कोरोना वायरस संक्रमण अपने पीछे कितने दुष्प्रभाव छोड़ जाता है, इसका अभी तक पूरा अंदाजा दुनिया को नहीं है। इस संक्रमण के कारण फेफड़े के क्षतिग्रस्त होने और कई पुरानी बीमारियों की स्थिति और गंभीर हो जाने की बातें अब तक सामने रही हैं। लेकिन अब अनुसंधानकर्ताओं ने बताया है कि इंसान की मानसिक और मनोवैज्ञानिक सेहत पर भी ये वायरस अपना बहुत खराब असर डालता है। अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने के छह महीनों के अंदर 34 फीसदी ठीक हुए मरीजों में न्यूरोलॉजी संबंधी या मानसिक समस्याएं उभरीं। ये अध्ययन रिपोर्ट ब्रिटिश जर्नल लासेंट साइकियाट्री में छपी है। देखा यह गया है कि जिन लोगों को कोरोना संक्रमण के दौरान अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनमें न्यूरोलॉजी संबंधी समस्याएं अधिक उभरीं। ये देखा गया है कि जो लोग कोरोना वायरस से जितना अधिक संक्रमित हुए, उनमें ये समस्या उतनी ही ज्यादा सामने आई। जिन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनके ऐसी बीमारी से पीड़ित होने की दर 39 फीसदी तक देखी गई है। इस अध्ययन रिपोर्ट को तैयार करने वाले विशेषज्ञ मैक्सिम ताके के मुताबिक इस रिपोर्ट से ये जरूरत सामने आई है कि जो लोग वायरस के संक्रमण से उबर जाते हैं, उन्हें भी मेडिकल सहायता कुछ समय देते रहने की जरूरत है। ताके ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा विभाग से संबंधित हैं। उन्होंने कहा- हमारे अध्ययन से यह संकेत मिला है कि कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद फ्लू या सांस संबंधी अन्य संक्रमणों की तुलना में मरीज के दिमागी बीमारी होने या मनोचिकित्सकीय समस्या से पीड़ित होने की आशंका अधिक रहती है। इस अध्ययन को अपनी तरह की सबसे बड़ी स्टडी बताया गया है। इसमें 2,36,000 कोविड-19 मरीजों के स्वास्थ्य संबंधी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स का अध्ययन किया गया। ये मरीज ज्यादातर अमेरिकी हैं। इन मरीजों में बाद में उभरे लक्षणों की तुलना सांस नली के अन्य संक्रमण से पीड़ित हुए दूसरे मरीजों से की गई। ये बहुत साफ सामने आया कि कोविड-19 मरीजों के न्यूरोलॉजिकल या मनोचिकित्सकीय समस्याओं से पीड़ित होने की गुंजाइश 16 से 44 फीसदी तक ज्यादा थी। दो फीसदी कोविड-19 के मरीज दिमाग में खून के थक्के (ब्लड क्लॉट) जमने की समस्या से भी पीड़ित हुए। गौरतलब है कि कुछ अन्य छोटे अध्ययनों से भी ऐसे ही परिणाम सामने आए थे। इटली में हुए एक अध्ययन की पिछले फरवरी में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना संक्रमण से ठीक हुए 30 फीसदी मरीजों को बाद में पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का सामना करना पड़ा था। इस अध्ययन में सिर्फ 381 मरीज ही शामिल हुए थे, इसलिए इसके निष्कर्ष की तब ज्यादा चर्चा नहीं हुई थी। इसके पहले बीते दिसंबर में जर्नल न्यूरॉलॉजीः क्लीनिकल प्रैक्टिस में एक अध्ययन रिपोर्ट छपी थी। उसके मुताबिक ठीक हुए कई कोविड-19 मरीजों को बाद में बेहोशी या चलने-फिरने में दिक्कत जैसी समस्याएं हुई थीं। ऐसा कई उन मरीजों को भी हुआ था, जो कोविड-19 वायरस से गंभीर रूप से संक्रमित नहीं हुए थे। इन तमाम अध्ययनों के आधार पर अब विशेषज्ञों ने कहा है कि कोविड-19 ऐसी समस्या नहीं है, जिससे एक बार ठीक होने के बाद मुक्ति मिल जाती है। बल्कि इसकी वजह से हेल्थ सिस्टम पर एक लंबी अवधि का बोझ आ पड़ा है। ये बोझ कितना है, इसका अभी दुनिया को अंदाजा नहीं है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा के प्रोफेसर पॉल हैरिसन ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- लांसेट साइकियाट्री में छपी ताजा अध्ययन रिपोर्ट की कमी यह है कि इसे रूटीन हेल्थ केयर डेटा के आधार पर तैयार किया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि जो लोग अतिरिक्त समस्या से ग्रस्त हुए, उनके बारे में पूरी पड़ताल नहीं की गई है। यानी यह अंदाजा नहीं लगाया गया है कि उनके इलाज की आगे क्या चुनौतियां हैं।
Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.
टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।
© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse