्सिल्स और सूखी खांसी एवं आंसू नलिकाओं को साफ करने में मदद करता है, जिससे दृष्टि स्पष्ट होती है और आंखों में चमक आती है। नाक के मार्ग को साफ करता है जिससे गंध की अनुभूति में सुधार होता है, नैति क्रिया के अभ्यास से संबंधित कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए, जलनेति के बाद नाक को सुखाने के लिए भस्त्रिका प्राणायाम व अग्निसार क्रिया का अभ्यास करे इस योग क्रिया को करते समय मुंह से ही सांस लेनी चाहिए।
अभ्यास खाली पेट सुबह किया जाना चाहिए इस तरह नैति योगक्रिया षट्कर्म के अभ्यास से हमारे आंखों में चमक आती है और हमारे चेहरे का उसे और तेज बढ़ता है और संपूर्ण शरीर स्वस्थ बने के साथ-साथ उसमें ओज,तेज, स्फूर्ति का विकास होता है हमारी दैनिक दिनचर्या में एक हफ्ते में एक बार नेति योग क्रिया का अभ्यास जरूर करना चाहिए जिससे हम विभिन्न प्रकार के आंख नाक कान गले से संबंधित रोगों से हम बच रहे हैं।
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