श्री राणी सती दादी जी की मंगसीर बदी नवमी 13 नवंबर को

 

  • दादी जी को साहस, निष्ठा, त्याग और आशीर्वाद की देवी माना जाता है: संजय सर्राफ

टीम एबीएन, रांची। झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन के प्रांतीय संयुक्त महामंत्री सह प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है श्री राणी सती दादी जी का मंगसीर बदी नवमी 13 नवंबर दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। यह तिथि श्री राणी सती दादी जी का जन्मोत्सव एवं प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मारवाड़ी समाज विशेष समर्पण के साथ दादी जी का पर्व मनाता है। दादी जी की सभी मंदिरों में मंगसीर नवमी का महोत्सव चार दिनों तक बड़े ही उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। राणी सती दादी जी जिन्हें नारायणी देवी के नाम से भी जाना जाता है, संस्कृति और धर्म में साहस, त्याग और निष्ठा का प्रतीक मानी जाती हैं। 

उनको कथा प्रेरणादायक और मार्मिक है, जो उनकी अमर गाथा को सजीव करती है। मंगसीर बदी नवमी का दिन उनके बलिदान और उनकी दिव्य शक्ति को स्मरण करने के लिए विशेष महत्व रखता है। यह कथा महाभारत काल से जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि नारायणी देवी का पूर्वजन्म वीर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के रूप में हुआ था।

महाभारत के युद्ध में जब अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए, तब उत्तरा ने उनके साथ सती होने की इच्छा व्यक्त की। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सती होने से रोका और कहा कि भविष्य में उन्हें यह पुण्य कर्म करने का अवसर मिलेगा। उत्तरा ने पुनर्जन्म लिया और नारायणी के रूप में जन्म लिया। उनका विवाह झुंझुनू (राजस्थान) के निवासी ठाकुर तांवर जी से हुआ। 

नारायणी देवी और तांबर जी का दांपत्य जीवन प्रेम और निष्ठा से परिपूर्ण था। यह पर्व प्रेम, निष्ठा और धर्म के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक था। उन्होंने भगवान से यह वरदान मांगा कि भविष्य में वे सभी श्रद्धालु भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करेंगी। मंगसीर बदी नवमी का दिन उनके बलिदान और त्याग को समर्पित है। 

इस दिन झुंझुनू स्थित राणी सती मंदिर सहित पूरे देश के दादी के मंदिरों में विशाल महोत्सव का आयोजन होता है। जिसमें राजस्थानी महिलाएं, पुरुष द्वारा मंदिरों में राणी सती दादी जी की विशेष पूजा की जाती है। मंदिरों में झांकियां और श्रृंगार दादी जी की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार कर भव्य झांकी सजाई जाती है। 

दिन भर भजन-कीर्तन, मंगल पाठ और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। भक्तों के लिए विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। महिलाओं द्वारा चुनरी-मेहंदी, सुघा सुहाग की कामना की जाती है इस दिन सुहागिनें विशेष रूप से भाग लेती है क्योंकि इसे अपने सुहाग की रक्षा, परिवार की मंगल कामना और कुलदेवी की आराधना का अवसर माना जाता है। 

आज यह पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक सांस्कृतिक उत्सव बन गया है जहां विभिन्न नगरों मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी उपस्थिति देखने को मिलती है यह आयोजन मारवाड़ी समाज के लिए अपनी पहचान आस्था तथा संयुक्त पूजा- व्रत के माध्यम से एकता का प्रतीक बन गया है। 

सती दादी जी का सम्मान समारोह न केवल उनकीअदम्य निष्ठा, भक्ति और त्याग की स्मृति प्रस्तुत करता है बल्कि यह हमें धर्म, संस्कार और परिवार कल्याण के उन मूल्यों को याद भी दिलाता है।उनके भक्त जीवन के कठिन समय में उनका आह्वान करते हैं। ऐसा विश्वास है कि उनकी पूजा से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है। 

राणी सती दादी जी की कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम और निष्ठा जीवन के मूलभूत मूल्य हैं। मंगसीर बदी नवमी का दिन उनके त्याग और शक्ति को स्मरण करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन सभी भक्तों के लिए दादी जी से आशीर्वाद प्राप्त करने का सुनहरा अवसर होता है।

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