एबीएन एडिटोरियल डेस्क। सूर्य की उपासना और सूर्य को शक्ति का सबसे प्रमुख श्रोत मानने की परम्परा भारत के मगध क्षेत्र की देन है। इस विराट परम्परा का महत्व दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। सनातन का हर नियम विश्व के कल्याण और प्रकृतिक संसाधनों के समुचित उपयोग को रेखाकिंत करता है। धार्मिक कथाओं पर आधारित मान्यताओं के अनुसार मां सीता और द्रोपदी ने सबसे पहले सूर्य की अराधना की थी।
राम कथा हो या महाभारत दोनों में सूर्य की महता रेखाकिंत की गयी है। महाभारत में सूत पुत्र कर्ण को सूर्य पूत्र कर्ण माना गया। राम कथा में अंजनी के लाल वीर हनुमान को सूर्य का वरद पुत्र कहा गया। आज पूरे देश और दुनिया में हनुमान की पूजा आराधना होती है, कर्ण की सूर्य उपासक के रुप में देश में कई स्थल चिन्हित हैं।
हमारी 10 हजार साल की मान्यताओं में छठ मईया की पूजा उन्हीं विराट परम्परा को रेखाकिंत करता है जो हजारों साल की गुलामी के बाद भी कम नहीं हुई न लुप्त हुई। छठ की पूजा पद्धति को ध्यान से देखा जाए तो इसमें किसी पुरोहित, पंडित या ब्राह्मणों की कोई भूमिका नहीं है। यह संकेत देता है कि समाज में पूजा और अराधना के लिये सर्वोच्च सत्ता को सीधे कर्म कांड के नियम और ग्रामीण संसाधनों के माध्यम से किया जा सकता है।
इस पूजा की सबसे बड़ी बात है कि जहां सीता जनकनंदनी उच्च जाति से आती है वहीं कर्ण सूत पुत्र के रुप में सूर्य की उपासना करने वाला भारतीय सनातन परम्परा का सबसे बड़ा श्रद्धावान माना जाता है। आज देश में हिंदू जन मानस को जिस प्रकार राजनीति लाभ के लिये तोड़ा जा रहा है उसमें छठ की पूजा उपासना की पद्धति करारा तमाचा है। छठ समभाव और जाति की भिन्नता को पूर्ण रुप से खारिज करता है।
नदियों, तालाब और जलस्रोतों के घाट पर बिना किसी भेदभाव के पूरा जन समूह दुनिया के सबसे बड़ें सार्वजनिक पूजा उपासना में शामिल होता है। न किसी की जात न किसी संप्रदाय की चर्चा छठ एक सार्वभौम विश्व कल्याण के लिए किया गया मानवीय प्रयास स्वीकार्य किया जाना चाहिए। पटना के गंगा घाट हो या औरंगाबाद का देव मंदिर, मुम्बई का चौपाटी मैदान हो न्यूयार्क का वॉटर टॉवर सूर्य उपासना का यह पर्व साफ संदेश देता है कि पूरे विश्व का कल्याण और सुरक्षा सूर्य के माध्यम से संभव है।
आज हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, बौद्ध के अतिरिक्त दुनिया के अनेक देशों में इस पर्व की परंपरा और महत्व को समझने का प्रयास कर रहें हैं। दूसरी ओर हमारे देश में राजनीति ही क्षुद्रता और सनातन पद्धति के हर आयाम को राजनीति स्वार्थ के कारण नकारने का प्रयास कर रही है। इन परम्परा विरोधी अल्प ज्ञानियों को सनातन के सूर्य पूजा की परम्परा और उसमें उपयोग किये जाने वाले पदार्थो का समर्थ ज्ञान हो तो इस प्रकार की तोड़ा -फोड़ों वाली राजनीति से बचना चाहिए। यह छठ का संदेश भी है। जाति के मान्यताओं को नकारता संपूर्ण वैश्विक शांति और सुलभता का संदेश देने वाला यह एकमात्र पर्व है।
