कानून के ज्ञाता, सादगी के प्रतीक और समाजसेवा के दीपक थे प्रो विष्णु चरण महतो

 

मृत्युंजय प्रसाद 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। झारखंड की धरती ने अनेक प्रतिभाओं को जन्म दिया है, पर उनमें एक नाम सदा श्रद्धा से लिया जाता है — प्रोफेसर विष्णु चरण महतो। वे केवल एक कानून के अध्येता नहीं, बल्कि सादगी, ईमानदारी, और जनसेवा के जीवंत प्रतीक थे। 
छोटानागपुर विधि महाविद्यालय के प्राध्यापक, सिल्ली प्रखण्ड के प्रथम प्रमुख, और झारखंड आंदोलन के प्रखर योद्धा के रूप में उन्होंने जो छाप छोड़ी, वह आज भी अविस्मरणीय है। 

ज्ञान के पथिक से समाज के पथप्रदर्शक तक 

23 फरवरी 1926 को सिल्ली प्रखण्ड के कांटाडीह गांव में जन्मे प्रो. महतो एक साधारण किसान परिवार से थे, लेकिन उनके सपने असाधारण थे। बाल्यकाल से ही वे मेधावी, गंभीर और अनुशासित विद्यार्थी रहे। 

रांची जिला स्कूल से मैट्रिक, पटना विश्वविद्यालय से स्नातक और पटना विधि महाविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय पटना उच्च न्यायालय में कार्य किया। लेकिन समाज और शिक्षा के प्रति लगाव ने उन्हें रांची वापस खींच लाया। यहां वे न केवल वकालत करने लगे, बल्कि छोटानागपुर विधि महाविद्यालय में अध्यापन के माध्यम से सैकड़ों विद्यार्थियों के जीवन को दिशा दी। 

झारखंड आंदोलन के सच्चे सिपाही 

झारखंड आंदोलन में प्रो. महतो ने मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। उन्होंने झारखंड पार्टी के उम्मीदवार के रूप में 1952 और 1957 के विधानसभा चुनाव लड़े। दोनों बार मामूली अंतर से हारने के बावजूद उनका जज्बा अटूट रहा। वे कहा करते थे चुनाव हारने से आदर्श नहीं हारते, असली जीत लोगों के दिलों में होती है। 

शिक्षा ही समाज का असली दीपक 

प्रो. महतो का दृढ़ विश्वास था सूखी रोटी खाओ, लाल चाय पियो, लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाओ। वे शिक्षा को समाज सुधार का सबसे सशक्त साधन मानते थे। उन्होंने नारी शिक्षा को विशेष महत्व दिया और कहा शिक्षित नारी ही समाज की असली शक्ति है। 

जनसेवा की मिसाल 

सिल्ली प्रखंड प्रमुख के रूप में उन्होंने कई ऐतिहासिक कार्य किये। सिंगपुर से कांटाडीह तक श्रमदान से सड़क बनवाई, गांव में बिजली पहुंचायी, किसानों के लिए सिंचाई की सुविधा करायी और बेरोजगार युवाओं को शिक्षक के रूप में रोजगार दिलाया। उन्होंने सिंगपुर (मुरी) में बनने वाले भारत माता अस्पताल के लिए अपनी जमीन दान में दी। यह उनकी मानवता और त्याग की मिसाल है। 

कुरमाली भाषा के रक्षक और प्रेरणा स्रोत 

कुरमाली भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए वे जीवनभर प्रयासरत रहे। उनके मार्गदर्शन से अनेक शोधकतार्ओं ने कुरमाली लोक-साहित्य पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 

वे चाहते थे कि रांची विश्वविद्यालय में कुरमाली भाषा का शोध केंद्र स्थापित हो और आज कुरमाली भाषा परिषद एवं बाईसी कुटुम परिषद उनके इसी सपने को साकार करने में जुटी हैं। 

युवाओं के प्रेरणास्रोत 

वे हमेशा युवाओं को प्रोत्साहित करते थे। जब नंदलाल महतो का चयन बिहार प्रशासनिक सेवा में हुआ, तो उन्होंने गर्व से कहा कि यू आर द सेकंड कुरमी आफ छोटानागपुर रीजन आफ्टर ठाकुर दास महतो! उनकी प्रेरणा ने अनगिनत युवाओं को सफलता की राह दिखायी। 

दीपावली के दिन बूझ गया एक दीपक 

एक नवंबर 1986 दीपावली की रात, जब घर-घर में दीप जल रहे थे, उसी दिन यह सादगी और सेवा का दीपक सदा के लिए बुझ गया। परंतु उनके विचार, उनके कर्म और उनके आदर्श आज भी हजारों दिलों में रौशनी फैला रहे हैं। (लेखक वरीय अधिवक्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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