भारत शानदार परिदृश्यों और निवास का देश है। उनमें से एक है सवाना घास का मैदान जो राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के शुष्क क्षेत्रों में वितरित है। हालांकि घास के मैदानों को बड़े पैमाने पर अन्य भूमि उपयोग प्रकारों में बदल दिया गया है, एक बड़ा भाग अभी भी राजस्थान के जैसलमेर, कच्छ के छोटे रण और दक्कन प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों में है। जाहिर है ऐसे घास के मैदान यहां पाए जा सकते हैं। इन क्षेत्रों की यात्रा पर, भाग्य अच्छा होने पर, एक शाही पक्षी जिसे अंग्रेजी में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड कहते हैं, को देखने का मौका प्राप्त हो सकता है। यह एक बड़े आकार का, भारी एवं छोटी उड़ान भरने वाला, बस्टर्ड प्रजाति का पक्षी है, जो विश्वभर में, केवल भारतीय उपमहाद्वीप पर पाया जाता है। इसकी हूंक जैसी पुकार के वजह से इसे हिंदी में हुकना नाम से जाना जाता है। पक्षी एक नाम अलग अपनी धीमी चाल की वजह से, राजस्थान में इसे गोडावण नाम दिया गया है। गुजरात में इसे घोरड़ तथा महाराष्ट्र में मालढोक के नामों से जाना जाता है। हुकना का वजन 15-18 किलोग्राम के बीच होता है, तथा ऊंचाई 1 मीटर। इसका शरीर भूरे रंग का होता है, शीश एवं गर्दन सफेद, तथा सिर पर एक सुंदर काला मुकुट और कलगी होती है। सवाना के सघन घास के बीच में इसकी धीमी गति की चाल अति मनमोहक होती है, तथा राजस्थान के महाराजाओं के राजसी गौरव का एक सहज अनुस्मारक है। भारतीय उपमहाद्वीप पर उड़ान भर पाने वाला यह सबसे भरी पक्षी है। मादा हुकना को रिझाने के लिए, नर हुकना के गर्दन पर स्थित गूलर की थैली सावन के महीने में अति लंंबी और फूल जाती है। सामान्यतः, हुकना साल में केवल एक अंडा देता है, जिसे वह मैदानों में भूमि पर ही घोसंलों में रखता है। पाया गया है कि आमतौर पर 40-50% बार ही उसके अंडे में से नवजात, सफलता से निकलते हैं। यह प्राकृतिक विशेषता हुकना की आबादी को तेज़ी से बढ़ने नहीं देती। मुग़ल और अंंग्रेज हुकना का शिकार करना तथा उसका मास भक्षण करना अत्यधिक पसंद करते थे। हालांकि अब हुकना को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) के तहत कानूनी संरक्षण प्राप्त है।
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