यह गर्व का पर्व है। यह पर्व समरसता का है। यह समभाव का प्रदर्शित करता है। यह प्रकृति को नमन करता है। यह जल की महत्ता स्थापित करता है। सूर्य के वैज्ञानिक बल को स्वीकार्य करता है। यह सत्य सनातक परंपरा के हजारों वर्ष के इस्लामी और इसाई शासन के बाद भी अपने स्वरुप में विद्यमान रहकर विश्व के पटल पर सनातक पताका को सबसे उपर रखने का संदेश उदघोषित करने का पर्व है। यह विराट पर्व है जिसकी विराटता हर दिन बढ़ती ही जा रही है।
पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान जीव मानव के मानसिक और शारीरिक उर्त्कष को किया जाने वाला यह पर्व अपने आप में पृथ्वी के अस्तित्व को बचाने का संदेश देता है। यह पर्व हमें बताता भी है और डराता भी है। बताता है कि पृथ्वी का अस्तित्व सूर्य से है और डराता है कि पृथ्वी का नाश भी संभव है। सहज ज्ञान से छठ के संदेशों को समझना असंभव है।
मानव विकास की परम्परा और भारतीय सत्य सनातक की उंचाई से ब्रंम्हण्ड तक पहुंचना दुनिया के किसी भी अन्य धर्म परंपराओं में इस व्यापकता से स्वीकार्य ही नहीं है। जापान की सूर्य देवी, अमातेरासु, जिन्होंने प्राचीन पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और जिन्हें विश्व का सर्वोच्च शासक माना जाता था, शाही वंश के संरक्षक देवता थे, और आज भी सूर्य के प्रतीक जापानी राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मिस्र की धार्मिक मान्यताएं और प्रथाएं ऐतिहासिक काल (लगभग 3000 ईसा पूर्व से) के मिस्र के समाज में घनिष्ठ रूप से एकीकृत थीं। हालांकि प्रागैतिहासिक काल से संभवत: कई अवशेष बचे हुए थे। लगभग पहली शताब्दी ईसवी की गर्गसंहिता (गर्ग की रचनाएं)। यूनानी ज्योतिष को दूसरी और तीसरी शताब्दी ईस्वी में कई संस्कृत अनुवादों के माध्यम से भारत में प्रसारित किया गया था, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध वह है जो 149/150 ईस्वी में यवनेश्वर द्वारा किया गया था और जिसे पद्य के रूप में लिखा गया था।
जाति व्यवस्था, मेटेमप्सिसोसिस (आत्माओं का स्थानांतरण) के सिद्धांत, पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और अंतरिक्ष) के भारतीय सिद्धांत और मूल्यों पर आधारित था। भारत के प्राचीनतक पूजा परम्परा छठ की है जो संदेश देता है कि समाज में किसी प्रकार का जातिगत वर्गी करण को सर्वोच्च सत्ता सूर्य स्वीकार नहीं करता है। सूर्य सबसे ताकतवर देवता के रुप में भी स्वीकार्य थे और आज भी है। लेकिन वर्तमान समय में जिस प्रकार देश की सामाजिक मान्यताओं पर्व त्योहारों की गहराई और उनमें छिपे व्यापक संदेशों को नकारकर क्षुद्र टिप्पणी और तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है उसे छठ पर्व की परम्परा अस्वीकार करती है।
जो इन महान परम्पराओं के विपरीत चल रहें है उनके विचार नाशवान होंगे। छठ पर्व का संदेश सभी है प्रकृति के नजर में एक। जिन्हें यह नहीं दिखता उन्हें छठ घाटों पर उमड़ती भक्तों की आस्था और छठ के संदेश को देखना और समझना चाहिए। विश्व की सभी समस्याओं का संकेत और उनके अंत का मार्ग इस पर्व के मर्म में छिपा है आवश्यकता है क्षुद्रता छोड़ व्यापक दृष्टि अपनाने की।
Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.
टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।
© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse